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ब्रेन ड्रेन पर काबू पाने में सफल हुआ भारत

समिति ने पाया है कि इस योजना के तहत आने वाली 90 फीसदी प्रतिभाओं को यहां के संस्थानों में स्थायी जगह भी मिल जाती है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sun, 02 Apr 2017 08:18 PM (IST)Updated: Mon, 03 Apr 2017 01:52 AM (IST)
ब्रेन ड्रेन पर काबू पाने में सफल हुआ भारत

मुकेश केजरीवाल, नई दिल्ली। विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में प्रतिभा पलायन की दशकों पुरानी समस्या पर काफी अंकुश लग पा रहा है। केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई रामानुजन फेलोशिप और 'वज्र' (विजिटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च फैकल्टी) जैसी योजनाएं अंतरराष्ट्रीय अध्यापकों और वैज्ञानिकों की प्रतिभा को वापस लौटाने में काफी प्रभावी हो रही है। कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने इसके लिए विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय की जमकर तारीफ की है।

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विदेशों में काम कर रहे बेहद कुशल भारतीय शोधकर्ताओं को अपने देश में ही रह कर शोध-अनुसंधान करने के लिए आकर्षक सुविधा मुहैया करवाने के लिहाज से उठाए गए कदम बेहद प्रभावी साबित हो रहे हैं। विज्ञान और तकनीकी तथा पर्यावरण और वन से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने इस बात को स्वीकार किया है। अपनी रिपोर्ट में इसने कहा है, 'विभाग की ओर से चलाई जा रही योजनाओं की वजह से भारत अपने यहां से हो रहे ब्रेन ड्रेन पर काबू पाने में सफल रहा है।'

इसका कहना है कि सरलता से फंड जारी हो जाना, तत्परता से सेवाओं की आपूर्ति और युवा शोधकर्ताओं के लिए आकर्षक फेलोशिप की वजह से अब वतन वापसी को लेकर ये प्रतिभाएं हिचकिचा नहीं रहीं। इसी तरह विश्वविद्यालयों में शोध की क्षमता को बढ़ाने के साथ ही युवा वैज्ञानिकों को सहयोग के लिए अर्ली कैरियर रिसर्च अवार्ड और नेशनल पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप आदि उपलब्ध करवाई जा रही है जिससे वे यहां टिके रह सकें।

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समिति ने खास तौर पर रामानुजन फेलोशिप का उल्लेख किया है जिसके तहत विदेश में शोध कर रहे वैज्ञानिकों को पांच साल तक के लिए भारत में रह कर शोध करने के लिए सहयोग मिलता है। इसके तहत सालाना सात लाख रुपये की रकम तो दी ही जाती है साथ ही वैज्ञानिक को यह छूट होती है कि वह या तो फेलोशिप के तहत प्रति महीने 85 हजार रुपये और जिस संस्थान के साथ उसे काम करना है उससे भत्ते हासिल कर ले या फिर संबंधित संस्थान से ज्यादा वेतन मिलता हो तो वह भी ले सकता है। समिति ने पाया है कि इस योजना के तहत आने वाली 90 फीसदी प्रतिभाओं को यहां के संस्थानों में स्थायी जगह भी मिल जाती है।

इसी तरह जेसी बोस और स्वर्ण जयंती जैसी शोध योजनाओं और वज्र योजना के तहत अंतरराष्ट्रीय अध्यापकों और वैज्ञानिकों की प्रतिभा का लाभ उठाया जा रहा है। इसके तहत प्रवासी भारतीयों के साथ ही भारतीय मूल के लोगों को मौलिक विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भारत में काम करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

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