यहां हर दूसरे दिन एक बच्चा हो रहा तस्करी का शिकार, दिल्ली-मुंबई में बिक रहा बचपन
एक साल के अंदर मानव तस्करी के 205 मामले बाल संरक्षण विभाग के पास आए हैं। इस प्रकार देखा जाए तो हर माह 17 से भी अधिक बच्चे मानव तस्करी के शिकार हो रहे हैं।
चाईबासा, [मोहम्मद तकी]। झारखंड का पश्चिम सिंहभूम जिला मानव तस्करी का केंद्र बन चुका है। इस जिले से हर माह 10 से 20 बच्चों की तस्करी हो रही है। किसी माह यह आंकड़ा 30 के भी पार पहुंच जाता है। इसकी खास वजह यहां व्याप्त गरीबी और अशिक्षा है। पैसों के लोभ में लोग अपने बच्चों को तस्करों के हाथों बेच देते हैं। इसके बदले तस्कर उन्हें मामूली रकम ही देते हैं।
80 फीसद मामलों में बच्चों को तस्करों के हाथ में देने वाले परिवार के जानकार ही होते हैं, जो परिवार के मुखिया को लालच देकर नाबालिग को काम के लिए दिल्ली, मुंबई, चेन्नई समेत अन्य बड़े शहरों में भेजते हैं। वहां से उनका रैकेट इस कार्य को करता है। जरूरत की जगहों पर बच्चों का दाम तय कर उन्हें काम पर लगाया जाता है। एक साल के अंदर मानव तस्करी के 205 मामले बाल संरक्षण विभाग के पास आए हैं। इस प्रकार देखा जाए तो हर माह 17 से भी अधिक बच्चे मानव तस्करी के शिकार हो रहे हैं। यानी हर दो दिन में एक मासूम जिंदगी को दल-दल में धकेल दिया जाता है।
पश्चिम सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर, गोईलकेरा, सोनुवा, मनोहरपुर, गुदड़ी व आनंदपुर प्रखंड में सबसे ज्यादा मानव तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं। इसकी एक वजह इन्हीं प्रखंडों के आसपास से गुजरने वाली मुख्य रेल लाइन भी है। मुंबई, दिल्ली समेत देशभर के लिए इसी मार्ग से लंबी दूरी की ट्रेनें गुजरती हैं। इससे तस्कर गरीब बच्चों को आसानी से दूसरी जगहों पर लेकर चले जाते हैं।
बाल संरक्षण विभाग दिखा रहा सही राह
साल 2017 में छुड़ाकर लाए गए 200 से अधिक बच्चों में जिला बाल संरक्षण विभाग की ओर से विशेष आवासीय बालक विद्यालय मनोहरपुर में 15 बालकों का नामांकन कराया गया है। जबकि 10 बच्चों का नामांकन इसी मार्च के महीने में कराया जाना है। इसी तरह जिले के विशेष आवासीय बालिका विद्यालय में 9 बच्चियों के नामांकन के लिए सूची भेजी गई है। दो बच्चियों को कस्तूरबा आवासीय विद्यालय और दो बच्चियों का एकलव्य विद्यालय में नामांकन कराने की तैयारी चल रही है। इस माह के अंत तक इन मासूमों का नामांकन हो जाएगा।
कागज पर चल रहा काम
झारखंड में 14 जुलाई 2011 को चार थानों को एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट के रूप में अधिसूचित किया गया था। इनमें गुमला, सिमडेगा, दुमका और खूंटी जिले के नगर थाने शामिल थे। बाद में रांची, पश्चिम सिंहभूम, लोहरदगा और पलामू को भी इसमें शामिल कर लिया गया। पश्चिम सिंहभूम जिले की स्थिति यह है कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट बस नाम के लिए काम कर रही है। यहां पीड़ित बच्चों का न तो ठीक तरह से डाटा उपलब्ध है और न ही मानव तस्करों की कोई सूची या रिकॉर्ड। थाने का चक्कर न लगाना पड़ जाए, यह सोचकर कई बार मानव तस्करी के शिकार परिवार मामला तक दर्ज नहीं कराते हैं।
एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट को करना है यह काम
इस यूनिट का गठन बच्चों, युवतियों और महिलाओं की तस्करी रोकने के लिए किया गया था। यूनिट को जिले में मानव तस्करों का डाटाबेस तैयार करना था। इसे स्वतंत्र इकाई घोषित किया गया था। एक यूनिट में 12 पुलिस अधिकारी के पद सृजित किए गए थे। वाहन और कैमरे आदि देने की बात कही गई थी। लेकिन पश्चिम सिंहभूम जिले में यह पूरी तरह जमीन पर नहीं उतर पाया है।
चाईबासा के उपायुक्त अरवा राजकमल कहते हैं, मानव तस्करी की जानकारी होने के बाद तत्काल पुलिस कार्रवाई करती है। इसके लिए लोगों को जागरुक करने का कार्य भी किया जा रहा है। किसी प्रकार की कोई घटना से जुड़ी जानकारी हो तो तुरंत 100 नंबर पर कॉल कर जानकारी दे सकते हैं। इसके अलावा इसे रोकने के लिए भी विशेष तैयारी जिला प्रशासन की ओर से की जा रही है।
मानव तस्करी से झारखंड के ये जिले हैं प्रभावित
पश्चिम सिंहभूम, खूंटी, गुमला, रांची, गढ़वा, साहेबगंज, सिमडेगा, गोड्डा, लातेहार और लोहरदगा। इन जिलों से आए दिन तस्कर गरीब युवतियों और बच्चों को रोजगार दिलाने के नाम पर ले जाते हैं।
मानव तस्करी से जुड़ी प्रमुख बातें
- पश्चिम सिंहभूम जिले में वर्ष 2014 से 2016 के बीच मानव तस्करी के कुल 309 मामले सामने आए।
- पश्चिम सिंहभूम का मानव तस्करी के मामले में राज्य में दूसरा स्थान है।
- सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार भूले हुए बच्चे हों अथवा मानव तस्करी के शिकार बच्चे, सभी की प्राथमिकी मानव तस्करी एक्ट के तहत दर्ज करनी है।
- पश्चिम सिंहभूम में मानव तस्करी रोकने के लिए एक इकाई भी गठित की गई है। यहां मामले दर्ज होते हैं।