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अवैध कब्जे की गिरफ्त में आ रहीं ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

दिल्ली के कई क्षेत्रों में स्थित स्मारकों पर भी कब्जे हो चुके हैं। जिन एजेंसियों को ऐतिहासिक धरोहर को संजोने की जिम्मेदारी दी है उनमें भ्रष्टाचार के चलते स्मारकों पर अवैध कब्जे बढ़े हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 06 May 2018 02:43 PM (IST)Updated: Sun, 06 May 2018 02:43 PM (IST)
अवैध कब्जे की गिरफ्त में आ रहीं ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। हुमायूंपुर में ही नहीं दिल्ली के अन्य क्षेत्रों में स्थित स्मारकों पर भी कब्जे हो चुके हैं। जिन एजेंसियों को ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की जिम्मेदारी दी है उनमें बढ़ गए भ्रष्टाचार और संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के चलते ऐतिहासिक स्मारकों पर अवैध कब्जे बढ़े हैं। जमीन की बढ़ी कीमतें और लोगों की नीयत में आई खोट से ऐतिहासिक बस्ती निजामुद्दीन में तो तिलंगानी के मकबरे सहित आधा दर्जन से अधिक स्मारकों पर अवैध कब्जा कर परिवार रह रहे हैं। लोगों ने स्मारकों के चारों ओर दीवारें तक बना ली हैं और उसके ऊपरी भाग को देख कर ही पता चलता है कि दीवारों के अंदर स्मारक कैद हैं। हालात इस कदर खराब हैं कि इन स्मारकों की फोटो खींचना तो दूर सामने खड़े होकर बात भी नहीं कर सकते हैं।

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पर्यटकों के साथ अभद्र व्यवहार  

आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस शहर में पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने की बात की जा रही है इसी शहर में पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण निजामुद्दीन बस्ती में आए दिन पर्यटकों के साथ अभद्र व्यवहार होता है। ऐसे में बस्ती के अंदर दीवारों में कैद स्मारकों को देखने की पर्यटक हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। यदि गलती से कोई पर्यटक यहां पहुंच गया और स्मारकों की फोटो खींचने लगा तो स्मारकों में कब्जा कर रह रहे शरारती तत्व भिड़ जाते हैं। कैमरा व मोबाइल छीन लेते हैं। शिकायत करने पर पुलिस भी नहीं सुनती।

बावली के पास वाला गुंबद

निजामुद्दीन औलिया की बावली के साथ ही एक गुंबद है। बावली की ओर से तो उसका पीछे का ऊपरी भाग दिखता है। मगर नीचे का भाग दीवार से ढक दिया गया है। जबकि सामने के भाग से यह स्मारक नहीं दिखता है। इसे ईंटों से ढक दिया गया है।

गुमनामी में खो गया नगीना महल

बहादुरशाह जफर की पत्नी जीनत महल की बहन नगीना महल का महल शाहजहांनाबाद के फर्राश खाना में है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बहादुरशाह जफर ने यहां कई बार गुप्त बैठकें की थीं। आज भी यह सुरंग मौजूद है। नगीना महल ने प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में दिल्ली के गांवों में घूम घूम कर बहादुरशाह जफर के लिए जन समर्थन जुटाया था। इस महल में अब मकान बन गए हैं। इसके अंदर फैक्टियां चल रही हैं। यह महल कई बार बिक चुका है।

दो सिरिया गुंबद

निजामुद्दीन बस्ती में ही एक स्मारक है। इसमें कभी दो गुंबद थे। मगर एक तोड़ दिया गया है। इसमें भी लोग रहते हैं।विभागों की लापरवाही से स्मारकों पर कब्जे हुए हैं। कानून में थोड़ा सा लोचा होने के कारण भी विभाग ऐसे मामलों में कार्रवाई नहीं करते और इन पर अवैध कब्जे हो जाते हैं। लाल महल को बचाने के लिए हम लोगों ने 2012 में सेव लाल महल के नाम से अभियान चलाया था। तब जाकर इसे बचाया जा सका। तिलंगानी सहित अन्य कई मकबरों पर भी लोगों का कब्जा है। आगा खां ट्रस्ट ने इन स्मारकों के संरक्षण के लिए काम किया है। सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों को गंभीरता से लिया जाए।

लाल महल

यह स्मारक निजामुद्दीन बस्ती में थाने से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है। 1947 से पहले से इसके अंदर एक परिवार रहता था। 2012 में इसे तोड़कर एक बिल्डर इमारत बना रहा था। कुछ हिस्सा तोड़ भी दिया गया था। प्रशासन की सख्ती के बाद इसे टूटने से बचा लिया गया। मगर इस पर अब भी लोगों का ही कब्जा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की सूची में मकबरा शामिल नहीं है। लाल महल स्मारक आठ सौ साल पुराना है। इसे गयासुद्दीन बलबन ने बनवाया था। सबसे पहला गुंबद इसी महल में बनवाया गया था। इसमें अलाउद्दीन खिलजी का पहला राजतिलक हुआ था। भारत यात्र के दौरान अरब यात्री इब्नबतूता इसी में रहा था। कभी अमीर खुसरो भी इसी में रहा करते थे।   

हेरिटेज एक्टिविस्ट तिलंगानी का मकबरा

यह मकबरा निजामुद्दीन बस्ती के कोर्ट क्षेत्र में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए तंग गलियों से गुजरना पड़ता है। मकबरे में छह से अधिक लोग रहते हैं। इस विशाल मकबरे के अंदर कई कब्रें थीं जो पाट दी गई हैं। अंदर के भाग में दीवारें बना दी गई हैं। यह मकबरा फिरोजशाह तुगलक (1351-88) के वजीरे-आजम खाने जहां तिलंगानी का है। जिनका असली नाम खाने जहां मकबूल खां था। जो एक बरामदे से घिरा है और एक गुंबद से ढका है। इसकी प्रत्येक दिशा में तीन-तीन महरावी दरवाजे है। वास्तुकला की दृष्टि से दिल्ली में यह पहला अष्टभुजाकार मकबरा है।


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