जानें क्यों उड़ते ताबूत साबित हो रहे हैं मिग-27, 10 साल में 14 दुर्घटनाग्रस्त
समय-समय पर रिपेयर के साथ विमानों को बेकार ऐलान करने की जरूरत है, नहीं तो ऐसे विमान क्रैश की घटनाएं निरंतर जारी रहेंगी।
नई दिल्ली (जेएनएन)। जोधपुर के बनाड़ थाना इलाके में देवरिया गांव के पास भारतीय वायुसेना का मिग-27 लड़ाकू विमान क्रैश हो गया है। यह क्रैश विमान में तकनीकी खराबी के कारण हुआ। इसमें पायलट सुरक्षित है। मामले में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दे दिए गए हैं।
आसमां में ‘फ्लाइंग कॉफिन’
किसी भी मशीनरी को समय-समय पर रिपेयर व अपग्रेड करने के साथ-साथ खराब घोषित करने की आवश्यकता होती है। लेकिन वायुसेना में अभी भी 40-50 साल पुराने विमान हैं जोकि आसमान में पायलटों के लिए फ्लाइंग कॉफिन से कम नहीं हैं। इसे फ्लाइंग कॉफिन इसलिए कह सकते हैं क्योंकि अनेकों फाइटर पायलटों के लिए यह जानलेवा साबित हुई है।
इसका कारण है-
1. आउटडेटेड स्पेयर पार्ट
2. पुराने एयर-फ्रेम
3. सिस्टम की खराबी
जुलाई में मिग-23 और मिग 21 हुए थे क्रैश
इससे पहले छह जुलाई को भारतीय वायुसेना का ट्रेनर फाइटर जेट मिग 23 जोधपुर में क्रैश हुआ था। इस हादसे में फाइटर पर सवार दोनों पायलट सुरक्षित बाहर निकल गए थे। वहीं जुलाई में ही हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के एक गांव में एक मिग-21 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। इस घटना में भारतीय वायुसेना के एक पायलट की जान चली गई थी।
तेजस का है इंतजार
कुल मिलाकर निष्कर्ष यही निकल रहा है कि अधिकांश भारतीय विमान आउटडेटेड हो गए हैं। आखिरी बार सुखोई 30 सीरीज के विमान खरीदे गए थे। हम एलसीए-तेजस का आने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन यह निराश करने वाला साबित हो रहा है।
पर्याप्त नहीं वायुसेना के हवाईअड्डों की तैयारियां
अब वायुसेना की तैयारियों को लेकर कैग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि युद्ध के समय एयरफोर्स के हवाई अड्डों की अहम भूमिका होती है, जबकि दुश्मन भी सबसे पहले हवाई अड्डों पर हमला करता है। लेकिन वायुसेना के ज्यादातर हवाई अड्डों पर पहले से ही तैयारियों की कमी है। इनमें रनवे पुनर्वास प्रणाली बहुत पुरानी है।
1976 की ही प्रणाली
चार हवाई पट्टियों में तो 1976 में स्थापित की गई प्रणाली चली आ रही है, जिसमें लगे उपकरण संग्रहालय में रखने लायक हो चुके हैं। इससे नुकसान यह है कि यदि दुश्मन हमला करता है और यह क्षतिग्रस्त होती है तो इसे दुरुस्त करने में 24-36 घंटे लग जाएंगे, जबकि वायुसेना को तीन से छह घंटे में इसे दुरुस्त करने में समक्ष होना चाहिए।
राफेल विमानों की डील मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) का हिस्सा है लेकिन इनके आने में भी अभी काफी समय है। बता दें कि भारत ने 2016 में ही फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा किया था।
1960 के दशक का ही है फ्लीट
इसके लिए पूरी तरह सरकार दोषी है जो अब तक 1960 के दशक का फ्लीट चला रही है। मिग 21 क्रैश के अलावा करीब 6 एसयू-30 क्रैश हुए। इनमें से अधिकांश एसयू-30 स्वदेशी थे और अधिकांश में तकनीकी खराबी है न कि पायलट की गलती। मिग की जगह लेने के लिए स्वदेशी तेजस के निर्माण में भी विलंब हुआ। तेजस का लड़ाकू संस्करण अभी भी तैयार नहीं है। मिग की जगह लेने के लिए सुखोई एम.के.आई. विमानों की आपूर्ति में भी विलंब हुआ। इनके चलते वायुसेना मिग विमानों से काम चला रही है।
दी जाती है पूरी ट्रेनिंग
जहां तक ट्रेनिंग की बात है तो भारतीय वायुसेना के ट्रेनी पायलटों को पूरी फ्लाइंग ट्रेनिंग दी जाती है। अपने स्क्वाड्रन में जाने से पहले के दो सालों तक इनपर सीखने का लगातार दबाव होता है। एक अलग एक्जामिनेशन बोर्ड द्वारा हर साल इनके स्वास्थ्य और कुशलता की जांच की जाती है।
हटाए जा रहे हैं मिग-27
23 फरवरी 2011 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने संसद में कहा था कि 2017 तक मिग-27 विमानों को वायुसेना से हटा लिया जाएगा। उन्होंने कहा था कि इसके लिए बाकायदा कार्य योजना बनाई जा चुकी है। मिग-27 के ज्यादातर विमानों को रिटायर कर भी दिया गया है। लेकिन अब भी मिग-27 का अपग्रेडिड वर्जन इस्तेमाल हो रहा है और यह भी अगले साल के अंत तक रिटायर कर दिए जाएंगे।