अगर शादी में बेटी को देते हैं सामान तो वो दहेज नहीं कहलाएगा
शादी में कन्या को उसके परिजनों द्वारा दिए गए सामान को दहेज नहीं माना जा सकता। माता-पिता अपनी बेटी को कन्यादान के समय जो सामान देते हैं, वो उनकी नई वैवाहिक जिंदगी की मंगल कामना के लिए दिए उपहार होते हैं। दहेज वह होता है जो मांगने पर दिया जाए।
नई दिल्ली [पवन कुमार]। शादी में कन्या को उसके परिजनों द्वारा दिए गए सामान को दहेज नहीं माना जा सकता। माता-पिता अपनी बेटी को कन्यादान के समय जो सामान देते हैं, वो उनकी नई वैवाहिक जिंदगी की मंगल कामना के लिए दिए उपहार होते हैं। दहेज वह होता है जो मांगने पर दिया जाए। यह टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने बेटी की शादी में दहेज देने के आरोपी व याचिकाकर्ता जमालुद्दीन अंसारी आजाद को राहत प्रदान की। अदालत ने आजाद के खिलाफ दर्ज मुकदमे को रद कर दिया।
न्यायमूर्ति सुनीता गुप्ता ने अपने फैसले में कहा कि विवाह के समय कन्यादान की रस्म होती है। यह रस्म तब तक तक पूरी नहीं मानी जाती, जब तक दूल्हे को वर-दक्षिणा के रूप में कुछ उपहार न दिया जाए। ऐसे में विवाह के समय बिना किसी मांग के दिए गए उपहारों को दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत दहेज की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि वर पक्ष की जिस शिकायत पर निचली अदालत ने आजाद के खिलाफ दहेज देने का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए थे। उस शिकायत में यह कतई नहीं कहा गया था कि आजाद ने अपने दामाद मुहम्मद खलीक को दहेज दिया। इस दौरान आजाद के वकील एससी मल्होत्रा ने विवाह के संबंध में पौराणिक काल की कई कथाओं का जिक्र किया।
पेश मामले में जमालुद्दीन अंसारी आजाद ने याचिका दायर कर अपने ऊपर दर्ज दहेज देने के मुकदमे को रद करने की मांग की थी। उनका कहना था कि उनकी बेटी नूरजहां ने अपने पति मुहम्मद खलीक व सास-ससुर के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था। इस पर खलीक ने कड़कड़डूमा कोर्ट में याचिका दायर कर आजाद पर दहेज देने का मुकदमा चलाए जाने की मांग की। महानगर दंडाधिकारी ने 17 अगस्त, 2010 को उनके खिलाफ दहेज देने का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दे दिए। सत्र अदालत ने भी इस फैसले को बरकरार रखा और मंडावली फजलपुर थाना की पुलिस ने उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कर दिया।
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