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Immunity को बेहतर करने व पोषण की जंग में नवजातों को कवच देने में 'ह्यूमन मिल्क बैंक' दे रहा योगदान

मिल्क बैंक में मिलने वाला ‘लिक्विड गोल्ड’ यानी मां का दूध बड़ी संख्या में कुपोषित और प्रीमैच्योर नवजातों के लिए बन रहा है जीवनदान देने वाला अमृत...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Sun, 06 Sep 2020 07:57 AM (IST)
Immunity को बेहतर करने व पोषण की जंग में नवजातों को कवच देने में 'ह्यूमन मिल्क बैंक' दे रहा योगदान
Immunity को बेहतर करने व पोषण की जंग में नवजातों को कवच देने में 'ह्यूमन मिल्क बैंक' दे रहा योगदान

नई दिल्‍ली, सीमा झा। अदृश्य दुश्मन से सहमी दुनिया इम्युनिटी वर्धक उत्पादों की खरीद में जुटी है। रोग प्रतिरक्षा तंत्र को बेहतर करने व पोषण की जंग में नवजातों को यह कवच देने में ह्यूमन मिल्क बैंक लंबे समय से अपना योगदान दे रहे है। मिल्क बैंक में मिलने वाला ‘लिक्विड गोल्ड’ यानी मां का दूध बड़ी संख्या में कुपोषित और प्रीमैच्योर नवजातों के लिए बन रहा है जीवनदान देने वाला अमृत...

34वर्षीया रूबी शुक्ला (बदला हुआ नाम) ने तय तारीख से दो माह पहले बच्चे को जन्म दिया। नवजात का वजन महज एक किलो दो सौ ग्राम था। बच्चे को नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट में ले जाते देख वहां मौजूद स्वजन रो पड़े। ऑपरेशन के कारण अचेत रूबी स्तनपान कराने में अक्षम थीं। हालांकि हॉस्पिटल स्टाफ कोलेस्ट्रम यानी मां के दूध का पहला द्रवनुमा पदार्थ बच्चे को दिलाने में कामयाब हो गया था, पर बच्चे के पोषण के साथ-साथ जीवनरक्षक बना ‘ह्यूमन मिल्क बैंक’ से मिला दूध। लेह में जन्में नवजात को जब मां ने देखा कि वह स्तनपान नहीं कर पा रहा है तो चिकित्सक से संपर्क किया गया।

डॉक्टर ने उसकी जटिलता को देख तुरंत ऑपरेशन की सलाह दी। बच्चे को आनन-फानन दिल्ली लाया गया, पर स्वास्थ्य कारणों के चलते मां लेह में ही रही। डॉक्टर ने बच्चे के पोषण और जल्द सुधार के लिए मां का दूध उपलब्ध कराने की मांग की। तब लेह से दिल्ली तक के लंबे सफर को तय करते हुए एक माह तक बच्चे को मां का दूध नियमित मिला। हालांकि यदि हॉस्पिटल में ही ह्यूमन मिल्क बैंक की सेवा मिल जाती तो परिवार को इतनी मुश्किलें नहीं झेलनी पड़तीं।

वरदान बना यह बैंक: ग्लोबल स्वास्थ्य संस्था ‘पाठ’ यानी प्रोग्राम फॉर अप्रोप्रिएट टेक्नोलॉजी इन हेल्थ के अनुसार, देशभर में करीब 60 मदर मिल्क बैंक हैं। यह संख्या निजी और सार्वजनिक, दोनों प्रकार के अस्पतालों को मिलाकर है, पर यह आंकड़ा बहुत कम है। यूनिसेफ के अनुसार, दक्षिण एशियाई देशों में अमूमन 41 फीसद बच्चों को ही जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध मिल पाता है।

 वरिष्ठ लैक्टेशन एक्सपर्ट डॉ. शाची बावेजा के अनुसार, केवल मां के दूध पर ही बच्चा छह माह तक बड़े आराम से रह सकता है, पर हकीकत अलग और कड़वी है। मां के दूध से वंचित ऐसे बच्चों के लिए ही वरदान है ‘ह्यूमन मिल्क बैंक’।राजस्थान में संचालित सभी 18 मिल्क बैंक सेवा शुरू करने में प्रमुख योगदान दे चुकीं पूनम मल्लिक फिलहाल अलवर मिल्क बैंक की मैनेजर हैं। वह कहती हैं, ‘यहां का माहौल आपको भावुकता और उल्लास से भर देगा। मांएं स्वेच्छा से दूध दान कर जाती हैं। उस दूध से कई बच्चों की जान बचाई जा रही है।’

धाय मां के देश में: राजस्‍थान में मिल्‍क बैंक शुरू कराने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले योगगुरु देवेंद्र अग्रवाल कहते हैं, ‘हम जब बुनियादी समस्याओं को देखेंगे तो पता चलेगा कि अभी बहुत काम करना शेष है। स्तनपान संस्कृति की कमी या जागरूकता का अभाव ऐसी ही बुनियादी समस्या है। मिल्क बैंक सेवा में इस खास पहलू पर भी काम किया जाता है।’ राजस्थान के पहले कम्युनिटी बैंक ‘दिव्या मिल्क बैंक’ में इसकी शुरुआत हुई। योगगुरु देवेंद्र कहते हैं, ‘यह तथ्य बेहद पीड़ादायक है कि धाय मां वाली संस्कृति वाले देश में बच्चे को मां के दूध के बिना जान गंवानी पड़े। बच्चों को दूध न मिलने के कई कारण हैं। इस तरह की समस्याओं के निदान के लिए दिव्या मिल्क बैंक पहल कर रहा है।’

