सैकड़ों भारतीय भूमि कानूनों से पैदा होता है भ्रम व टकराव : रिपोर्ट
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार भारत की जिला अदालतों में 2.2 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें 75 लाख दीवानी वाद हैं।
नई दिल्ली, रायटर। भारतीय भूमि कानूनों की बड़ी संख्या और जटिलता के कारण ज्यादातर लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं। यही नहीं, विवादों को सुलझाने के लिए बनाए गए ये कानून टकराव भी पैदा करते हैं। नई दिल्ली की संस्था सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) को भारत के 29 में से सिर्फ आठ राज्यों के अध्ययन में पता चला कि राज्यों में करीब 150 संघीय कानूनों के साथ-साथ भूमि संबंधित 1,200 से अधिक कानून हैं।
सीपीआर में भूमि अधिकार पहल की प्रमुख नमिता वाही ने यहां भूमि अधिकार पर आयोजित एक संगोष्ठी में सोमवार को बताया कि ये कानून बहुत हद तक सुधार, अधिग्रहण, कराधान, भूमि उपयोग और रिकॉर्ड आदि से संबंधित हैं। इनमें से कुछ हमें औपनिवेशिक युग में वापस ले जाते हैं और कुछ विरोधाभासी हैं। उन्होंने कहा, 'हमारे पास बहुत सारे कानून हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डाटाबेस नहीं है।'
शेष 21 राज्यों में भूमि संबंधी कानूनों का अध्ययन कर रही वाही ने कहा कि देश में भूमि संबंधी सैकड़ों कानून हैं। इनमें औपनिवेशिक काल और उसके बाद के पचड़े भी हैं, जो भ्रम और टकराव की स्थिति को बरकरार रखते हैं।बेंगलुरू के अधिवक्ता दक्ष ने वर्ष 2016 में किए गए अध्ययन के आधार पर बताया था कि भारत में दर्ज होने वाले दीवानी मामलों में दो-तिहाई भूमि और संपत्ति से संबंधित हैं। इन मामलों में ज्यादातर कम आय और शिक्षा वाले लोग संलिप्त हैं।
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, भारत की जिला अदालतों में 2.2 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें 75 लाख दीवानी वाद हैं। 60 लाख से ज्यादातर मामले पांच साल से ज्यादा समय से चल रहे हैं। भूमि अधिकार पर काम करने वाले वकीलों के समूह लैंडेसा की शिप्रा देव का कहना है कि कई मामले विरासत से संबंधित हैं, क्योंकि राज्यों में अलग-अलग कानून हैं। कई जगहों पर धर्म और रिवाज के आधार पर भी मामले तय होते हैं।