महिलाओं के लिए असुरक्षित भारत, दुष्कर्म पीड़ितों के लिए न्याय की प्रक्रिया धीमी और दर्दनाक
महिलाओं के लिए काफी हद तक भारत को असुरक्षित जगह माना जा रहा है। हाल में हुए कठुआ व उन्नाव दुष्कर्म मामलों की निंदा दुनिया में चारों ओर हो रही है।
नई दिल्ली (एजेंसी)। उन्नाव व कठुआ दुष्कर्म मामलों से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में दावे भले जितने हों, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। 2016 में महिलाओं के खिलाफ 3.38 लाख अपराध के मामलों में से 11.5 फीसद दुष्कर्म के मामले थे। देश में प्रति घंटे 39 दुष्कर्म के केस सामने आते हैं और चार में से केवल एक में दोषी को सजा मिलती है। कुल मिलाकर देश में दुष्कर्म पीड़ितों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया काफी धीमी और दर्दनाक है।
क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले सांसदों का बोलबाला
एडीआर इंडिया 2014 के अनुसार, 2004 में 24 फीसद सांसदों के क्रिमिनल रिकॉर्ड थे, वहीं 2009 में 30 फीसद और 2014 में 34 फीसद। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराध मामलों में कानून निर्माता ही मुजरिम हैं। हमारे सांसदों और विधायकों के क्रिमिनल बैकग्राउंड पर एक नजर:
- तमाम विधायकों में से करीब 30 फीसद आपराधिक पृष्ठभूमि से हैं।
- मौजूदा विधायकों में से 1,581 के हैं क्रिमिनल रिकॉर्ड।
- 51 विधायक महिलाओं के खिलाफ अपराध में शामिल हैं।
इन पार्टियों में हैं अपराधी सांसद/विधायक
महिलाओं के खिलाफ अपराध मामले में हमारे देश को चलाने वाली राजनीतिक पार्टियां भी शामिल हैं।
- भाजपा: 14 सांसदों/विधायकों के हैं क्रिमिनल बैकग्राउंड।
- शिवसेना भी पीछे नहीं है, इनके सात सदस्य आपराधिक छवि वाले हैं।
- वहीं तृणमूल कांग्रेस के 6 सदस्य ऐसे मामलों में आरोपी हैं।
एनसीआरबी के अनुसार, ऐसे मामलों में शुरू से ही न्याय की प्रक्रिया काफी धीमी और मुश्किल रही है। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत पिछले 10 वर्षों में भारत में 278,886 दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए हैं।
2016 में दुष्कर्म मामलों में सुर्खियों में रहे ये राज्य
- जम्मू कश्मीर- 265 दुष्कर्म मामले
- दिल्ली- 2,167 दुष्कर्म मामले
- उत्तर प्रदेश- 4,816 दुष्कर्म केस
- मध्यप्रदेश- 4,882
- महाराष्ट्र- 4,189
- राजस्थान- 4,189