सैटेलाइट के क्षेत्र में भारत हुआ आत्मनिर्भर, स्वावलंबन की राह पर चल पहुंचा ऊंचाई पर
एक समय भारत को अपने सैटेलाइट दूसरे देशों की मदद से लांच करने के लिए भारी रकम खर्च करनी पड़ती थी पर स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ते हुए भारत आज इस क्षेत्र में न सिर्फ पूरी तरह आत्मनिर्भर बन चुका है।
अंशु सिंह। एक समय भारत को अपने सैटेलाइट दूसरे देशों की मदद से लांच करने के लिए भारी रकम खर्च करनी पड़ती थी, पर स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ते हुए भारत आज इस क्षेत्र में न सिर्फ पूरी तरह आत्मनिर्भर बन चुका है, बल्कि अब दुनिया के अन्य देशों के सैटेलाइट लांच करके अच्छी-खासी कमाई भी कर रहा है। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री की प्रेरणा से इसरो की देखरेख में स्कूली स्तर पर ही स्टूडेंट्स को सैटेलाइट डिजाइन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। जानते हैं स्कूलों-कॉलेजों में इस तरह की प्रेरक पहल के बारे में...
स्पेस सेक्टर देश की प्रगति का बड़ा माध्यम बन सकता है- पीएम मोदी
हाल में इंडियन स्पेस एसोसिएशन के लांच के मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि स्पेस सेक्टर देश की प्रगति का बड़ा माध्यम बन सकता है। इसमें युवाओं की भूमिका अहम हो सकती है। इससे पहले, न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए भी उन्होंने घोषणा की थी कि वर्ष २०२२ में भारत के ७५वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ७५ ‘स्टूडेंट सैटेलाइट’ लांच किए जाएंगे। फिलहाल, इंडियन टेक्नोलाजी कांग्रेस एसोसिएशन (आइटीसीए) कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय टेक स्पेस संगठनों के साथ मिलकर इस मिशन पर काम कर रहा है।
तमिलनाडु के रियासदीन त्रिची स्थित शास्त्र यूनिवर्सिटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र हैं। पिछले वर्ष उन्होंने फेमटो (एफईएमटीओ) श्रेणी में सैटेलाइट विजन सैट १ एवं २ बनाया है, जिसका वजन मात्र ३३ मिलीग्राम है। ३डी
प्रिंटेड पालीथेरीमाइड थर्मोप्लास्टिक से बने इस सैटेलाइट में ग्यारह सेंसर लगे हैं, जो माइक्रोग्रैविटी पर रिसर्च करने में मदद करेंगे। इस सैटेलाइट को नासा द्वारा लांच किया जाना है। चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के तृतीय वर्ष के छात्र शुभम श्रीवास्तव भी उस ‘सीयू-सैट’ मिशन से जुड़े हैं, जो स्टूडेंट सैटेलाइट के निर्माण में जुटा है। शुभम बताते हैं, ‘हमारी पूरी टीम है, जिसमें इंजीनियरिंग के अलग-अलग ब्रांच के छात्र हैं। इसरो के पूर्व वरिष्ठ
विज्ञानियों के अलावा टीएससी कंपनी के विशेषज्ञ हमें ट्रेनिंग दे रहे हैं। उपग्रहों, उसकी डिजाइनिंग, कोडिंग, जियो-इंफोर्मेशन आदि के बारे में काफी कुछ नया जानने को मिला है। एस्ट्रोनोमी (अंतरिक्ष विज्ञान) के क्षेत्र में काम करने
की इच्छा काफी समय से थी, जो इससे पूरी हो रही है।‘
अंतरिक्ष विज्ञान में बढ़ती रुचि
आंध्र प्रदेश के गुंटूर की छठी कक्षा की छात्रा लावण्या, हैदराबाद के केंद्रीय विद्यालय के आठवीं के छात्र जी गिरि वर्धन एवं ग्यारहवीं के छात्र बी सेतु वर्धन को अंतरिक्ष विज्ञान में गहरी रुचि रही है। तीनों गुंटूर स्थित
‘चिल्ड्रेन स्पेस क्लब’ से जुड़े थे और वहां की विविध गतिविधियों में शामिल होते रहते थे। यहीं से उन्हें ‘एटीएल स्पेस चैलेंज-2021’ के बारे में पता चला और तीनों ने उसमें भाग लेने का निर्णय लिया। गोलकुंडा स्थित सरकारी उच्च
