भारत की 'बॉबी जासूस' जिसे ब्रिटेन ने भी दिया सम्मान
जासूसी पर आधारित ना जाने कितने ही किस्से आपने सुने और देखे भी होंगे लेकिन हम आपको भारत की बॉबी जासूस के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके हौसले के सामने ब्रिटेन को भी झुकना पड़ा था।
नई दिल्ली, (जेएनएन)। आपने जासूसी पर आधारित बहुत सी फिल्में देखीं होंगी लेकिन जासूसी करते कितनी महिलाओं को आपने फिल्मों या असल जिंदगी में देखा या सुना है। हम आपको एक ऐसी ही महिला से रु-ब-रू कराने जा रहे हैं जो कभी भारत की 'बॉबी जासूस' रही। इस महिला को हम जासूस की राजकुमारी भी कहें तो गलत ना होगा।
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य से लोहा लेने वाले हैदर अली और टीपू सुल्तान की वंशज एक बहादुर महिला ने बहादुरी के नये आयाम को छुआ और इस महिला ने बहादुरी के लिए ब्रिटेन में सम्मान भी हासिल किया। इस महिला का नाम है नूर इनायत खान जो टीपू सुल्तान की वंशज और हजरत इनायत खान की बेटी थीं।
सूफी संगीत से प्रेम करने वाली बेहद खूबसूरत महिला नूर इनायत खान ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अचानक जासूस बनने का फैसला लिया। आज उन्हीं के बलिदान और साहस की गाथा ब्रिटेन और फ्रांस में खूब गाई जाती हैं। कौन थी नूर और भारत से क्या था इनका संबंध...?
बात दूसरे विश्व युद्ध के दौरान की है। हर तरह संग्राम का माहौल था। यूरोपीए देशों में मार-काट मची हुई थी। एक देश दूसरे देश को हड़पना चाहते थे। इसी दौरान नाजी जर्मनी ने फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। हमला तो जर्मनी ने फ्रांस पर किया था, लेकिन इसकी आग कहीं और लग गई।
जब फ्रांस पर जर्मनी ने हमला किया, तो उसके खिलाफ वैचारिक उबाल आ गया और वह ब्रिटेन की जासूस बनकर फ्रांस पहुंच गई। आज भारतीय मूल की नूर इनायत खान की बहादुरी और साहस की गाथा पूरे ब्रिटेन और यूरोप में गाई जाती है। कौन थी यह महिला, जिसके नाम से जर्मनी भी खौफ खाता था?
कौन थी वह महिला?
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी जिस महिला से खौफ खाता था, वह महिला कोई और नहीं, बल्कि नूर इनायत खान थी। ब्रितानी साम्राज्य की विरोधी होने के बावजूद नूर ने ब्रिटेन के लिए जासूसी की और एक नई मिसाल कायम की। नूर की पृष्ठभूमि एेतिहासिक और बेहद दिलचस्प रही है।
नूर इनायत का जन्म 1 जनवरी, 1914 को मॉस्को में हुआ था। उनके पिता भारतीय और मां अमेरिकन थीं। उनके पिता धार्मिक शिक्षक थे, जो परिवार के साथ पहले लंदन और फिर पेरिस में बस गए थे। वहीं नूर की पढ़ाई हुई और उन्होंने कहानियां लिखना शुरू किया।
नूर को संगीत का भी शौक था
नूर का परिवार पश्चिमी देशों में ही रहने लगा था। वही संगीत की रुचि नूर इनायत खान के भीतर भी थी और बच्चों के लिए कहानियां लिखते हुए जातक कथाओं पर उनकी किताब भी छपी थी। नूर संगीतकार भी थीं और वीणा बजाने का उन्हें शौक था।
इंग्लैंड में इनायत
