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हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, शिनाख्त परेड में शामिल होने से इन्कार पर नहीं ठहरा सकते दोषी

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि सिर्फ शिनाख्त परेड में शामिल होने से इन्कार के आधार पर किसी आरोपित को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। साक्ष्य अधिनियम1872 में ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है जो शिनाख्त परेड को वैधानिक अधिकार प्रदान करता हो।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 03 Nov 2020 10:55 PM (IST)Updated: Tue, 03 Nov 2020 10:55 PM (IST)
हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, शिनाख्त परेड में शामिल होने से इन्कार पर नहीं ठहरा सकते दोषी
हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला।

नई दिल्ली, आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में कहा कि सिर्फ शिनाख्त परेड में शामिल होने से इन्कार के आधार पर किसी आरोपित को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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पीठ ने कहा- शिनाख्त परेड कोई ठोस सुबूत नहीं 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने हत्या के दोषियों के खिलाफ मामले में कहा, 'दंड प्रक्रिया संहिता या भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 में ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है जो शिनाख्त परेड को वैधानिक अधिकार प्रदान करता हो।' पीठ ने कहा, चूंकि शिनाख्त परेड कोई ठोस सुबूत नहीं है, इसलिए इसे नहीं कराने से पहचान के साक्ष्य अस्वीकार्य नहीं हो जाते। आरोपित के दोष के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अदालत ठोस प्रकृति की पुष्टि योग्य सामग्री को देखेगी।

अभियोजन  की अपील: शिनाख्त परेड में शामिल होने से इन्कार करना दोषी होने का सुबूत

दूसरे शब्दों में शिनाख्त परेड अभियोजन द्वारा यह देखने के लिए गवाहों की स्मरण शक्ति का परीक्षण होती है कि अपराध में उनमें से किसी को या सभी को प्रत्यक्षदर्शी के तौर पर पेश किया जा सकता है अथवा नहीं। अभियोजन ने दलील दी थी कि आरोपितों ने शिनाख्त परेड में शामिल होने से इन्कार कर दिया था और यह उनके दोषी होने का सुबूत है।

हत्या के दोषियों ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के कानून के छात्र को हमलावरों के एक गुट ने विश्वविद्यालय के पास गोली मार दी थी। छात्र की बाद में मौत हो गई थी। मृतक छात्र के पिता इस हमले के प्रत्यक्षदर्शी थे। उनका दावा था कि अगर हमलावरों को उनके सामने पेश किया गया तो वह उन्हें पहचान लेंगे। सत्र अदालत ने जून, 2012 में अपीलकर्ता राजेश और अजय हुडा के साथ-साथ सहआरोपित को हत्या का दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी। फैसले के खिलाफ उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में अपील की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने अपील खारिज कर दी थी। इसके बाद आरोपितों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ताओं को दिया दोष मुक्त करार 

शीर्ष अदालत ने मामले के दो प्रमुख प्रत्यक्षदर्शियों की घटनास्थल पर उपस्थिति को लेकर भी संदेह जताया। साथ ही कहा कि मृतक के शरीर से मिली गोलियों और खाली खोखों के बैलिस्टिक साक्ष्य भी मेल नहीं खाते। शीर्ष अदालत ने कहा कि अभियोजन मामले को साबित करने में विफल रहा और अपीलकर्ताओं को दोष मुक्त करार दिया। साथ ही कहा कि वे पहले ही 12 साल जेल में बिता चुके हैं।


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