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स्वाधीनता के बाद भारत की बहुआयामी प्रगति में बुनियादी ढांचे का सकारात्मक योगदान

किसी देश का बुनियादी ढांचा सीमेंट-सरिया से नहीं बल्कि सत्ता की सार्थक सोच सही नीतियों और उनके ईमानदारी से क्रियान्वयन से तैयार होता है। विकास की यह पहली शर्त पूरी हो जाए तो स्वावलंबन के गगनचुंबी शिखर स्थापित होने लगते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 26 Jun 2022 10:41 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2022 10:41 AM (IST)
स्वाधीनता के बाद भारत की बहुआयामी प्रगति में बुनियादी ढांचे का सकारात्मक योगदान
स्वाधीनता के बाद भारत की बहुआयामी प्रगति में बुनियादी ढांचे का सकारात्मक योगदान रहा है

अविनाश चंद्र। उच्च और विश्वस्तरीय विज्ञानी तकनीकों को आत्मसात करने के कारण पिछले कुछ दशकों से भारत के बुनियादी ढांचे में काफी वृद्धि हुई है। 1991 के बाद से भारत ने तमाम मोर्चों पर लगातार बेहतर प्रदर्शन किया है। इसकी परिणति सेवा, शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार जैसे प्रत्येक क्षेत्र में आसानी से देखी और महसूस की जा सकती है। पिछले ढाई दशक से भारत ने लगातार शिक्षा, विज्ञान, आर्थिक स्वतंत्रता, व्यवसाय की सुगमता, परिवहन ढांचा, दूरसंचार की उपलब्धता आदि के क्षेत्रों में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। ख्यातिलब्ध अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और एजेंसियों द्वारा समय-समय पर जारी की जाने वाली रेटिंग और रैंकिंग में भी भारत के प्रदर्शन में सुधार दृष्टिगोचर होता है।

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सड़क से आसमान तक तेज उड़ान: एनआइपी के तहत भारत सरकार वर्ष 2020 से 2025 तक 111 लाख करोड़ रुपए निवेश करने जा रही है, जिसके अंतर्गत ऊर्जा, सड़क, शहरी बुनियादी ढांचा, रेलवे, एयरपोर्ट जैसे सेक्टर का विकास किया जाएगा। सड़क मार्ग में पिछले पांच साल में काफी कामकाज किया गया है। अगर आंकड़ों की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2015 से लेकर 2020 तक सड़क और राज्य मार्ग सेक्टर में कुल तीन गुणा से भी अधिक निवेश हुआ है। वित्तीय वर्ष 2015 में यह 51,935 करोड़ रुपए से बढ़कर 1,72,767 करोड़ रुपए हो गया। इसके साथ ही एविएशन सेक्टर में भी इस दौरान काफी विकास देखने को मिला। सरकार की उड़ान योजना के साथ-साथ अन्य योजनाओं के कारण 2014 से 2020 तक घरेलू यात्रियों की संख्या दोगुनी हो गई और यह 6.1 करोड़ से बढ़कर 13.7 करोड़ के स्तर पर पहुंच गया। इस तरह यात्रियों की संख्या में करीब 14 फीसद का इजाफा हर साल देखा गया है।

मजबूत आधार पर ऊंचे सपने: वैसे यह सब बस पिछले पांच-सात वर्षों में संभव हो गया हो, यह कहना अतिरंजना ही होगी। ‘आप और हम सड़क या रेल से आते हैं, लेकिन अर्थशास्त्री बुनियादी ढांचे पर यात्रा करते हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ हाइवे का नहीं, बल्कि इंफार्मेशन हाइवे का भी होना चाहिए।’ लाल किले की प्राचीर से जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह उद्गार व्यक्त कर रहे थे तो वह महज अपने दृढ़ संकल्प के बूते ही ऐसा कह रहे थे, ऐसा नहीं हैं। उन्हें पता है कि मजबूत संविधान के साथ-साथ देश ने तरक्की के सपने को पूरा करने के लिए एक मजबूत आधार का निर्माण कर रखा है। उन्हें बस आगे बढ़कर राह दिखानी है। यह प्रधानमंत्री मोदी के पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों विशेषकर राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और डा. मनमोहन सिंह द्वारा उपलब्ध कराई गई विरासत की ही देन है कि भारत अब यूनिवर्सल साक्षरता मिशन से आगे बढ़कर यूनिवर्सल डिजिटल साक्षरता मिशन को हासिल करने के काफी निकट पहुंच गया है।

खुलीं उच्च शिक्षा की राहें: हालांकि इस मिशन के लिए आवश्यक आधारभूत संरचना के निर्माण की नींव स्वाधीनता के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित कर दी गई थी। वर्ष 1950 में आइआइटी, खड़गपुर के पश्चात 1958 में आइआइटी, बांबे, 1959 में आइआइटी, मद्रास व आइआइटी, कानपुर और 1961 में आइआइटी, दिल्ली की स्थापना ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा की राहें खोल दीं। यह बात और है कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश के लिए सिर्फ पांच आइआइटी अपर्याप्त थे, जिसे देखते हुए राजीव गांधी ने 1994 में आइआइटी, गुवाहाटी और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2001 में आइआइटी, रुड़की की स्थापना की। देश में आइआइटी की संख्या डा. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में बढ़कर 20 और मोदी सरकार में 28 हो गई। इसके पूर्व नेहरू के दिशानिर्देशन में नेशनल काउंसिल फार एजुकेशन, रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की भी स्थापना हुई।

