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एससी, एसटी का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व हो सकता है पदोन्नति में कोटे का आधार

सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल पहले के उस फैसले में एससी/एसटी को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के लिए शर्ते लगा दी थीं।

By Manish NegiEdited By: Published: Fri, 31 Aug 2018 08:26 AM (IST)Updated: Fri, 31 Aug 2018 08:26 AM (IST)
एससी, एसटी का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व हो सकता है पदोन्नति में कोटे का आधार

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण मामले में गुरुवार को एक अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पदोन्नति में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को आरक्षण देने में उनके पिछड़ेपन के बजाय सरकारी नौकरियों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व जैसे कारणों पर विचार की जरूरत है। साथ यह भी टिप्पणी की कि एससी/एसटी समुदाय संवैधानिक रूप से पिछड़े माने जाते हैं।

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मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने ये टिप्पणियां उन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखते हुए की, जिनमें 2006 के एम. नागराज मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर सात जजों की पीठ द्वारा पुनर्विचार किए जाने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल पहले के उस फैसले में एससी/एसटी को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के लिए शर्ते लगा दी थीं। तब कहा था कि एससी/एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले राच्य इन समुदायों के पिछड़ेपन का आंकड़ा, सरकारी नौकरियों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और समग्र प्रशासनिक दक्षता के बारे में तथ्य उपलब्ध कराने को बाध्य है।

केंद्र ने कोटे की जोरदार वकालत
केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने कई आधारों पर संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है। इसमें एक आधार यह भी है कि एससी, एसटी के सदस्यों को पिछड़ा माना जाता है। उनकी जातिगत स्थिति को देखते हुए उन्हें पदोन्नति में भी आरक्षण दिया जाना चाहिए। केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने एससी, एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने की जोरदार वकालत की और कहा कि पिछड़ेपन को मानना ही उनके पक्ष में है। उन्होंने कहा कि यह समुदाय लंबे समय से जाति पर आधारित भेदभाव का सामना कर रहा है और अब भी उन पर जाति का तमगा लगा हुआ है।

विरोधी तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में कोटे को तैयार
इसका विरोध करने वालों का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बुधवार को कहा था कि उच्च सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिए, क्योंकि सरकारी सेवा में आने के बाद यह पिछड़ापन खत्म हो जाता है। हालांकि, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में इसे जारी रखा जा सकता है।

औचित्य पर कोर्ट ने भी उठाया था सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने भी इससे पहले इन समुदायों के उच्च पदों पर आसीन सदस्यों के परिजनों को सरकारी नौकरी में पदोन्नति में आरक्षण देने के औचित्य पर सवाल उठाया था। न्यायालय जानना चाहता था कि आरक्षण के लाभ से अन्य पिछड़े वर्गो में से सम्पन्न तबके को अलग रखने का नियम एससी, एसटी मामले में भी क्यों नहीं लागू किया जा सकता।


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