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पड़ोसी देशों के ड्रैगन प्रेम से भारत सजग, संवेदनाअों का रखेगा ख्याल

श्रीलंका सरकार ने हंबनटोटा पोर्ट 99 वर्षो के लिए चीन को दिया, मालदीव ने भारत से किया वादा तोड़ चीन के साथ किया एफटीए, नेपाल की नई वामपंथी सरकार दिखा सकती है चीन प्रेम

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 15 Dec 2017 09:53 AM (IST)Updated: Fri, 15 Dec 2017 10:29 AM (IST)
पड़ोसी देशों के ड्रैगन प्रेम से भारत सजग, संवेदनाअों का रखेगा ख्याल
पड़ोसी देशों के ड्रैगन प्रेम से भारत सजग, संवेदनाअों का रखेगा ख्याल

नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। भारत ने ‘नेबर फर्स्ट’ (पड़ोसी देश पहले) की नीति तो लागू कर दी है, लेकिन इस नीति में कुछ नए पेंच फंसने लगे हैं। खास तौर पर पिछले कुछ हफ्तों के दौरान जिस तरह तीन करीबी पड़ोसी देशों नेपाल, श्रीलंका और मालदीव में चीनी ड्रैगन की अहमियत बढ़ी है उसे देखते हुए भारत न सिर्फ चिंतित है बल्कि आगे की रणनीति पर भी काफी सतर्कता से आगे बढ़ रहा है। आधिकारिक तौर पर भारत ने इन तीनों देशों के साथ चीन के बढ़ते रिश्तों को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई है, लेकिन इस बात की उम्मीद जरूर जताई है कि उक्त देश उसके हितों व संवेदनाओं का ख्याल जरूर करेंगे।

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सरकार के स्तर पर चिंता और सतर्कता की वजह है कि एक साथ तीन पड़ोसी देशों में चीन की धमक बढ़ रही है। पिछले दिनों श्रीलंका सरकार ने हंबनटोटा पोर्ट को 99 वर्षो के लिए चीन को देने का समझौता कर लिया। वैसे इसमें आश्चर्य किसी को नहीं हुआ क्योंकि चीन सरकार इस पोर्ट और इसके नजदीक एक विशेष आर्थिक क्षेत्र का निर्माण कर रही है। हाल के दिनों में चीन और श्रीलंका में इस पोर्ट के विकास को लेकर नया समझौता हुआ है जिसके तहत चीन को इसके संचालन के लिए मिले अधिकारों में कुछ कटौती की गई है। माना जाता है कि यह भारत की आपत्तियों की वजह से ही हुआ है। इसके बावजूद इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि यह पोर्ट आने वाले समय में चीन के लिए बेहद रणनीतिक महत्व का साबित हो सकता है। सनद रहे कि चीन भारत के चारों तरफ छोटे-छोटे पोर्ट बना रहा है जिसे उसने ‘मोतियों का हार’ का नाम दिया है। इसके तहत पहला पोर्ट पूर्वी अफ्रीका में बनाया गया है। अब देखना होगा कि श्रीलंका सरकार ने भारत को अपने यहां एक दूसरा पोर्ट बनाने का जो प्रस्ताव किया है उस पर क्या असर होता है।

श्रीलंका से भी ज्यादा चिंता छोटे से देश मालदीव ने दी है। मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल गयूम चीन के दौरे पर पहुंचे हैं और वहां दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) हुआ है। भारत भी मालदीव के साथ एफटीए करने का दबाव बना रहा था। गयूम ने वादा किया था कि वह भारत के साथ ही यह समझौता करेगा, लेकिन चीन ने बाजी मार ली। इस बारे में पूछने पर विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, ‘‘मालदीव-चीन के बीच हुए समझौते के प्रपत्र को देखने के बाद ही वह कोई प्रतिक्रिया देंगे, लेकिन जहां तक भारत के साथ मालदीव के रिश्तों की बात है तो यह काफी पुराने हैं। हमें उम्मीद है कि एक करीबी व मित्र पड़ोसी देश होने की वजह से मालदीव आगे भी ‘इंडिया फस्र्ट की नीति’ जारी रखेगा।’’

तीसरा पड़ोसी देश नेपाल है जहां हाल के आम चुनाव में वामपंथी दलों के गठबंधन को भारी बहुमत मिला है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली के नेतृत्व में इस महीने के अंत तक वामपंथी दलों की सरकार बननी तय मानी जा रही है। ओली का झुकाव पहले से ही चीन की तरफ रहा है। जब वर्ष 2015 में उनकी सरकार गिरी थी तब उसके लिए उनकी पार्टी ने भारत को जिम्मेदार ठहराया था।

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