डा. रहीस सिंह। कामकासा यानी कम्युनिकेशंस कांपेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट के तहत भारत को अति सुरक्षित कोड युक्त संचार प्रणाली हासिल होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह प्रौद्योगिकी कम से कम उस दौर में सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है, जब चीन ने अपनी रक्षा-रणनीति की गोटियां हिंद महासागर में इस तरह से बिछा रखी हों। कामकासा के फलस्वरूप भारत को सी-17, सी-130 और पी-8 आई जैसे अमेरिकी ओरिजिन मिलिट्री प्लेटफार्म सूचनाओं को इनक्रिप्ट करने वाले विशिष्ट उपकरण हस्तांतरित करने का वादा हुआ।
अंतिम फाउंडेशनल एग्रीमेंट बेका (बेसिक एक्सचेंज एंड कोआपरेशन एग्रीमेंट) के प्रमुख रूप से दो आयाम थे। पहला, भारत और अमेरिका भविष्य में महत्वपूर्ण और संवेदनशील खुफिया जानकारी साझा करेंगे और दूसरा भारत अमेरिका से उन्नत हथियार और उपकरण खरीद सकेगा। ध्यान रहे कि इसके बाद भारत की क्लासीफाइड भू-स्थानिक आंकड़ों के साथ-साथ सैन्य एप्लीकेशंस से जुड़ी जानकारी तक पहुंच होगी और दोनों देश मैप नाटिकल एवं एयरोनाटिकल चार्ट, वाणिज्यिक एवं अन्य अनक्लासीफाइड तस्वीर, भूभौतिकी, भू-चुंबकीय और गुरुत्वाकर्षण से जुड़े डाटा एक-दूसरे के साथ साझा कर सकेंगे।
कूटनीति के इस तरह के विकास क्रम में रक्षा पर विशेष फोकस की कुछ वजहें रहीं जिनमें प्रमुख थी- बदल रही विश्व व्यवस्था (वर्ल्ड आर्डर)। इन्हें रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने, सीरिया में चल रहे संघर्ष और प्रशांत महासागर में चीनी आक्रामकता अथवा इंडो-प्रशांत में भारत-अमेरिका-जापान-आस्ट्रेलिया के बीच बन रहे रणनीतिक चतुर्भुज (क्वाड) में देखा जा सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध को भी इसी क्रम में एक कड़ी माना जा सकता है। ऐसी स्थिति में आवश्यक हो जाता है कि दो देशों (विशेषकर उनके जो विश्व व्यवस्था में अपना स्थान कायम रखना चाहते हैं) के बीच स्थापित संबंधों को मुख्य रूप से रक्षा और सामरिक रणनीति की तैयारियों की ओर मोड़ दिया जाए। भारत और अमेरिका ने यही किया भी।
निसंदेह इससे भारत को लाभ मिला। भारत को गैर नाटो देश होते हुए भी यदि यह सुविधा हासिल हुई है तो यह भारत के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका भारत को एसटीए-1 (कंट्रीज एनटाइटिल्ड टू स्ट्रैटेजिक ट्रेड अथोराइजेशन) की श्रेणी प्रदान कर चुका है जो पहली बार किसी गैर नाटो देश के रूप में भारत को दी गई है। वर्तमान समय में इस सूची में 36 देश हैं जिनमें अधिकांश नाटो देश हैं। यही नहीं भारत और अमेरिका की दोस्ती का ही परिणाम है कि भारत को एमटीसीआर (मिसाइल टेक्नोलाजी कंट्रोल रेजीम) में प्रवेश मिला, जबकि अभी तक चीन इस व्यवस्था में प्रवेश पाने में असफल रहा है। इसके बाद भारत उच्चस्तरीय मिसाइल प्रौद्योगिकी के एक्सचेंज और खरीद करने में सक्षम हो गया।
[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]