भारतीय दवा कंपनियों की चीन में दिलचस्पी नहीं
चार मई को दुनिया के दूसरे सबसे बड़े फार्मा बाजार चीन ने 28 दवाओं पर आयात शुल्क घटाने की घोषणा की थी। इनमें कैंसर की सभी दवाएं शामिल हैं।
बीजिंग, प्रेट्र : चीन द्वारा पिछले दिनों 28 दवाओं पर आयात शुल्क घटाने की जोर-शोर से हुई घोषणा को भारतीय कंपनियां गंभीरता से नहीं ले रही हैं। एक दवा निर्माता कंपनी का कहना है कि चीन को दवाओं का निर्यात कई तरह के परीक्षणों और अनुमोदन के बाद ही किया जा सकता है, और इनमें कई बरस लग सकते हैं। इसलिए भारतीय कंपनियों में चीन की घोषणा को लेकर बहुत उत्साह नहीं है।
चार मई को दुनिया के दूसरे सबसे बड़े फार्मा बाजार चीन ने 28 दवाओं पर आयात शुल्क घटाने की घोषणा की थी। इनमें कैंसर की सभी दवाएं शामिल हैं। भारत में चीन के राजदूत ल्यूओ झाओहुई ने ट्वीट कर कहा कि चीन ने पहली मई से इन दवाओं पर आयात शुल्क खत्म कर दिया है। भारत के फार्मा उद्योग और चीन को दवाओं का निर्यात करने वालों के लिए यह अच्छी खबर है। इससे चीन और भारत के बीच भविष्य में कारोबार असंतुलन की खाई पाटने में बड़ी मदद मिलेगी।
भारत का फार्मा जगत दवाओं के निर्यात के लिए चीन को अपना बाजार खोलने का लंबे समय से आग्रह कर रहा था। भारतीय फार्मा उद्योग का कहना था कि अन्य देशों के मुकाबले वह चीन को सस्ती दवाईयां मुहैया कराने में सक्षम है। लेकिन एक फार्मा कंपनी के अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि भारतीय कंपनियों के लिए चीन को निर्यात करना आसान नहीं हुआ है। इसकी वजह यह है कि चाहे जनरिक दवाईयां हों या कैंसर-रोधी, चीन में उनका निर्यात चाइना फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (सीएफडीए) के अनुमोदन के बाद ही संभव है। चीन की मौजूदा एफडीए प्रक्रियाओं को देखते हुए इस तरह के अनुमोदन हासिल करने में ढाई से तीन बरस तक लग सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत लंबे अरसे से चीन में एफडीए संबंधी अनुमोदन मिलने में लगने वाला समय घटाने के लिए कोशिशें करता रहा है। लेकिन उन कोशिशों का अब तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है।
दूसरी तरफ भारतीय, चीनी व अन्य देशों की दवा कंपनियों के लिए बीजिंग स्थित वरिष्ठ सलाहकार वी. विश्वनाथ ने कहा कि आयात शुल्क हटाने के चीन के फैसले का फायदा अकेले भारत को नहीं होना है।