विद्यालय के भौतिकी के शिक्षक आनंद बाबू इनके मेंटर बने और उनके दिशानिर्देश में इन्होंने ‘एक्सप्लोर स्पेस’ थीम के अंतर्गत अपना आइडिया सबमिट किया।
आनंद बाबू बताते हैं, ‘मैं हर दिन गूगल मीट से बच्चों से जुड़ता हूं। हम आपस में चर्चा करते हैं। उनके प्रश्नों का जवाब देने की कोशिश करता हूं। आज बच्चे अंतरिक्ष एवं एस्ट्रोनोमी जैसे विषयों में काफी रुचि दिखा रहे हैं। लेकिन इन विषयों की पर्याप्त जानकारी न हो पाने के कारण वे इसमें आगे नहीं बढ़ पाते हैं। स्तरीय प्रतियोगिताओं से अनजान रह जाते हैं। हालांकि, देश में ग्रासरूट इनोवेशन को बढ़ावा देने में अटल टिंकरिंग लैब प्रमुख भूमिका निभा रहा है। छोटी उम्र से बच्चे प्रयोग करना सीख रहे हैं।‘
एटीएल स्पेस चैलेंज से नवाचार को प्रोत्साहन
स्पेस सेक्टर में नवाचार को बढ़ावा देने एवं युवाओं को इस क्षेत्र की समस्याओं का इनोवेटिव समाधान निकालने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से अटल इनोवेशन मिशन, नीति आयोग ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) एवं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ‘इसरो’ के साथ मिलकर हाल ही में ‘एटीएल स्पेस चैलेंज २०२१’ लांच किया है। इसमें छठी से बारहवीं कक्षा के बच्चों को अलग-अलग थीम्स के तहत अपने आइडिया सबमिट करने थे। देश भर के स्कूली बच्चों ने इसमें काफी उत्साह दिखाया। बच्चों को अटल टिंकरिंग लैब के माध्यम से तकनीकी सुविधाएं एवं मेंटरशिप उपलब्ध कराई जा रही हैं।
अटल इनोवेशन मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर दीपाली उपाध्याय के अनुसार, एटीएल स्पेस चैलेंज को देश के सभी स्कूलों के विद्यार्थियों, मेंटर और शिक्षकों के लिए तैयार किया गया है, जो न सिर्फ एटीएल लैब वाले स्कूलों के साथ, बल्कि गैर एटीएल स्कूलों से जुड़े हैं। इसका उद्देश्य छठी से बारहवीं के विद्यार्थियों को एक खुला मंच उपलब्ध कराना है, जहां वे नवाचार कर सकें और खुद डिजिटल युग की अंतरिक्ष तकनीक से जुड़ी समस्याओं का
समाधान निकालने में सक्षम हो सकें। इससे स्कूली छात्रों को न सिर्फ अंतरिक्ष के बारे में सीखने, बल्कि कुछ ऐसा तैयार करने में सहायता मिलेगी जिसका अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी उपयोग किया जा सकेगा। शीर्ष पर रहने वाले छात्रों को चैलेंज की समाप्ति पर आकर्षक पुरस्कार दिए जाएंगे।
अटल टिंकरिंग लैब में बढ़ते प्रयोग
सितंबर महीने में लांच किए गए एटीएल स्पेस चैलेंज में देश भर के एटीएल एवं गैर-एटीएल स्कूल के स्टूडेंट्स ने अपने आवेदन भेजे हैं। चेन्नई की सातवीं कक्षा की छात्रा भैरवी एवं अंजलि उनमें से एक हैं। उनके स्कूल में अटल टिंकरिंग लैब नहीं है। लेकिन जब दोनों को इस प्रतियोगिता के बारे में पता चला, तो उन्होंने ‘स्क्रैच एमआइटी’ की मदद से एक गेम की कोडिंग की और अपना आइडिया अटल इनोवेशन मिशन को भेज दिया। बताती हैं भैरवी, हम दोनों दोस्तों ने खुद से पूरे प्रोजेक्ट (आइडिया) पर काम किया। कोडिंग की। मुझे छोटी उम्र से ही अंतरिक्ष एवं सितारों में रुचि रही है।
