नक्सलगढ़ में दो पाटों में फंसे युवाओं में बढ़ रही बेचैनी, नहीं मिल रही आजादी
कहने को तो जनताना सरकार की जिम्मेदारी गांव के युवाओं के अधीन है लेकिन हकीकत में युवा नक्सलियों के पिट्ठू बनकर रह गए हैं।
अनिल मिश्रा, जगदलपुर। बस्तर के उन जंगलों में, जहां अब भी नक्सली समानांतर सत्ता चला रहे हैं, वहां के युवाओं की बेचैनी बढ़ती जा रही है। युवाओं के पास कोई विकल्प नहीं है। दो पाटों के बीच फंसे युवा शांति से अपने गांव में जीना चाहते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब प्रशासन की पैठ उन इलाकों तक हो।
जहां सरकार और फोर्स की पहुंच नहीं, वहां समानांतर 'जनताना सरकार' चला रहे नक्सली
फोर्स बस्तर के सुदूर जंगलों तक पहुंचने की तैयारी कर रही है। अबूझमाड़ समेत सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और बस्तर के अन्य जिलों के पहुंचविहीन जंगलों में बसे गांवों में नक्सलियों की समानांतर व्यवस्था चल रही है, जिसे वे जनताना सरकार कहते हैं। जनताना सरकार नक्सलियों के विभिन्न संगठनों जैसे क्रांतिकारी किसान मजदूर संघ, चेतना नाट्य मंच आदि की तरह नक्सल आंदोलन का हिस्सा है। इसमें गांव के स्तर पर सरकार का गठन किया जाता है।
जनताना सरकार में एक अध्यक्ष और उसके अधीन वन, शिक्षा आदि समितियां होती हैं। साम्यवाद के सिद्धांत के नाम पर नक्सल संगठन में शिक्षक, डॉक्टर, सिपाही और चपरासी, सभी का वेतन समान होता है। सब्जी, मुर्गा आदि का दाम बाहरी दुनिया से काफी कम तय है। कहने को तो जनताना सरकार की जिम्मेदारी गांव के युवाओं के अधीन है, लेकिन हकीकत में युवा नक्सलियों के पिट्ठू बनकर रह गए हैं।
गांव में घुसने वाले बाहरी लोगों की जानकारी जुटाकर जंगल में नक्सलियों तक पहुंचाना इन्हीं का काम होता है। यहां छोटी-मोटी गलती पर जनअदालत में मौत की सजा मिलती है। ऐसे में युवाओं की बेचैनी अब बढ़ने लगी है। युवा न फोर्स में शामिल होना चाहते हैं न नक्सलियों के पिट्ठू बनकर खुश हैं। उन्हें गांव में आजादी चाहिए।
सबको फोर्स में शामिल करना संभव नहीं
बस्तर आइजी सुंदरराज पी ने कहा कि बस्तर के जंगलों में कई ऐसे इलाके हैं जो पहुंचविहीन हैं। ऐसे इलाकों में जहां सरकार की पहुंच नहीं है, वहां नक्सली जनता को डरा रहे हैं। हम जानते हैं कि लोग उनके साथ नहीं रहना चाहते। सबको फोर्स में शामिल नहीं किया जा सकता। इसका समाधान विश्वास, सुरक्षा, विकास का मंत्र है। दंतेवाड़ा जिले के पोटाली इलाके में इसी तरह नक्सलियों की पैठ थी।
वे गांव में आते थे और अपने विभिन्न संगठनों की बैठक लेकर उन्हें सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए उकसाते थे। हमने वहां कैंप खोल दिया तो नक्सलियों का आना-जाना बंद हो गया और लोगों को समझ आने लगा कि बुनियादी सुविधाओं की उन्हें कितनी जरूरत है। जंगल में युवा अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं। धीरे—धीरे सरकार अंदरूनी इलाकों तक पहुंच रही है।