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मानव विकास सूचकांक में भारत 131वीं पायदान पर तो पाकिस्‍तान 154 पर, सौर ऊर्जा में भी हम आगे

मानव विकास सूचकांक में भारत पहले की अपेक्षा दो पायदान नीचे जरूर चला गया है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि इस दिशा में काम नहीं हुआ है। इस लिस्‍ट में पाकिस्‍तान हमसे कहीं अधिक नीचे मौजूद है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 17 Dec 2020 07:49 AM (IST)Updated: Thu, 17 Dec 2020 07:49 AM (IST)
मानव ि‍विकास सूचकांक में पाकिस्‍तान से कहीं आगे हैं हम

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की तरफ से जारी मानव विकास सूचकांक (एचडीआइ) में भारत दो अंक फिसल कर 131 पर पहुंच गया है। पिछले साल अपना देश 129वें नंबर पर रहा था। हालांकि, यूएनडीपी का कहना है कि सूची में भारत के फिसलने का यह मतलब कतई नहीं कि वहां काम नहीं हो रहा है, बल्कि इसका अर्थ यह है कि अन्य देशों ने बेहतर काम किया है।

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क्या है एचडीआइ

मानव विकास सूचकांक में किसी देश के जीवन स्तर को मापा जाता है। इसमें देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तथा उपलब्ध स्वास्थ्य एवं शिक्षा के स्तर आदि को भी देखा जाता है।

जीवन प्रत्याशा

मानव विकास रिपोर्ट 2020 के अनुसार, वर्ष 2019 में जन्मे भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 69.7 साल आंकी गई, जबकि बांग्लादेश में यह 72.7 साल रही। जीवन प्रत्याशा के मामले में पड़ोसी पाकिस्तान पीछे रहा। वहां जीवन प्रत्याशा 67.3 साल आंकी गई।

मध्यम मानव विकास

भारत के साथ-साथ भूटान (129), बांग्लादेश (133), नेपाल (142), पाकिस्तान (154) आदि मध्यम मानव विकास की श्रेणी वाले देशों में शामिल रहे। वर्ष 2018 में भारत इस सूची में 130वीं रैंक पर रहा था।

रैं‍किंग में शामिल रहे 189 देश

मानव विकास सूचकांक में 189 देश शामिल रहे। भारत का एचडीआइ मूल्य 0.645 रहा। इसके कारण ही भारत को मध्यम मानव विकास वाले देशों की श्रेणी में शामिल होना पड़ा और दो अंक फिसलकर 131 पर आ पहुंचा।

नॉर्वे शीर्ष पर

रिपोर्ट के अनुसार, मानव विकास सूचकांक में नॉर्वे शीर्ष पर रहा, जबकि आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग व आइसलैंड क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे व पांचवें स्थान पर रहे।

आय में कमी और कुपोषण

यूएनडीपी की ओर से मंगलवार को जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर वर्ष 2018 के दौरान भारत में प्रति व्यक्ति आय 6,829 अमेरिकी डॉलर यानी करीब पांच लाख रुपये थी। वर्ष 2019 में यह घटकर 6,681 डॉलर यानी 4.91 लाख हो गई। पीपीपी विभिन्न देशों की कीमतों का पैमान है। इसमें वस्तु विशेष की कीमतों की तुलना की जाती है, ताकि देशों की मुद्रा की वास्तविक क्षमता का निर्धारण किया जा सके। कंबोडिया, भारत और थाईलैंड मूल के बच्चों में कुपोषण भी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आई, जिसके कारण इन देशों के बच्चों की लंबाई कम रह जाती है। रिपोर्ट में पोषक भोजन के मामले में अभिभावकों द्वारा बेटा व बेटी में किए जा रहे अंतर पर भी चिंता जताई गई है।

भूमि और महिला सुरक्षा

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोलंबिया से भारत तक मिले साक्ष्य बताते हैं कि वित्तीय सुरक्षा और भूमि स्वामित्व के कारण महिलाओं की सुरक्षा बेहतर हुई है। इससे लैंगिक हिंसा में भी कमी आई है। साफ है कि भूमि खरीद से महिलाएं सशक्त हुई हैं।

सौर ऊर्जा में भारत पांचवें स्थान पर

भारत ने पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 तक वर्ष 2005 के मुकाबले 30-35 फीसद कार्बन उत्सर्जन कम करने का फैसला किया है। देश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से काम हुआ है। अप्रैल 2014 में 2.6 गिगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन हुआ था, जो जुलाई 2019 तक 30 गिगावाट हो चुका है। इस प्रकार उसने चार साल पहले ही 20 गिगावाट क्षमता हासिल करने के लक्ष्य को पा लिया है। भारत सौर ऊर्जा क्षमता हासिल करने वाले देशों की सूची में पांचवें स्थान पर है।

पीएचडीआइ

कोरोना संक्रमण के बीच इस बार रिपोर्ट में पीएचडीआइ नामक एक नया सूचकांक भी जोड़ा गया है। प्लैनेट्री प्रेशर-एडजस्टेड एचडीआइ (पीएचडीआइ) में एचडीआइ की पारदर्शिता को बरकरार रखा गया है। यूएनडीपी के अधिकारियों का कहना है कि पीएचडीआइ में किसी देश द्वारा किए जा रहे कार्बन उत्सर्जन का भी उल्लेख किया गया है।

कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता सराहनीय है। वह दूसरे देशों की भी मदद कर सकता है। शोको नोडा, स्थानीय प्रतिनिधि (यूएनडीपी) 


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