देश में बड़े पैमाने पर अंधियारा मिटाने में कामयाब हो सकती है 'सौर उर्जा'
भारत में सौर ऊर्जा की व्यापक संभावनाएं हैं, क्योंकि देश के अधिकांश हिस्सों में साल में 250-300 दिन सूरज अपनी किरणों बिखेरता है।
नई दिल्ली [शशांक द्विवेदी]। पिछले दिनों ब्रिटेन की अकाउंटेंसी फर्म अर्नेस्ट एंड यंग (ईवाई) ने अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के लिए आकर्षक देशों की सूची में भारत को दूसरा स्थान दिया था। ईवाई ने अपनी सूची में भारत को अमेरिका से ऊपर जगह दी है। इसका कारण उसने भारत सरकार की ऊर्जा नीति और अक्षय ऊर्जा की दिशा में प्रयासों को बताया है। दरअसल राष्ट्रापति भवन में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अस्तित्व में आए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आइएसए) के पहले सम्मलेन से ही यह साफ हो गया है कि भारत दुनिया में सौर क्रांति का नेतृत्व करेगा। बीते कुछ समय से भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र खासकर सौर ऊर्जा क्षेत्र दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसकी एक बड़ी वजह सौर ऊर्जा के क्षेत्र में निवेशकों को लुभाते हुए सोलर पॉवर प्लांट से उत्पादित बिजली की दर को न्यूनतम स्तर तक लाने की कारगर रणनीति रही है। आंकड़ों के अनुसार बीते तीन साल में भारत में सौर ऊर्जा का उत्पादन अपनी स्थापित क्षमता से चार गुना बढ़ कर 12 हजार मेगावाट पार कर गया है।
यह फिलहाल देश में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता का 16 फीसद है। केंद्र सरकार का लक्ष्य इसे बढ़ा कर स्थापित क्षमता का 60 फीसद करना है। देश धीरे-धीरे हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है और सौर ऊर्जा की लागत में कमी आने की वजह से अब यह ताप बिजली से मुकाबले की स्थिति में है। एक अनुमान के अनुसार साल 2040 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ सकता है। ऐसे में भविष्य की इस मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा का प्रयोग करना हमारे लिए जरूरी भी और मजबूरी भी। अब भी देश के करोड़ों लोग बिजली से वंचित हैं, ऐसे में भारत सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक बन सकता है। भारत में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ने पर जीडीपी दर भी बढ़ेगी और भारत सुपर पावर बनने की राह पर भी आगे बढ़ सकेगा।
देश में साल 2035 तक सौर ऊर्जा की मांग सात गुना बढ़ने की संभावना है। इस क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए अब विदेशी कंपनियों की निगाहें भी भारत पर हैं। सूरज से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए फोटोवोल्टिक सेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। फोटोवोल्टिक सेल सूरज से प्राप्त होने वाली किरणों को ऊर्जा में तब्दील कर देता है। भारत में सौर ऊर्जा की काफी संभावनाएं हैं, क्योंकि देश के अधिकतर हिस्सों में साल में 250-300 दिन सूरज अपनी किरणों बिखेरता है। दुनिया में अमेरिका और चीन के बाद बिजली की खपत वाले तीसरे बड़े देश भारत ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट हरित ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। इसमें सौर ऊर्जा का हिस्सा सौ गीगावॉट होगा। यही वजह है कि अब विदेशी कंपनियों की निगाहें भी इस क्षेत्र पर टिकी हैं। इसमें 40 हजार मेगावाट बिजली रूफटॉप सोलर पैनलों और 60 हजार मेगावाट बिजली छोटे और बड़े सोलर पॉवर प्लांटों से उत्पादित की जानी है।
अगर भारत इस लक्ष्य को हासिल कर लेता है तो हरित ऊर्जा के मामले में वह दुनिया के तमाम विकसित देशों से आगे निकल जाएगा। इसके अलावा इससे 2030 तक तेल आयात में 10 फीसद की कटौती करने का लक्ष्य भी हासिल हो जाएगा। यह प्रदूषण मुक्त सस्ती ऊर्जा के साथ-साथ ऊर्जा उपलब्धता और देश की आत्मनिर्भरता बढ़ाने में सहायक साबित होगा। इस बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए छह लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम निवेश जुटाने की चुनौती है। इसके लिए सरकार ने निवेशकों से जुड़े जोखिम में खुद को साझेदार बनाने का फैसला किया है। यह इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों की खस्ता माली हालत को देखकर ज्यादातर निवेशक पैस फंसने के डर से आगे नहीं आ रहे थे। इसके समाधान के लिए केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के त्रिपक्षीय समझौते से सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआइ) बनाया।
इसके जरिये निवेशकों को भरोसा दिलाया गया कि उनके सोलर पॉवर प्लांट से पूरी बिजली खरीदी जाएगी और पैसा फंसने की नौबत नहीं आएगी। सरकार ने सोलर पॉवर प्लांट के लिए जमीन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए भी कदम उठाए हैं। सच्चाई यह है कि सरकार के ये सभी प्रयास निवेशकों का भरोसा बढ़ाने में सफल रहे हैं। इससे न केवल पूंजी की उपलब्धता बढ़ी है, बल्कि कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा में भी बढ़ोतरी हुई है। कारोबारी पत्रिका ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार ने भारत की फोटोवोल्टिक क्षमता को बढ़ाने के लिए सोलर पैनल निर्माण उद्योग को 210 अरब रुपये की सरकारी सहायता देने की योजना बनाई है। दरअसल विकास का जो मॉडल हम अपनाते जा रहे हैं उस दृष्टि से अगले प्रत्येक पांच वर्षो में हमें ऊर्जा उत्पादन को लगभग दोगुना करते जाना होगा। इस प्रकार ऊर्जा की मांग व पूर्ति में जो अंतर है उसे कम करने के लिए अब अक्षय ऊर्जा ही एकमात्र विकल्प बचा है।
ऊर्जा के गहराते संकट के दौर में आज सौर ऊर्जा यानी सोलर एनर्जी हर किसी की उम्मीदों की न खत्म होने वाली किरण साबित हो रही है। दरअसल धरती को जितनी ऊर्जा की आवश्यकता है वह सूर्य ही पूरी कर सकता है। इसलिए अब दुनिया को ऐसी सौर क्रांति की जरूरत महसूस हो रही है जिससे पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए हम अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकें।सस्ती व सतत ऊर्जा की आपूर्ति किसी भी देश की तरक्की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। सौर ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा स्नोतों के लिए भारत में पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं जो ग्राम स्वराज्य या स्थानीय स्तर पर स्वाबलंबन के सपने के लिए भी अनुकूल हैं, इसलिए देश में इन्हें बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है। इसके लिए हमें न केवल वैकल्पिक ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करना होगा, बल्कि संस्थानिक परिवर्तन भी करना होगा जिससे कि लोगों को स्थानीय स्तर पर ही ऊर्जा की आपूर्ति की जा सके।
[डिप्टी डायरेक्टर, मेवाड़ यूनिवर्सिटी]