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डाटा लोकलाइजेशन पर अड़ी सरकार, तारीख आगे बढ़ाने के मूड में नहीं आरबीआइ

आरबीआइ की ओर से डाटा लोकलाइजेशन के लिए 15 अक्टूबर की अंतिम तारीख तय की गई थी। जिसकी मियाद पूरी हो गई है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Mon, 15 Oct 2018 08:20 PM (IST)Updated: Mon, 15 Oct 2018 10:17 PM (IST)
डाटा लोकलाइजेशन पर अड़ी सरकार, तारीख आगे बढ़ाने के मूड में नहीं आरबीआइ
डाटा लोकलाइजेशन पर अड़ी सरकार, तारीख आगे बढ़ाने के मूड में नहीं आरबीआइ

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। इंटरनेट के जरिए वित्तीय भुगतान की सुविधा देने वाली विदेशी फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी कंपनियों को अब न सिर्फ भारत में अपना सारा डाटा रखना होगा बल्कि उन्हें यहां की सेवाओं के लिए कंपनी भी यहां के नियम के मुताबिक ही चलानी होगी।

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आरबीआइ ने अप्रैल, 2018 में इस क्षेत्र की सभी देशी-विदेशी कंपनियों को साफ तौर पर कहा था कि उन्हें 15 अक्टूबर, 2018 तक भारत में ही अपने डाटा संरक्षित करने संबंधित व्यवस्था करनी होगी। इस समय सीमा को बढ़ाने के लिए भारत सरकार व आरबीआइ पर काफी दबाव था।

लेकिन सोमवार को देर रात तक केंद्रीय बैंक की तरफ से इस बारे में कोई निर्देश नहीं आया है कि उसने समय सीमा बढ़ाई है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि गूगल जैसी कंपनियों को भी आने वाले दिनों में भारत में अपनी वित्तीय सेवा के लिए यहां स्थानीय तौर पर ढांचागत व्यवस्था करनी होगी।

सरकारी सूत्रों के मुताबिक अप्रैल में आरबीआइ की तरफ से जारी निर्देश के बाद कई घरेलू व विदेशी साझेदारी वाली कंपनियों ने भारत में ही अपना डाटा स्टोरेज केंद्र स्थापित कर लिया है और इस बारे में आरबीआइ को सूचित भी कर दिया है।

इसमें अलीबाबा, अमेजन व व्हाट्सएप जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं। मोटे तौर पर देश में काम करने वाली इस श्रेणी की 80 फीसद कंपनियों ने आरबीआइ के निर्देश का पालन कर लिया है। हालांकि कुछ विदेशी बैंकों, गूगल व कुछ अन्य बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियों ने ऐसा नहीं किया है। ये कंपनियां सरकार व आरबीआइ से आग्रह कर रही थी कि उन्हें कुछ और मोहलत मिलनी चाहिए।

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मंगलवार (16 अक्टूबर, 2018) के बाद से आरबीआइ के निर्देश को नहीं मानने वाली कंपनियों को काम करने दिया जाएगा या नहीं। सूत्रों का कहना है कि जिन कंपनियों ने अभी तक नियम को स्वीकार नहीं किया है उनकी भारत के कुल वित्तीय लेन-देन में हिस्सा बेहद नगण्य है। इसलिए इसका कोई बड़ा असर नहीं होगा।

बताते चलें कि इस कदम के पीछे आरबीआइ की मंशा यह है कि वह भारत में भुगतान से संबंधित सारे आंकड़ों की निगरानी देश में ही करना चाहता है। विदेश में डाटा होने की वजह से कई बार ये कंपनियां इन्हें उपलब्ध कराने से इनकार करती हैं।


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