आगे की सरकारों ने इसे सर्वशिक्षा अभियान और शिक्षा का अधिकार अधिनियम के साथ आगे बढ़ाया। तीन दशकों से भी अधिक समय के बाद भारत ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आत्मसात किया। चिकित्सा के क्षेत्र में भी देश में काफी काम हो रहा है, लेकिन बहुत कुछ और किया जाना बाकी है। 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा राजधानी नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की आधारशिला रखी गई। इस कार्य को वर्ष 2012 में डा. मनमोहन सिंह सरकार ने छह नए एम्स स्थापित कर आगे बढ़ाया। वर्तमान सरकार के कार्यकाल में 15 नए एम्स स्थापित किए जा रहे हैं। इसी प्रकार नए-नए आइआइटी और आइआइएम की स्थापना का कार्य भी जारी है।

बड़े पैमाने पर हुआ विकास: स्वाधीनता के पश्चात भारत के समक्ष बड़ी जनसंख्या के लिए भोजन और रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही साथ विकास करने की बड़ी चुनौती थी। देश को खाद्यान्न जरूरतों की पूर्ति के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था। तब पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके सलाहकार पी.सी. महालनोबिस ने पंचवर्षीय योजनाओं के तहत सरकार से वित्त पोषित औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की, जिनमें स्टील अथारिटी आफ इंडिया (सेल), आयल एंड नेचुरल गैस कार्पोरेशन आफ इंडिया (ओएनजीसी), इंडियल आयल कार्पोरेशन लिमिटेड (आइओसीएल), भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) आदि शामिल हैं। स्टील की जरूरतों को पूरा करने के लिए जर्मनी की सहायता से राउरकेला में और रूस व ब्रिटेन की सहायता से क्रमश: भिलाई और दुर्गापुर में एक-एक स्टील प्लांट की स्थापना हुई। उद्योगों के संचालन के लिए आवश्यक बिजली के लिए तीन बड़े हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट- पंजाब में भाखड़ा-नांगल बांध, उड़ीसा में हीराकुंड बांध और आंध्र प्रदेश में नागार्जुन सागर बांध के निर्माण कराए। उनकी एक योजना सरदार सरोवर बांध को 2017 में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरा किया।

आधारभूत संरचना निर्माण के क्षेत्र में पंडित नेहरू द्वारा शुरू किए गए कार्यों को नए आयाम तक पहुंचाने का काम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया। उनके कार्यकाल के दौरान देश के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचों का विकास हुआ। चारों महानगरों- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई को सड़क मार्ग से जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के माध्यम से गांव-गांव को हर मौसम (आल वेदर) सड़क मार्ग की सुविधा उपलब्ध कराने के काम ने अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व तेजी प्रदान की।

लग रहे उम्मीदों को पंख: आज सरकार देश में राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की लंबाई वर्ष 2025 तक मौजूदा 1.47 लाख किलोमीटर से बढ़ाकर दो लाख किलोमीटर करने की दिशा में है। वित्त वर्ष 2020-21 में सड़क निर्माण के कार्य ने 37 किलोमीटर प्रति दिन का रिकार्ड स्तर छू लिया है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 में 13,394 किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण किया है। पिछले सात वर्षों में, राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 91,287 किलोमीटर (अप्रैल 2014 के अनुसार) से 50 प्रतिशत बढ़कर 1,37,625 किलोमीटर (20 मार्च, 2021 को) हुई है। सीमा से लगे क्षेत्रों में भी हर मौसम में गतिशील रहने वाली सड़कों के निर्माण के लिए बार्डर इंफ्रास्ट्रक्चर एंड मैनेजमेंट (बीआइएम) के तहत सेंट्रल सेक्टर की अंब्रेला योजना को मंजूरी दी है। सरकार के इस फैसले से बार्डर मैनेजमेंट, पुलिस और सुरक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूती मिलेगी।

यह बीआइएम योजना पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, नेपाल, भूटान और म्यांमार के साथ भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए सीमा बाड़, सीमा बाढ़ रोशनी, तकनीकी समाधान, सीमा सड़कों और सीमा चौकियों (बीओपी) और कंपनी के संचालन अड्डों जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण में मदद करेगी। इसके अतिरिक्त 12 हजार करोड़ रुपए से चार धाम प्रोजेक्ट के तहत भी 889 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य जारी है जो यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को आपस में जोड़ रहा है।

इस प्रकार, स्वाधीनता के बाद से भारत इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। बीच के कुछ वर्षों में इस ओर उदासीनता देखने को मिली थी, लेकिन वर्ष 1991 के बाद देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आने और निजी क्षेत्रों की सहभागिता की अनुमति मिलने के बाद से इसमें काफी तेजी आइ है और सुरक्षित और सुविधायुक्त सड़कों, विश्वस्तरीय संस्थानों के साथ न केवल यात्रा के समय में बचत हो रही है, स्थानीय व अंतरराज्यीय व्यापार को भी बढ़ावा मिल रहा है बल्कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को भी काफी हद तक कम करने में सहायता मिलने की उम्मीद है।

कदम फलक की ओर: स्विट्जरलैंड स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फार मैनेजमेंट डेवलपमेंट (आइआइएमडी)द्वारा वर्ष वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक-2022 जारी किया गया। इसमें विश्व की 63 महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भारत द्वारा किए गए बेहतर प्रदर्शन के कारण इसे 37वां स्थान हासिल हुआ है। पिछले वर्ष इस सूची में भारत का 43वां स्थान था। नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआइपी) नामक देश की परियोजना में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ निजी क्षेत्र के भागीदारी को सुनिश्चित होने से यह मुकाम हासिल हो पाया है।

(लेखक पत्रकार और सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ हैं)


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