भविष्य में होगा वाटर वार, भारत भी नहीं रहेगा इससे अछूता लिहाजा बचकर रहें
रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक भविष्य में पानी के लिए दंगे होंगे और ये तीसरे विश्व युद्ध की वजह बनेगा।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पानी प्रकृति की वह अमूल धरोहर है जिसे सहेजने में इंसान विफल साबित हो रहा है। अब इस मुद्दे पर सचेत करने वाली रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक भविष्य में पानी के लिए दंगे होंगे और ये तीसरे विश्व युद्ध की वजह बनेगा।
शोधकर्ताओं ने दुनियाभर में पांच क्षेत्रों को चिंहित किया है, जहां अगले सौ सालों में पानी को लेकर वैश्विक संघर्ष होगा। ग्लोबल एनवायरमेंटल चेंज में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक इसमें नील नदी, गंगा-ब्रह्मपुत्र, सिंधु, दजला-फरात (टाइग्रिस- यूफ्रेट्स) और कोलोराडो नदी शामिल हैं। इसके लिए मशीन लर्निंग तकनीक इस्तेमाल की गई है।
तीन फीसद पीने योग्य पानी
धरती की सतह पर मौजूद 71 फीसद पानी में 97 फीसद सागर और महासागर में खारा पानी है जिसे इंसान पीने और खाना पकाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता है। महज तीन फीसद पानी पीने योग्य है जिसमें से भी 2.4 फीसद उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर जमा है। सिर्फ 0.6 फीसद नदियों, झीलों और तालाब के रूप में मौजूद है।
बढ़ेगा संघर्ष
- अगले पचास से सौ सालों में पानी को लेकर घोर संकट शुरू हो जाएगा।
- चिंहित स्थानों में से कई जगह पानी पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
- वर्तमान में पानी की कमी से जूझ रहे इलाके सबसे पहले सूखे की चपेट में आएंगे।
...तो कैसे बचेगा पानी
भविष्य में पानी का संकट बढ़ाने के दो कारक मुख्य हैं। पहला जलवायु परिवर्तन होगा जिससे भीषण गर्मी, लू की लपटें और सूखा पड़ेगा। दूसरा इंसानी आबादी का दवाब पानी की कमी का अहम कारण होगा।
मशीन लर्निंग से खतरे का आकलन
यूरोपियन कमीशन की संयुक्त शोध टीम ने मशीन लर्निंग विधि के जरिए पानी के संकट से भविष्य की स्थिति और वजहों को जानने की कोशिश की है ताकि चिह्नित क्षेत्रों में मौजूद जल संसाधनों को संरक्षित किया जा सके। खासतौर वह क्षेत्र जहां जल स्नोत सीमावर्ती देशों द्वारा साझा किए जाते हैं।
मौका है, चेतिए...
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक धरती को ग्लोबल वॉर्मिंग से बचाने के लिए सिर्फ बारह साल का समय है।
- धरती को सूखा, भीषण गर्मी और भयंकर बाढ़ जैसे हालातों से बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन को संतुलित करना होगा।
- सैकड़ों ऊर्जा संयत्रों और वातावरण में धुंआ छोड़ने वाली चिमनियों को बंद करना होगा।
- जंगल और हरियाली का संरक्षण करना होगा।
- पानी की बर्बादी रोकनी होगी।
- कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को बंद करना होगा और वातावरण में ग्रीन हाउस गैस को खत्म करना होगा।
- मांसाहार भोजन अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है लिहाजा शाकाहार भोजन अपनाना होगा।
- सौर ऊर्जा के इस्तेमाल पर जोर देना होगा।
भारत भी शामिल
सौ साल में पानी के संकट जूझ रहे क्षेत्रों में गंगा-ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी का शामिल होना स्पष्ट संकेत देता है कि भारत भी इस जल युद्ध में शामिल होगा।
दूरगामी प्रभाव
पानी का अभाव राजनीतिक संघर्ष भी पैदा करेगा। सरकारों पर स्वच्छ पानी मुहैया कराने का दवाब होगा। संकट से जूझ रहे देशों की सरकारों और पर्याप्त पानी के स्नोत वाले देशों के बीच भी युद्ध की स्थितियां बनेंगी। पानी के स्नोत बांटने वाले देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता आएगी।