नूर जब छोटी थी, तब वह अपने परिवार के साथ इंग्लैंड चली गईं। वहां रहते हुए नूर ने एयर फोर्स के महिला सहायक दल में ज्वाइन किया। फ्रेंच की अच्छी जानकारी और बोलने की क्षमता ने स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। फिर वह बतौर जासूस काम करने के लिए तैयार हो गईं।
जून 1943 में उन्हें जासूसी के लिए रेडियो ऑपरेटर बनाकर फ्रांस भेज दिया गया था। उनका कोड नाम 'मेडेलिन' रखा गया था। वे भेष बदलकर अलग-अलग जगह से संदेश भेजती रहीं। एक कामरेड की गर्लफ्रेंड ने जलन के मारे उनकी मुखबिरी की और वे पकड़ी गईं।
फिर चला पड़ताना का दौर
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नूर इनायत खान विंस्टन चर्चिल के विश्वसनीय लोगों में से एक थीं। उन्हें सीक्रेट एजेंट बनाकर नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। नूर इनायत ने पेरिस में तीन महीने से ज्यादा वक्त तक सफलतापूर्वक अपना खुफिया नेटवर्क चलाया और नाजियों की जानकारी ब्रिटेन तक पहुंचाई।
पेरिस में 13 अक्टूबर, 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान खतरनाक कैदी के रूप में उनके साथ व्यवहार किया जाता था।
हालांकि इस दौरान वे दो बार जेल से भागने की कोशिश की, लेकिन असफल रहीं। गेस्टापो के पूर्व अधिकारी हैंस किफर ने उनसे सूचना उगलबाने की खूब कोशिश की, लेकिन वे भी नूर से कुछ भी उगलबा नहीं पाए। 25 नवंबर, 1943 को इनायत एसओई एजेंट जॉन रेनशॉ और लियॉन के साथ सिचरहिट्सडिन्ट्स (एसडी), पेरिस के हेडक्वार्टर से भाग निकलीं, लेकिन वे ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
बात 27 नवंबर, 1943 की है। अब नूर को पेरिस से जर्मनी ले जाया गया। नवंबर 1943 में उन्हें जर्मनी के फॉर्जेम जेल भेजा गया। इस दौरान भी अधिकारियों ने उनसे खूब पूछताछ की, लेकिन उसने कुछ नहीं बताया।
उन्हें दस महीने तक बेदर्दी से टॉर्चर किया गया, फिर भी उन्होंने अपनी जुबान नहीं खोली। उन्हें बहुत प्रताड़ित किया गया, जेल में बंद करके जजीरों में बांधा गया और बहुत प्रताड़ित किए जाने के बाद भी नूर ने कोई राज जाहिर नहीं किया।
11 सिंतबर, 1944 तो नूर इनायत खान और उसके तीन साथियों को जर्मनी के डकाऊ प्रताड़ना कैंप ले जाया गया और 13 सितंबर, 1944 की सुबह चारों के सिर पर गोली मारकर मारने का आदेश सुना दिया गया। सबसे पहले नूर के तीनों साथियों के सिर पर गोली मार कर हत्या कर दी गई।
नूर को डराया गया कि वे जिस सूचना को इकट्ठा करने के लिए ब्रिटेन से आई थी, वे उसे बता दे। लेकिन उसने कुछ नहीं बताया और नूर से सिर पर गोली मार का हत्या कर दी गई। इससे बाद सभी को शवदाहगृह में दफना दिया गया। नूर वास्तव में एक मजबूत और बहादुर महिला थीं।
उस समय नूर की उम्र सिर्फ 30 साल थी। वह सचमुच एक शेरनी थीं, जिन्होंने आखिरी दम तक अपना राज नहीं खोला और जब उन्हें गोली मारी गई, तो उनके होटों पर शब्द था -फ्रीडम यानी आजादी। इस उम्र में इतनी बहादुरी कि जर्मन सैनिक तमाम कोशिशों के बावजूद उनसे कुछ भी नहीं जान पाए, यहां तक कि उनका असली नाम भी नहीं।
ब्रिटेन में नूर की याद
