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    पानी की होगी पहचान... जरूरी है उपयोग में कंजूसी के साथ इसका संरक्षण

    By Monika MinalEdited By:
    Updated: Mon, 28 Dec 2020 12:32 PM (IST)

    पानी की कमी को वर्षा जल का संरक्षण करके तथा उसके उपयोग में किफायत बरत कर किसी हद तक दूर किया जा सकता है लेकिन उसके प्रदूषण से पार पाना एक समस्या है। ऐ ...और पढ़ें

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    जल के उपयोग में करनी होगी कंजूसी तभी संभव है इसका संरक्षण

    नई दिल्‍ली [ नदीपुत्र रमनकान्त त्यागी]। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति बढ़ती सरकार की सक्रियता और समाज की जागरूकता रंग ला रही है। इन संसाधनों के मामले में फिर धनी होने की ओर हम अग्रसर हैं। आने वाला नया साल इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस प्रकार से भारत के विभिन्न भागों में प्रति वर्ष पानी का संकट बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए समाज व सरकार दोनों स्तरों से सामूहिक पहल अति आवश्यक है। 

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    पानी की चिंता अगर सरकार ही करेगी तो यह संकट निरंतर गहराता ही जाएगा लेकिन अगर समाज भी सरकार के साथ तालमेल बैठाकर अपनी जिम्मेदारी को समझेगा तो भारत इस विकराल समस्या के मूल में पहुंचकर उसका समाधान कर सकने में सफल होगा। पानी की कमी को वर्षा जल का संरक्षण करके तथा उसके उपयोग में किफायत बरत कर किसी हद तक दूर किया जा सकता है लेकिन उसके प्रदूषण से पार पाना एक कठिन समस्या है। ऐसे हालात में साल 2021 हमारे सामने पानी के संबंध में चुनौतियों और संभावनाओं दोनों का वर्ष बन सकता है। 

    हमारे सामने भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘हर घर को नल से जल’ एक चुनौती के रूप में है। यह कठिन कार्य तब तक स्थाई समाधान का माध्यम नहीं बन सकता है जब तक कि हम समस्या के स्थान पर ही उसका समाधान नहीं करेंगे। आज अगर बुंदेलखंड या लातूर जैसे क्षेत्रों में पानी की कमी है तो हमें उसका समाधान वहीं खोजना होगा जोकि स्थायी भी होगा। पानी के संकट से उबरने के लिए हमें दो स्तरों से कार्य करना होगा। एक तो पानी का अधिकाधिक संरक्षण व दूसरा उसके उपयोग में कंजूसी बरतना। पानी की कमी व उसके प्रदूषण का सीधा व सरल समाधान हमें प्रतिवर्ष मिलने वाले बारिश के पानी में छुपा है। हमें इन वर्षा की बूंदों को सलीके से संजोकर या तो धरती के गर्भ में भेजना है या सूर्य की किरणों से बचाकर महफूज रखना है। 

    वर्षा जल को संजोने के लिए भारत के प्रत्येक राज्य में प्राकृतिक संरचनाएं (तालाब, जोहड़, आहरपाइन, कुंडी जैसे स्रोत) पहले से मौजूद हैं। समय की मार ने इन संरचनाओं को जीर्ण-शीर्ण कर दिया है। हमें इन प्राकृतिक जलस्रोत को पुनर्जीवित करके वर्षाजल को इनमें भेजने का पुख्ता इंतजाम करना है। दैनिक उपयोग, उद्योग व कृषि में खपत कम करने के लिए हमें समाज की अपनी पुरातन परंपराओं और तरीकों पर फिर से जाना होगा। सरकार को भी इसमें सख्ती दिखाते हुए कानून बनाकर उनको अमल में लाना होगा। अगर हम पानी का सही संरक्षण व उसका मितव्ययी उपयोग सीख गए तो नया साल पानी के क्षेत्र में खुशियों की फुहार सरीखा साबित होगा।

    (लेखक नीर फाउंडेशन के संस्‍थापक हैं,   हिमालयन एनवायरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन (हेस्को), देहरादून)