काउंसलर से बनती बात: पूनम बताती हैं, ‘मिल्क बैंक को तैयार करने में कई लोगों की भूमिका होती है पर इसमें सबसे खास भूमिका है काउंसलर की। वे मांओं को दूध दान देने के लिए प्रेरित करती हैं और उन्हें यकीन दिलाया जाता है कि भले ही यह काम जटिल हो, मगर यह उनके और तमाम बच्चों के हित में है।’ पूनम के अनुसार, मिल्क बैंक सेवा की शुरुआत से पहले हमें हर जिले व गांवों में जाकर लोगों से बात करनी होती है।

जहां कुछ मांएं इस बात को सिरे से नकार देती थीं तो कुछ शरमाकर मुंह छिपाकर बैठ जाती थीं, पर अब लोग काफी जागरूक हो चुके हैं। मांएं डिलीवरी के बाद अस्पताल से घर लौटने के बाद दूध दान देने की जरूरत को अपनी ड्यूटी मानने लगी हैं। एक ऐसा ही वाकया पूनम बताती हैं, ‘हमें उस वक्त हैरानी हुई जब एक मां ने डिलीवरी के दो घंटे के बाद अपने खर्च पर मिल्क बैंक आकर दूध दान किया और वह नियमित दूध दान करने आने लगीं। आखिरकार हमने उनके लिए बाइक भेजनी शळ्रू की, क्योंकि अभी ऐसी व्यवस्था नहीं है कि डोनर को कैब की सुविधा दे सकें।’

बन सकता है मजबूत हथियार: आज हम एक अनजाने दुश्मन से लड़ रहे हैं और एक ही ज्ञात हथियार है रोग प्रतिरोधक क्षमता की बेहतरी। डॉ. शाची कहती हैं, ‘आज कोविड-19 जैसे शत्रु से बचाव के लिए पोषण युक्त खानपान को लेकर बेचैनी स्वाभाविक है। ऐसे में सबसे मजबूत व आजमाए हुए हथियार पर काम करना शुरू कर देना चाहिए। मां का दूध सबसे सशक्त हथियारों में से एक है। इससे न तो बच्चों में कुपोषण होगा और न ही रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होगी।'

ह्यूमन मिल्क बैंक

यह किसी अस्पताल या नर्सिंग होम में संचालित की जाने वाली सेवा है। जहां मां के दूध को एकत्रित कर समुचित प्रकिया के बाद बच्चों की जरूरत के हिसाब से उन्हें उपलब्ध कराया जाता है। यह पूरी तरह निःशुल्क सेवा है।

यदि बनना हो डोनर- पहले जांच करें कि आप अपने बच्चे को पर्याप्त स्तनपान करा पा रही हैं। इसके बाद भी दूध की मात्रा अधिक आ रही हो तो मिल्क बैंक में ऑनलाइन आवेदन करें। जरूरी निर्देश और खास प्रक्रिया पूरी करने के बाद मिल्क बैंक दूध स्वीकार करेगा।

सेहतमंद भविष्य का उपहार
राजस्थान के उदयपुर के योगगुरु देवेंद्र अग्रवाल ने बताया कि बड़ा बुरा लगता है जब गोल-मटोल बच्चे जरा सी परेशानी सहन नहीं कर पाते। वहीं, दूसरी ओर कृषकाय बच्चों की भी बड़ी संख्या है। सर्वांगीण विकास और मोटापे की समस्या से बचने में मां का दूध अनिवार्य होता है। समुचित जागरूकता और मिल्क बैंक की सहायता से हम बच्चों को एक सेहतमंद भविष्य का उपहार दे सकते हैं।

प्रोत्साहन से बनेगी बात

जयपुर के जेके लोन हॉस्पिटल के सुपरिंटेंडेंट डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि इतने खर्चों के बावजूद बच्चे सेहतमंद न हों तो यह चिंता का विषय है। हर शहर, गांव में मिल्क बैंक की सुविधा हो तो प्रीमैच्योर बच्चों को असमय होने वाली मौत से बचाया जा सकता है। मिल्क बैंक उनकी बड़ी मदद कर सकते हैं, जैसे ब्लड बैंक को प्रोत्साहन मिलता है, मिल्क बैंक को भी मिलना चाहिए।

संपूर्णता में समाधान

नई दिल्ली के बीएलके हॉस्पिटल के वरिष्ठ लैक्टेशन एक्सपर्ट डॉ. शाची बावेजा ने बताया कि बच्चे के जन्म के बाद हमारे यहां छह माह की पेड लीव है, लेकिन बच्चों की सेहत को लेकर हम जागरूक नहीं हैं। बच्चे के जन्म के बाद अगर मां दूध पिलाने में सक्षम नहीं होती तो लोग बच्चे को बाहरी आहार देना या बाहरी दूध पिलाना शुरू कर देते हैं। समस्या को संपूर्णता में देखें, तभी जमीनी बदलाव संभव होंगे।