हिंदी में इंजीनियरिंग कराने की जिस विवि की दी गई मिसाल, वहीं बंद हो गया पाठ्यक्रम
विवि में इंजीनियरिंग की सिविल, इलेक्टि्रकल और मैकेनिकल ब्रांच शुरू होने के बाद बंद हो गई।
नई दुनिया, भोपाल। देशभर में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई हिंदी माध्यम में कराए जाने के लिए जिस हिंदी विश्वविद्यालय की मिसाल दी जा रही है, उसी में हिंदी में इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीई) मान्यता नहीं दे रहा है।
इतना ही नहीं, विवि में इंजीनियरिंग की सिविल, इलेक्टि्रकल और मैकेनिकल ब्रांच शुरू होने के बाद बंद हो गई। आलम यह है कि पिछले एक साल में किसी भी छात्र ने यहां प्रवेश लेने में अपनी रुचि नहीं दिखाई है। वहीं, 2017 में विवि के कुछ इंजीनियरिंग के छात्रों को राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) में भेजना पड़ा था।
दरअसल, एआइसीटीई के मेंबर सेक्रेटरी आलोक कुमार मित्तल ने शनिवार को लखनऊ में आयोजित एक पत्रकारवार्ता के दौरान कहा था कि अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय की तर्ज पर देशभर में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई हिंदी में कराई जाएगी।
एआइसीटीई हिंदी मीडियम के इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट संस्थानों को मान्यता देने की तैयारी कर चुका है। मातृभाषा में पढ़ाई कर किसी भी पाठ्यक्रम में छात्र दक्षता हासिल कर सकते हैं, इसी आधार पर एआइसीटीई ने इस ओर कदम बढ़ाया है।
पिछले साल यह बनी थी स्थिति
2017 में विवि में तीन ब्रांच की सभी 90 सीटें खाली थीं। केवल छह प्रवेश हुए, वे भी लेटरल एंट्री के माध्यम से। विवि 14 अगस्त तक प्रवेश की उम्मीद लगा कर बैठा था, लेकिन उम्मीदों पर पानी फिर गया।
एआइसीटीई से मान्यता पर भी सवाल
एआइसीटीई द्वारा सत्र 2017-18 के लिए देशभर के मान्यता प्राप्त संस्थानों की जो सूची जारी की गई है, उसमें हिंदी विवि का नाम ही नहीं है। विवि में प्रवेश नहीं होने का यह भी एक बड़ा कारण हो सकता है।
पिछले साल भी एआइसीटीई से मान्यता प्राप्त संस्थानों की सूची में विवि का नाम नहीं था, जिसे लेकर काफी सवाल उठे थे। प्रशासन की दलील रही है कि विवि को एआइसीटीई से मान्यता लेना जरूरी नहीं होता। केवल मापदंड पूरे करने होते हैं। जबकि, जानकारों का कहना है कि अगर ऐसा होता तो मान्यता प्राा संस्थानों की सूची में अन्य विश्वविद्यालयों के भी नाम नहीं होते।
हम प्रयास कर रहे हैं कि अगले साल तक एआइसीटीई से विवि को मान्यता मिल जाए। इसके लिए हम आरजीपीवी से एमओयू करेंगे कि वहां के शिक्षक यहां के बच्चों को हिंदी में पढ़ाएं।
- सुनील पारे, रजिस्ट्रार, अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विवि