सालों की गुमनामी के बाद ब्रिटेन ने उस बहादुर हिंदुस्तानी महिला को मरणोपरांत जॉर्ज क्रॉस से नवाजा गया। अब लंदन में उनकी तांबे की प्रतिमा लगाई जाएगी। यह पहला मौका है जब ब्रिटेन में किसी मुस्लिम या फिर एशियाई महिला की प्रतिमा लग रही है। उधर, फ्रांस ने भी उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान - क्रोक्स डी गेयर से नवाजा।
बहादुरी और सम्मान
इतनी बहादुर महिला का अंत इतना दुखदाई क्यों हुआ। शायद उनकी बहादुरी की वजह से ही उन्हें बेहद खतरनाक महिला घोषित कर दिया गया था।
काफी दिलचस्प थी नूर
वह वर्ल्ड वार में पहली एशियन सीक्रेट एजेंट थी। वह फ्रांस में खुफिया वायरेस ऑपरेटर के तौर पर भेजी गई थी। दिखावे के लिए उसे बच्चों की नर्स के रूप में काम करना था। उसका कोड नाम था मेडेलिन। उसने खुद पैरिस चुना था, क्योंकि वह वहां रह चुकी थी और फ्रेंच फर्राटे से बोलती थी। पैरिस में वह इंग्लैंड के स्पेशल ऑपरेशंस ऐग्जिक्यूटिव एजेंट के रूप में काम कर रही थी।
जानिए जासूस महिलाओं के बारे में
माता हारी
जासूसी की दुनिया में सबसे ज्यादा फेमस और विवादास्पद रहीं माता हारी। नीदरलैंड में जन्मीं यह महिला खुद को इग्जॉटिक डांसर कहती थीं। जैसे ही वर्ल्ड वॉर- 1 की शुरुआत हुई, जर्मनी और फ्रांस दोनों को शक हुआ कि माता दूसरी साइड के लिए जासूसी का काम कर रही हैं। उन्हें ट्रायल के लिए फ्रांस लाया गया। हालांकि, उनपर लगे आरोप साबित नहीं हो पाए थे, लेेकिन अपराधी मानते हुए आखिरकार 15 अक्टूबर, 1917 को उन्हें फांसी दे दी गई।
बेले बॉएड
सिविल वॉर शुरू होने से पहले वॉशिंगटन के सोशल सर्कल में स्टार अट्रैक्शन हुआ करती थीं बेले बॉएड। 1864 में राष्ट्रपति जेफरसन डेविस ने उनसे अपना पत्र इंग्लैंड ले जाने के लिए कहा। जानकारी मिलते ही यूनियन नेवी ने उनके जहाज को पकड़ भी लिया, लेकिन वहां का ऑफिसर इनचार्ज बेले के प्यार में इस कदर पागल था कि उन्होंने उसे छोड़ दिया। बाद में बॉएड यूनाइटेड स्टेट में बतौर एेक्ट्रेस काम करने लगीं, जहां उनका स्टेज नेम ला बेले रिबेले था।
सेरा एमा एडमंड्स
इनका जन्म 1841 में कनाडा में हुआ था। किशोरावस्था में वह अपने घर से भाग गईं। गुजारा करने के लिए उन्होंने बाइबल के सेल्समैन का काम शुरू किया। उन्होंने खुद को फ्रैंक थॉमसन नाम दिया और ड्रेसिंग बिल्कुल मर्दों की तरह। 1861 में फ्रैंक (सेरा) की भर्ती सेना में हो गईं। अगले दो साल के भीतर वह कई युद्ध भी लड़ीं और यूनियन आर्मी के लिए जासूसी भी की।
एलिजाबेथ वेन ल्यू
अमेरिका में गृह युद्ध के दौरान के्रजी बेट (इसी नाम से जानी जाती थीं)को रिचमंड में बंधक बनाए गए कैदियों (यूनियन)से मिलने के लिए भेजा गया। कैदियों ने उन्हें कई तरह की जानकारियां दीं, जिसे उन्होंने कहीं और पास कर दिया।
एलिजाबेथ ने इसलिए भी के्रजी बेट नाम का चोला पहन रखा था, ताकि लोग उनके बारे में सोचें कि वह मानसिक रूप से बीमार हैं। वह पुराने कपड़े और टोपी पहने रखतीं और खुद से बातें करती नजर आती थीं। इसी कारण से बहुत से लोग उनके बारे में ऐसा सोचते थे कि किसी अन्य जगह से जुड़ी उनकी संवेदनाएं (जासूसी का काम)सिर्फ एक पागलपन है।