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भारत मलेरिया पर अंकुश लगाने की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल करने के करीब

मलेरिया की मौजूदा दवाएं सिर्फ बुखार तक सीमित हैं। ऐसे में नए विकल्प के रूप में वैक्सीन ही मलेरिया पर अंकुश लगा सकती है जिसके लिए हमने प्रयास प्रारंभ किए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 12 Sep 2019 08:48 AM (IST)Updated: Thu, 12 Sep 2019 08:51 AM (IST)
भारत मलेरिया पर अंकुश लगाने की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल करने के करीब

लखनऊ, रूमा सिन्हा। दुनिया के 41 वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा हालिया तैयार ऐतिहासिक रिपोर्ट में भले ही वैश्विक रूप से मलेरिया के खात्मे की समयसीमा 2050 तय की गई हो, लेकिन भारतीय वैज्ञानिक लोगों की जिंदगी के साथ खेलने वाले इस मर्ज का मर्म पकड़ चुके हैं। अब वैक्सीन के जरिए इस रोग से दो-दो हाथ करने को वे तैयार हो रहे हैं।

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केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआइ) के वैज्ञानिक इस प्रयास में जुट गए हैं। वैक्सीन निर्माण की प्रारंभिक प्रक्रिया के नतीजे भी उत्साहजनक सामने आए हैं। चूहों पर किया गया ट्रायल पूरी तरह सफल साबित हुआ है। अब पूरे शोध को एथिकल कमेटी के समक्ष रखा जाएगा, जिसकी अनुमति मिलते ही इंसानों पर वैक्सीन के प्रयोग शुरू हो जाएंगे। वैज्ञानिकों को उम्मीद है, भारत मलेरिया पर अंकुश लगाने की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल करने के करीब है।

अब तक मलेरिया के नियंत्रण के लिए कोई प्रभावी दवा या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। वक्त के साथ इसके परजीवी में प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हो चुकी हैं। जिस कारण मौजूदा दवाएं निष्क्रिय साबित हो रही हैं। जो वैक्सीन उपलब्ध हैं वे मात्र 50 फीसद तक ही असरदार हैं। जानलेवा बीमारी: डॉ सतीश मिश्रा के अनुसार मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने पर परजीवी प्लाच्मोडियम फेल्सीपीरम त्वचा से रक्त में और फिर लिवर में पहुंच जाता है। लिवर कोशिकाओं में यह बहुत तेजी से खुद की संख्या बढ़ाता है। दूसरा परजीवी प्लाच्मोडियम वाइवेक्स लिवर में शांत पड़ा रहता है और कभी भी रोग का कारण बन जाता है।

इन स्तर पर शोध के प्रयास: डॉ. मिश्रा के मुताबिक, उन्होंने शोध के दौरान लिवर में मौजूद छह हजार जीन में से उस एक जीन (एससीबी) की पहचान की, जो परजीवियों को उनकी संख्या बढ़ाने में मदद करता है। जब मलेरिया परजीवी लिवर में पहुंचता है, तो उसे वहां चक्र पूरा करने में करीब 60 घंटे का वक्त लगता है। इसके बाद वह ब्लड में जाता है। इस जीन को निष्क्रिय करने से 45 से 48 घंटे तक तो वह खुद की संख्या में इजाफा करता है मगर, बाद में विकसित नहीं होता। परजीवी के जीन 30-40 घंटे के दौरान प्रोटीन बनाते रहते हैं, जो उसके प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत करते हैं। वैक्सीन तैयार करने के लिए एससीबी जीनरहित परजीवी को वैक्सीन के रूप में तीन डोज में इंजेक्ट किया जाएगा। जब भी किसी मनुष्य को मच्छर काटेगा उसमें मौजूद परजीवी की एंटीबॉडीज उसे वहीं खत्म कर देंगी। डॉ. मिश्रा को इस शोध के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने सम्मानित भी किया है।

भारत में खोजा गया परजीवी
1897 में पहली बार मलेरिया के वाहक मादा एनाफिलीज के बारे में पता चला। इसकी खोज अंग्रेज सैन्य अधिकारी के बेटे रोनाल्ड रॉस ने की थी जिसके लिए उन्हें 1992 में नोबल पुरस्कार भी मिला। सर्वाधिक प्रभावित राज्य ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश। अगस्त से अक्टूबर तक सबसे ज्यादा प्रभाव।

2050 तक संभव होगा उन्मूलन
दुनिया के 41 नामचीन मलेरिया विशेषज्ञों, बॉयोमेडिकल साइंटिस्ट, आर्थिक विशेषज्ञ और स्वास्थ्य नीति निर्माताओं द्वारा तैयार और ऐतिहासिक बताई जा रही हालिया रिपोर्ट के अनुसार मलेरिया का वैश्विक खात्मा 2050 तक संभव होगा। मलेरिया उन्मूलन पर लैंसेट आयोग के सह चेयरमैन सर रिसर्च फीचेम के अनुसार लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि मलेरिया का खात्मा एक सपने की तरह है, लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में हो रही चिकित्कीय तरक्की ने इसका खात्मा संभव बना दिया है।

अभी तक चेचक का ही खात्मा हुआ है
अभी तक केवल चेचक का ही खात्मा किया जा सका है। कभी महामारी का रूप लेने वाली यह बीमारी हर साल 20 लाख लोगों को लील लेती थी, लेकिन वैक्सीन के द्वारा ही 1979 में दुनिया इस मर्ज से मुक्त हो गई। 2011 में अफ्रीका के पशुओं में होने वार्ले रिंडरपेस्ट नामक रोग से मुक्ति मिली। 1998 में पोलियो से मुक्ति का शुरू अभियान रंग लाया। वैक्सीन के बूते दुनिया इससे छुटकारा पाने के बेहद करीब है। 2023 में इससे निजात मिल जाएगी।

मलेरिया से मुक्ति को उठे कदम
तीन अफ्रीकी देशों में भी वैक्सीन का व्यापक ट्रायल चल रहा है। इस रोग से सर्वाधिक यही देश प्रभावित हैं।

मलेरिया की मौजूदा दवाएं सिर्फ बुखार तक सीमित हैं। धीरे-धीरे वे भी बेअसर हो रही हैं। ऐसे में नए विकल्प के रूप में वैक्सीन ही मलेरिया पर अंकुश लगा सकती है, जिसके लिए हमने प्रयास प्रारंभ किए हैं।
[डॉ सतीश मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक, आण्विक
परजीवी एवं प्रतिरक्षा विज्ञान विभाग, सीडीआरआइ]

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