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दुर्गम जंगली क्षेत्रों में नक्सलियों और आतंकियों से एनकाउंटर में जवानों को बचाएगी 'कांबैट ड्रग्स'

डीआरडीओ में लाइफ साइंसेस के महानिदेशक एके सिंह ने कहा कि डीआरडीओ की स्वदेशी निर्मित दवाइयां अर्धसैनिक बलों और रक्षा कर्मियों के लिए युद्ध के समय में वरदान हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Mon, 11 Mar 2019 06:29 PM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2019 06:29 PM (IST)
दुर्गम जंगली क्षेत्रों में नक्सलियों और आतंकियों से एनकाउंटर में जवानों को बचाएगी 'कांबैट ड्रग्स'

नई दिल्ली, प्रेट्र। जम्मू-कश्मीर की दुर्गम पहाडि़यों से लेकर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र के घने और दुर्गम जंगलों तक में आतंकवादियों और नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में घायल होने वाले जवानों को तत्काल चिकित्सा सुविधा नहीं भी मिलती है तो उनकी जान नहीं जाएगी। भारतीय वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी दवाइयां विकसित की है, जिससे घायल जवानों को अस्पताल पहुंचाए जाने से पहले तक के बेहद नाजुक समय को बढ़ाया जा सकेगा। इसे घायल जवानों की जान बचाने के लिहाज से 'गोल्डन' समय कहा जाता है। गंभीर रूप से घायल सुरक्षाकर्मियों में से 90 फीसद कुछ घंटे में ही दम तोड़ देते हैं। वैज्ञानिकों ने अपनी इस खोज को 'कांबैट कैजुअल्टी ड्रग्स' नाम दिया है।

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रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के मेडिकल लेबोरेटरी ने इन दवाइयों का विकास किया है। इन दवाइयों में घाव से खून के रिसाव को तत्काल रोकने वाली दवा, अवशोषक ड्रेसिंग और ग्लिसरेटेड सैलाइन शामिल हैं। ये सभी चीजें जंगल, अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में युद्ध और आतंकवादी हमलों की स्थिति में जीवन बचा सकती हैं। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकवादी हमले का उल्लेख किया जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे।

वैज्ञानिकों ने कहा कि इन दवाइयों से मृतक संख्या में कमी लायी जा सकती है। डीआरडीओ की प्रयोगशाला इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलाइड साइंसेस में दवाइयों को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार घायल होने के बाद और अस्पताल पहुंचाये जाने से पहले यदि घायल को प्रभावी प्राथमिक उपचार दिया जाए तो उसके जीवित बचने की संभावना अधिक होती है।

डीआरडीओ में लाइफ साइंसेस के महानिदेशक एके सिंह ने कहा कि डीआरडीओ की स्वदेशी निर्मित दवाइयां अर्धसैनिक बलों और रक्षा कर्मियों के लिए युद्ध के समय में वरदान हैं। उन्होंने कहा, ''ये दवाइयां यह सुनिश्चित करेंगी कि घायल जवानों को युद्धक्षेत्र से बेहतर स्वास्थ्य देखभाल के लिए ले जाये जाने के दौरान हमारे वीर जवानों का खून बेकार में न बहे ।''

विशेषज्ञों ने कहा कि चुनौतियां कई हैं। ज्यादातर मामलों में युद्ध के दौरान सैनिकों की देखभाल के लिए केवल एक चिकित्साकर्मी और सीमित उपकरण होते हैं। युद्धक्षेत्र की स्थितियों से चुनौतियां और जटिल हो जाती हैं, जैसे जंगल एवं पहाड़ी इलाके तथा वाहनों की पहुंच के लिहाज से दुर्गम क्षेत्र। ऐसे में ये दवाइयां बहुत ही उपयोगी साबित हो सकेंगी।


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