डोकलाम के बाद जमी बर्फ पिघलाने की कोशिश में भारत-चीन
बैठक में भारत की अगुवाई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन की अगुवाई डोभाल के समकक्ष यांग यिची करेंगे।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। क्या डोकलाम या इस जैसे मुद्दे फिर से सर नहीं उठा पाये इसके लिए भारत और चीन के बीच कोई रजामंदी होगी? क्या ये दोनों पड़ोसी मुल्क आपसी सीमा विवाद को सुलझाने के लिए पिछले 13 वर्षों से चल रही कोशिशों को अब किसी नतीजे पर ले जाने की राह निकाल पाएंगे?
- डोकलाम के बाद जमी बर्फ पिघलाने की कोशिश में भारत-चीन
- शुक्रवार को एनएसए डोभाल की अगुआई में होगी सीमा विवाद सुलझाने को वार्ता
- पिछले 13 वर्षों में 19 दफे हो चुकी है इस तरह की बातचीत
- भारत और चीन के बीच 4,057 किलोमीटर लंबी है सीमा
हाल के महीनों में बेहद तनाव भरे रिश्तों से दो-चार भारत और चीन के बीच अगले शुक्रवार को एक अहम बैठक होगी, जिसमें उक्त सवालों का जवाब खोजने की कोशिश होगी। बैठक में भारत की अगुवाई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन की अगुवाई वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यांग यिची करेंगे। जुलाई से सितंबर, 2017 तक चले डोकलाम विवाद के बाद पहली बार दोनो देश सीमा विवादों को सुलझाने के उद्देश्य से मिलने जा रहे हैं।
इस बैठक को लेकर दोनो देश बेहद सतर्क है। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह सिर्फ सीमा विवाद को लेकर बैठक नहीं है बल्कि रणनीतिक वजह से भी अहम है। भारत की तरफ से बस एक छोटी सी सूचना दी गई है। सतर्कता के पीछे वजह यह बताया जा रहा है कि दोनो देश बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं बढ़ाना चाहते।
वैसे सीमा विवाद सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर होने वाली इस बातचीत की शुरुआत वर्ष 2003 में वाजपेयी सरकार के दौरान ही की गई थी। अभी तक 19 बैठकें हो चुकी है और यह नहीं कहा जा सकता कि तकरीबन 4,000 किलोमीटर लंबे सीमा में फंसे पेंचों को सुलझाने में कोई कामयाबी हासिल हुई है।
इस बारे में पूछने पर विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि, ''दो बड़े देशों में सीमा विवाद सुलझाने में 40-40 साल तक का समय लग जाता है। चीन और रूस के बीच तकरीबन 40 वर्षो तक बातचीत चलती रही थी। ऐसे में 13 वर्ष का समय कूटनीति की दुनिया में बहुत लंबा नहीं है। खास तौर पर तब दोनो देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद बहुत ही लंबे और संवेदनशील हो।
अभी कोशिश यह है कि जिन स्थानों पर आपसी सहमति स्थापित की जा सकती है पहले उसको लेकर कुछ प्रगति हो।' कूटनीतिक क्षेत्र के जानकार पिछले पखवाड़े दोनो देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई मुलाकात और अब एनएसए स्तर पर हो रही इस बैठक को एक सकारात्मक प्रगति के तौर पर देख रहे हैं। डोकलाम विवाद से ऐसा लग रहा था कि आपसी रिश्तों को पटरी पर लाना मुश्किल होगा लेकिन उसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स बैठक में हिस्सा ले कर यह जता दिया कि भारत भी तनाव को पिघलाने की मंशा रखता है।
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