यह जानना रोमांचक लगता है कि सितारे कैसे बनते हैं? गैलेक्सी क्या होती है? ‘स्पेस इनसाइक्लोपीडिया’ मेरी पसंदीदा किताब है। गेम एप में हमने बताने की कोशिश की है कि कैसे कोई स्पेसशिप जब अंतरिक्ष में फंस जाए, तो एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर जाया जा सकता है। मध्य प्रदेश के गुना स्थित शास्त्रीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की बारहवीं की छात्रा प्राची कहती हैं, जब से हमारे स्कूल में अटल टिंकरिंग लैब की स्थापना हुई है, हमें मेंटर्स की मदद से अपने आइडिया पर काम करना आसान हो गया है। जैसे, मैंने अब तक तीन प्रोजेक्ट्स पर काम किए हैं। मैंने डंबल रोबोट, ट्रैफिक लाइट एवं जेसीबी रोबोट बनाया है। मैं मानती हूं कि इस तरह की प्रयोगशाला के शुरू होने से हमारा ज्ञान बढ़ा है। जानकारों की मानें, तो नीति आयोग द्वारा संचालित अटल टिंकरिंग लैब स्टूडेंट्स के लिए काफी उपयोगी साबित हुए हैं। इससे उनकी विज्ञान, गणित, एस्ट्रोनामी जैसे विषयों में रुचि बढ़ी है। स्कूल के माहौल में अपने तरीके से नवाचार करने के साथ उनमें उद्यमिता की प्रवृत्ति का विकास हुआ है। उनकी सोच का दायरा बढ़ा है। क्रिटिकल थिंकिंग मजबूत हुई है।
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अमृत महोत्सव पर स्टूडेंट सैटेलाइट की लांचिंग भारत में नि:संदेह स्पेस टेक्नोलाजी के क्षेत्र में स्टूडेंट्स का रुझान बढ़ा है। लेकिन वैश्विक स्तर पर जहां चार हजार के करीब स्टूडेंट सैटेलाइट लांच किए जा रहे हैं, वहीं देश के उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा अभी नौ से दस स्टूडेंट सैटेलाइट ही लांच हो पा रहे हैं। इस समय ‘सीयू-सैट प्रोग्राम’ के तहत हमारे देश के छात्र भी ‘स्टूडेंट सैटेलाइट’ के निर्माण से जुड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। इसरो के पूर्व विज्ञानी इन्हें मेंटर कर रहे हैं। इनमें मंगलयान मिशन से जुड़े विशेषज्ञ भी हैं। इसरो द्वारा प्रोजेक्ट की समीक्षा के बाद अगले वर्ष भारत की स्वतंत्रता के ७५वें वर्ष पर खुद इसरो के लांच पैड से इसे लांच किया जाएगा। हमारे अलावा देश के कई अन्य विश्वविद्यालयों में इस पर काम चल रहा है।
कर्नाटक सरकार ने भी आइटीसीए के साथ टाइअप किया है। चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी ने अब तक दुनिया के करीब २० देशों की यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को भी सैटेलाइट निर्माण में मेंटर किया है। चूंकि देश में ग्राउंड स्टेशन कम हैं, इसलिए कैंपस में ही ग्राउंड स्टेशन बनाया जा रहा है, जिसका उपयोग अन्य विश्वविद्यालय भी कर
सकेंगे। आइटीसीए ने इजरायल सरकार एवं वहां के कुछ स्कूलों से भी हाथ मिलाया है।
-डा. बी. प्रीस्टली सान
डीन (एकेडमिक्स), चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी
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अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भविष्य
वर्तमान में हम अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अत्यंत रोमांचक दौर देख रहे हैं। भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र अब स्टार्टअप्स और निजी खिलाड़ियों के लिए भी खुला है। अंतरिक्ष उद्योग का भविष्य बहुत आशाजनक है। ऐसे में इस क्षेत्र में युवा
छात्रों को प्रोत्साहित करना अनिवार्य है। इसरो और सीबीएसई के सहयोग से एटीएल स्पेस चैलेंज युवा-स्कूली छात्रों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में देश के लिए सीखने और नवाचार करने का एक उत्कृष्ट अवसर है, जिसे भारत की स्वतंत्रता की 75वें साल के आयोजन की विषयवस्तु ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के साथ जोड़ा गया
है।
-दीपाली उपाध्याय