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Positive India: IIT मद्रास की यह तकनीक दिमागी क्षमता का आकलन कर संकट से निपटने में करती है मदद

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि इलेक्ट्रोइंसेफेलोग्राम का इस्तेमाल कर कर्मचारियों के ब्रेनवेब्स को मापा जा सकता है। इससे उनकी दिमागी क्षमता का आकलन संभव है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Fri, 04 Sep 2020 08:54 AM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2020 08:57 AM (IST)
Positive India: IIT मद्रास की यह तकनीक दिमागी क्षमता का आकलन कर संकट से निपटने में करती है मदद
Positive India: IIT मद्रास की यह तकनीक दिमागी क्षमता का आकलन कर संकट से निपटने में करती है मदद

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि इलेक्ट्रोइंसेफेलोग्राम (ईईजी) का इस्तेमाल कर कर्मचारियों के ब्रेनवेब्स को मापा जा सकता है। इसकी मदद से खासकर मुश्किल या आपदा के समय कर्मचारियों की दिमागी क्षमता का आकलन करना आसान है। इस अध्ययन को इंडिया साइंस वायर ने जारी किया है और इसके निष्कर्ष कंप्यूटर्स एंड कंप्यूटर इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं।

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इसके अनुसार औद्योगिक इकाइयों में कार्यरत व्यक्तियों की मानसिक तरंगों का अध्ययन करके उनकी दुर्घटना से निपटने की तत्परता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे कर्मचारियों की किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में मानसिक सक्रियता का पता लगाया जा सकता है।

ईईजी के दौरान दिमाग की खोपड़ी में सेंसर लगा दिया जाता है। इसके माध्यम से दिमाग की गतिविधियों का पता लगाया जा सकता है। मानव मस्तिष्क तरंगों के विश्लेषण की यह पद्धति औद्योगिक दुर्घटनाएं रोकने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। आईआईटी मद्रास के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर राजगोपालन श्रीनिवासन ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है। उन्होंने बताया कि औद्योगिक दुर्घटनाओं में 70 फीसदी मामलों में मानवीय चूक जिम्मेदार होती है। किसी कर्मचारी की गलती उसकी स्किल की वजह से ही नहीं होती, बल्कि उसकी मानसिक अवस्था पर यह काफी हद तक निर्भर करती है। किसी काम को गलती मुक्त बनाया जा सकता है, अगर काम करने का मांग और उस परिस्थिति और कर्मचारियों की मनोदशा के बीच उपयुक्त सामंजस्य स्थापित किया जाए।

आईआईटी मद्रास की टीम ने केमिकल प्लांट में इसके माध्यम से मानव ऑपरेटर के कॉगनीटिव वर्कलोड (संज्ञानात्मक कार्यभार) का आकलन किया। कॉगनीटिव वर्कलोड इस बात को जांचता है कि एक व्यक्ति कोई कार्य कैसे कर सकता है। कॉगनीटिव वर्कलोड जितना अधिक होगा, उतनी ही गलती करने की संभावना अधिक रहती है।

प्रोफेसर श्रीनिवासन की योजना ईईजी तरंगों से संबंधित अध्ययन को अधिक जोखिम वाले उद्योगों में मानवीय क्षमता में सुधार के लिए उपयोग करने की है। इस प्रकार कर्मचारियों की मानसिक स्थिति के सटीक आकलन से औद्योगिक सुरक्षा को एक नया आयाम मिल सकता है। प्रोफेसर श्रीनिवासन ने कहा कि कई जोखिम वाले उद्योगों में ईईजी का इस्तेमाल कर किसी व्यक्ति की क्षमता को सुधारा जा सकता है। यही नहीं, इससे प्रशिक्षण को भी अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।  


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