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33 बार फेल होने वाले 51 वर्षीय नूरुद्दीन कोरोना के करम से हुए मैट्रिक पास, बोले- जारी रखूंगा पढ़ाई

कोरोना ने जहां देशभर की शिक्षण व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है वहीं तेलंगाना के एक 51 वर्षीय छात्र के लिए खुशियों का कारण बन गया। पढ़ें यह दिलचस्‍प रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 06:03 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 06:03 AM (IST)
33 बार फेल होने वाले 51 वर्षीय नूरुद्दीन कोरोना के करम से हुए मैट्रिक पास, बोले- जारी रखूंगा पढ़ाई
33 बार फेल होने वाले 51 वर्षीय नूरुद्दीन कोरोना के करम से हुए मैट्रिक पास, बोले- जारी रखूंगा पढ़ाई

हैदराबाद, एएनआइ। कोरोना संक्रमण की महामारी ने जहां देशभर की शिक्षण व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है, वहीं तेलंगाना के एक 51 वर्षीय 'छात्र' के लिए खुशियों का कारण बन गया। हैदराबाद निवासी यह 'छात्र' पिछले 33 साल से मैट्रिक (कक्षा 10) की परीक्षा में फेल हो रहा था, लेकिन कोरोना संक्रमण के मद्देनजर लिए गए सरकार के फैसले से इस बार सफलता उसके हाथ लग गई।

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मुहम्मद नूरुद्दीन के अनुसार, 'मैं पिछले 33 वर्षों से मैट्रिक की परीक्षा पास करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अंग्रेजी में कमजोर होने के कारण हर साल फेल हो जाता था। कोई मेरी मदद नहीं कर रहा था और मैं इतना सक्षम भी नहीं था कि अंग्रेजी की ट्यूशन ले सकूं। हर साल मैं फेल हो जाता था और अगले साल फिर परीक्षा में शामिल होने के लिए फॉर्म भरता था। मेरे भाई-बहन मेरी पढ़ाई में मदद करते थे।'

मुहम्मद नूरुद्दीन कहते हैं कि मैं सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करना चाहता था जिसके लिए मुझे 10वीं पास का प्रमाण पत्र लाने को कहा गया था। किस्मत से मुझे बिना मैट्रिक पास होने के प्रमाण पत्र के ही सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिल गई। वर्ष 1989 से मैं सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहा हूं और मुझे 7,000 रुपये मिलते हैं। मेरे चार बच्चे हैं। इस साल मैं कक्षा 10 की परीक्षा इसलिए पास कर गया, क्योंकि सरकार ने कोरोना संक्रमण के कारण बिना परीक्षा के ही सभी छात्रों को अगली कक्षा में भेजने का फैसला किया था।

उन्होंने कहा, 'मैं आगे की पढ़ाई जारी रखूंगा और स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई भी पूरी करूंगा। मुझे नौकरी चाहिए। पढ़े लिखे की सभी जगह इज्जत होती है।' उल्‍लेखनीय है कि देश में कोरोना संक्रमण के चलते कई शहरों में परीक्षाएं प्रभावित हुई थीं। नहीं कराई गई परीक्षाओं को दोबारा आयोजित कराने पर विचार किया गया था लेकिन बाद में संक्रमण के जोखिम को ध्‍यान में रखते हुए छात्रों को मूल्‍यांकन के जरिए अगली कक्षा में भेजने का फैसला किया था।  


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