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भारत ने दिया अपनी ताकत का सबूत, चीन की सीमा पर उतारा हरक्युलिस

चीन सीमा पर अपनी ताकत का सुबूत देते हुए भारत ने अपने विशाल मालवाहक विमान सी-130जे सुपर हरक्युलिस को वास्तविक नियंत्रण रेखा स्थित अग्रिम हवाई पंट्टी पर उतारा है। यह पहला मौका है जब दौलत बेग ओल्डी के एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड पर वायुसेना ने सी-130जे जैसे विशाल विमान को उतारा है। दौलत बेग ओल्डी को दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पंट्टी माना जाता है। इस कामयाबी के बाद किसी भी आपात स्थिति में बेहद कम समय में भारत सैन्य साजो-सामान और रसद अग्रिम मोर्चे पर पहुंचा सकता है।

By Edited By: Published: Wed, 21 Aug 2013 05:41 AM (IST)Updated: Wed, 21 Aug 2013 09:12 AM (IST)
भारत ने दिया अपनी ताकत का सबूत, चीन की सीमा पर उतारा हरक्युलिस

नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। चीन सीमा पर अपनी ताकत का सुबूत देते हुए भारत ने अपने विशाल मालवाहक विमान सी-130जे सुपर हरक्युलिस को वास्तविक नियंत्रण रेखा स्थित अग्रिम हवाई पंट्टी पर उतारा है। यह पहला मौका है जब दौलत बेग ओल्डी के एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड पर वायुसेना ने सी-130जे जैसे विशाल विमान को उतारा है।

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दौलत बेग ओल्डी को दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पंट्टी माना जाता है। इस कामयाबी के बाद किसी भी आपात स्थिति में बेहद कम समय में भारत सैन्य साजो-सामान और रसद अग्रिम मोर्चे पर पहुंचा सकता है।

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महत्वपूर्ण है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब स्थिति दौलत बेग ओल्डी का निर्माण भारत ने चीन के साथ 1962 में हुए युद्ध के दौरान किया था। सरहदी इलाके में भारत के अग्रिम ठिकानों में एक इस हवाई पंट्टी से कुछ दूर दिपसांग का इलाका है जहां बीते अप्रैल में चीनी सैनिकों ने तंबू गाड़ लिए थे।

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वायुसेना मुख्यालय के मुताबिक मंगलवार तड़के गाजियाबाद के निकट हिंडन वायुसेना बेस से रवाना हुआ सी-130जे विमान 16614 फीट की ऊंचाई पर स्थित हवाई पंट्टी पर 6:54 मिनट पर उतरा। अक्साई चिन इलाके की इस हवाई पंट्टी पर करीब डेढ़ घंटे की उड़ान के बाद सी-130जे स्क्वाड्रन के कमांडिंग अधिकारी ग्रुप कैप्टन तेजबीर सिंह एवं वायुसेना मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पहुंचे विमान ने सफलतापूर्वक जमीन को छुआ।

सी-130 जे की यह लैंडिंग दुनिया में अपनी किस्म का एक रिकॉर्ड भी है क्योंकि इसे पहली बार पांच हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर उतारा गया। इस तरह का प्रयोग सी-130जे विमान को बनाने वाले और सबसे पहले इस्तेमाल करने वाले अमेरिका ने भी कभी नहीं किया।

बताते चलें कि भारतीय सेना 1962 से 65 तक इस लैंडिंग ग्राउंड का इस्तेमाल करती रहीं। हालांकि, बाद में यह हवाई पंट्टी काफी समय तक बेकार रही। सीमा पार चीन की ओर से तेज रफ्तार सैन्य ढांचागत निर्माण के मद्देनजर कुछ साल पहले भारत ने एक बार फिर डीबीओ लैंडिंग ग्राउंड को सक्रिय किया। साथ ही बड़े विमानों के इस्तेमाल के लिए इसे तैयार करने के बाद मई 2008 में वायुसेना ने मालवाहक एएन-32 विमान को उतारा।

वायुसेना के अनुसार हेलीकॉप्टरों और एएन-32 विमान की सीमित क्षमताओं के चलते वायुसेना मुख्यालय में फैसला लिया गया कि डीबीओ को सी-130जे विशाल विमानों के लिए भी तैयार किया जाए जो 20 टन तक भार ढो सकते हैं।

वायुसेना प्रवक्ता विंग कमांडर जिरार्ड गल्वे के मुताबिक सी-130जे की कामयाब लैंडिंग के बाद उस इलाके में मोर्चे पर तैनात सैन्य बलों की जरूरतों को कम समय और अधिक क्षमता के साथ पूरा किया जा सकेगा। ध्यान रहे कि बेहद दुर्गम और ऊंचाई पर स्थिति सीमांत इलाकों में सैन्य बल रसद के लिए हवाई मदद पर ही निर्भर होते हैं।

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