'रावण' के लिए अाज भी सरकार देती है 5 रुपये, जानिए- क्या है कहानी
200 साल पहले पांच रुपये में रावण का पुतला तैयार हो जाता था, लेकिन अब महंगाई कई गुना बढ़ चुकी है, ऐसे में इस पर अब करीब एक लाख रुपये खर्च होते हैं।
उज्जैन, राजेश वर्मा। महाकाल की नगरी उज्जैन में रावण दहन से भी एक अनूठी परंपरा जुड़ी है। दरअसल, शहर के अंकपात स्थित सबसे प्राचीन रावण दहन उत्सव समिति को आज भी राज्य शासन से पांच रुपये सहयोग राशि मिलती है। स्टेट के समय शुरू हुई इस परंपरा का 200 साल बाद भी निर्वाह हो रहा है।
अतीत में आयोजक निर्मोही अखाड़े तक सिंधिया स्टेट का प्रतिनिधि सहयोग राशि देने आता था। अब पटवारी इस राशि को अखाड़े तक पहुंचाता है। नियमानुसार पटवारी राशि देने के बाद प्राप्तकर्ता से रजिस्टर पर हस्ताक्षर भी लेता है। खास बात यह भी है कि यहां दशहरे के दूसरे दिन रावण दहन होता है, जिसमें हजारों लोग जुटते हैं।
अंकपात क्षेत्र के दशहरा उत्सव को सबसे प्राचीन आयोजन की मान्यता प्राप्त है। 200 साल पहले पांच रुपये में रावण का पुतला तैयार हो जाता था, लेकिन अब महंगाई कई गुना बढ़ चुकी है, ऐसे में इस पर अब करीब एक लाख रुपये खर्च होते हैं। ऐसे में शेष राशि की व्यवस्था समिति जन सहयोग से करती है।
40 साल पहले बनते थे मिट्टी के पुतले, लोग मारते थे पत्थर
खाकचौक श्रीराम मंदिर मोक्षधाम निर्मोही अखाड़े के महंत महेशदास बताते हैं कि 40 साल पहले तक अंकपात पर रावण-कुंभकर्ण के मिट्टी के पुतले बनाए जाते थे। लोग इन्हें पत्थरों से मारकर गिराते थे। बाद में रावण दहन किया जाने लगा।
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