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कोरोना वायरस से निपटने के लिए भारत पूरी तरह तैयार, जानिए किस तरह की गई है प्लानिंग

Coronavirus Updates अन्य देशों की तुलना में भारत की शुरुआती प्रतिक्रिया धीमी थी। वुहान में जनवरी की शुरुआत में ही कोरोना वायरस के लक्षण नजर आने लगे थे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 02 Mar 2020 08:58 PM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2020 12:49 AM (IST)
कोरोना वायरस से निपटने के लिए भारत पूरी तरह तैयार, जानिए किस तरह की गई है प्लानिंग

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। चीन के साथ दुनिया के दूसरे हिस्सों तक कोरोना वायरस की पहुंच लगातार बढ़ रही है। अभी तक भारत में कोरोना वायरस के ज्यादा मामले सामने नहीं आए हैं, लेकिन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के सामने खतरा मंडरा रहा है। इसे लेकर भी सवाल हैं कि क्या भारत की आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएं इससे मुकाबले करने के लिए पर्याप्त हैं।

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शुरुआत में नहीं था उल्लेख

भारत में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय जैविक और स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने के लिए नोडल मंत्रालय है। साथ ही आपदा प्रबंधन एजेंसियों, गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति के अंतर्गत भी ऐसे मामले आते हैं।

हालांकि भारत में लंबे समय तक आपदा प्रबंधन के लिए कोई निश्चित रास्ता नहीं था और यह अनौपचारिक रूप से राज्य का विषय बना रहा। 1943 के बंगाल अकाल के बाद यह माना गया कि भारत में भोजन से संबंधित आपदा ही आ सकती है। संविधान में राज्य या केंद्र के विषयों में आपदा प्रबंधन का कोई उल्लेख नहीं था। आजादी के बाद कई बड़ी आपदाएं आई लेकिन आजादी के करीब पचास साल बाद 2001 में गुजरात के भुज में आए भीषण भूकंप के बाद 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की स्थापना के बाद ही आपदा प्रबंधन प्रोटोकॉल और नीतियों को विकसित किया जा सका।

कोरोना वायरस का प्रकोप एक प्रकार की जैविक आपदा है। यह केमिकल बायोलॉजिकल रेडियोलॉजी एंड न्यूक्लियर (सीबीआरएन) डिफेंस का हिस्सा होगा। अतिरिक्त सहायता के लिए राज्य या स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एनडीएमए, राष्ट्रीय आपदा (एनडीआरएफ) और यहां तक की सैन्य बलों को आग्रह किया जा सकता है।

धीमी शुरुआत के बाद पकड़ी रफ्तार

अन्य देशों की तुलना में भारत की शुरुआती प्रतिक्रिया धीमी थी। वुहान में जनवरी की शुरुआत में ही कोरोना वायरस के लक्षण नजर आने लगे थे। यूरोपीय देशों, सिंगापुर, जापान और अमेरिका ने लगभग उसी समय चीन से लौटने वालों को अलग करना शुरू कर दिया। वहीं भारत में नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) ने महज सार्वजनिक स्वास्थ्य पर नजर रखी। हालांकि जनवरी के अंत तक भारतीय स्वास्थ्य तंत्र हरकत में आया। 30 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर मंत्रियों का समूह गठित किया गया और 3 फरवरी को पहली बैठक हुई।

उठाए गए यह कदम

मंत्री समूह की पहली बैठक में रिस्क एडवाइजरी जारी करने, यात्रियों की स्क्रीनिंग कराने, प्रयोगशाला जांच और अलग से रखने की सुविधा उपलब्ध कराने का निर्णय हुआ। स्क्रीनिंग के लिए 21 अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट और 12 प्रमुख बंदरगाहों पर व्यवस्था की गई। 2014 में इबोला के प्रकोप के बाद इन प्रवेश मार्गो पर कर्मचारियों को संभावित संक्रमणों की जांच के लिए प्रशिक्षित किया गया था।

संदिग्ध मार्गो से आने वाले यात्रियों की जांच की गई। करीब 4,214 उड़ानों और 4,48,449 यात्रियों की स्क्रीनिंग की गई है। वहीं 23,259 लोगों को सामुदायिक निगरानी में रखा गया है। सभी राज्यों को रैपिड रेस्पोंस टीम और सभी जिलों के सरकारी अस्पतालों को चिह्नित किया गया है।

निजी अस्पतालों में अतिरिक्त सुरक्षा के इंतजाम

वहीं, दिल्ली में निजी अस्पतालों को अतिरिक्त सुरक्षा इंतजामों के तहत रखा गया है। वहीं विश्र्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया की 15 वैश्विक प्रयोगशालाओं में पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर वीरोलॉजी (एनआइवी) को भी संदर्भ परीक्षण के लिए चिह्नित किया गया है। इसे भी अलर्ट पर रखा गया है। रिसर्च और जांच की जरूरत पड़ने पर एनआइवी आवश्यकता पड़ने पर देश की 105 प्रयोगशालाओं की मदद ले सकता है। अभी तक देश में 2,707 नमूने रिपोर्ट के लिए भेजे गए हैं, इनमें से केरल में तीन पॉजिटिव आए हैं।

एजेंसियों की तैयारी

सभी राज्यों में रोग निगरानी कार्यक्रम है जो कि एनसीएमसी और एनडीएमए को दैनिक रिपोर्ट भेजता है। इसके जरिए आवश्यता होने पर राष्ट्रीय और अंतरराज्यीय परिप्रेक्ष्य में संकट की गंभीरता को परखा जाता है। जब सभी सामुदायिक संसाधन समाप्त हो जाते हैं तभी एनडीआरएफ से सहायता का अनुरोध किया जाता है, जैसा 2018 में निफा के प्रकोप के समय हुआ था। इसके बाद में सेना को भी बुलाया जा सकता है।

वुहान से निकाला

वुहान से 600 से ज्यादा लोगों को जनवरी 30 और 1 फरवरी को निकाला गया जिन्हें 19 फरवरी को कोरोना वायरस के परीक्षण के नकारात्मक आने के बाद छोड़ा गया।

नाम में भी बदलाव

सबसे पहले इस वायरस को एनसीओवी के नाम से जाना गया। इसके बाद सीवियर एक्यूट रेसपीरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस 2 (सार्स-सीओवी-2) का नाम दिया गया और फिर आखिर में इसे विश्र्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से नाम मिला कोरोना वायरस डिजीज (कोविड-19) ।


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