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जिस युवा पीढ़ी के दम पर भारत देख रहा महाशक्ति बनने का सपना, वह हो रही नशे की शिकार

भारत युवाओं के बलबूते ही दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहा है, पर दुख की बात है कि देश के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा इन दिनों नशे की गिरफ्त में है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 28 Feb 2018 11:31 AM (IST)Updated: Wed, 28 Feb 2018 04:15 PM (IST)
जिस युवा पीढ़ी के दम पर भारत देख रहा महाशक्ति बनने का सपना, वह हो रही नशे की शिकार

नई दिल्ली [आरके सिन्हा]। अभी पिछले सप्ताह की ही बात है जब करोड़ों रुपये की हेरोइन के एक सौदागर को बड़ी खेप के साथ पटना रेलवे स्टेशन के पास पकड़ा गया था। वह पश्चिम बंगाल के मालदा जिले से बिहार में सप्लाई करने के लिए आया था। वह मादक पदार्थो को बांग्लादेश से लाकर बंगाल और बिहार से देश के बाकी भागों में अमृतसर तक ले जाता था। दरअसल बिहार में बांग्लादेशी हेरोइन बरास्ता पश्चिम बंगाल के मालदा के रास्ते पहुंचती है। अब सवाल पश्चिम बंगाल सरकार और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) से है। ये सीमा-पार से हो रही मादक पदार्थो की तस्करी पर अंकुश लगाने में क्यों विफल रहे हैं? जिन सरकारी विभागों की नशे का कारोबार करने वालों पर कठोर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी है, वे कहां बैठे हैं?

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नशे की बेखौफ सप्लाई
बांग्लादेश सीमा से सटा पश्चिम बंगाल का मालदा जिला तो सच में देशभर में नशे की बेखौफ तरीके से सप्लाई कर रहा है। मालदा जिले के सुदूर गांवों में आप दूर-दूर तक अफीम की खेती होते भी हुए देख सकते हैं। इसकी बुआई नवंबर और दिसंबर में होती है और कटाई फरवरी मार्च में। इन खेतों के आसपास दिन-रात बंदूकधारी गार्ड पहरा दे रहे होते हैं। मजाल है कि कोई इन्हें कुछ कह दे। इन इलाकों में सरकार या प्रशासन नाम की कोई चीज दिखाई ही नहीं देती। इधर स्थानीय जनता भी बड़े स्तर पर अफीम की खेती करके उसे बेचने के व्यापार में ही लगी है।कहने वाले कहते हैं कि नशा बेचकर सीमापार से आतंकवादियों के लिए अत्याधुनिक हथियार खरीदे जाते हैं। यह सब करना बेहद आसान है, क्योंकि दोनों देशों की सीमा पर खुलेआम लोगों की घुसपैठ और मादक पदार्थो की तस्करी होती है।

तस्करों से घूस
तस्करों से घूस लेते हुए या खुद ही मादक पदार्थो की तस्करी करते हुए सरकारी कर्मचारी यदा-कदा पकड़े भी जाते हैं। कुछ दिनों की सख्ती और शांति के बाद फिर से पहले की तरह गैर-कानूनी धंधा चालू हो जाता है। पश्चिम बंगाल पुलिस के महानिदेशक (इंटेलिजेंस) राज कनौजिया ने एक बार खुद भी माना था कि मालदा में मादक पदार्थो और जाली करेंसी का धंधा धड़ल्ले से होता है। उनसे पूछा जाना चाहिए कि राज्य सरकार की पुलिस, सीमा सुरक्षा बल और दूसरी सरकारी एजेंसियों को इन काले कारनामों को अंजाम देने वालों की कमर तोड़ने में दिक्कत क्यों आती है? मालदा से मिलने वाली पुख्ता जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वहां पर बच्चे, किशोर, नौजवान सभी नशा बेचने का कारोबार कर रहे हैं।

बिहार से लाई जाती है सटा है हेरोइन 
मालदा में जब नशे के कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई होती है तो वहां की जनता तगड़ा बवाल काटती है। चूंकि मालदा बिहार से सटा है तो पहले यहां पर हेरोइन लाई जाती है। नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के एक आला अफसर बता रहे थे कि एक किलो हेरोइन की कीमत छह लाख रुपये के आसपास रहती है। जैसे-जैसे इसकी मात्र कम करके बेची जाती है, इसकी कीमत बढ़ती ही जाती है। दरअसल पूरे देश को नशे का दास बनाने की साजिश रची जा रही है और पूरी कोशिश हो भी रही है। एक जमाने में पंजाब का शहर धुरी पूरे सूबे या यूं कहें कि उत्तर भारत में अपनी चावल मिलों के कारण मशहूर था। चावल कारोबारी खूब कमा-खा रहे थे। उनके पास काम करने वाले भी मौज में थे, पर बीते कुछ सालों से धुरी की तस्वीर बदल गई है। अब यह शहर नशेड़ियों का गढ़ हो गया।

अब नशे से लड़ रहा पंजाब  
धुरी उसी पंजाब का शहर है, जिस पंजाब के बारे में स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि इधर के योद्धाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों से जमकर लोहा लिया। अफसोस कि जो प्रदेश कभी अपने लहलहाते खेतों और सरहदों की रखवाली करने वालों के लिए जाना जाता था, अब नशे से लड़ रहा है। देखा जाए तो पूरे देश में बढ़ती नशे की समस्या नौजवानों को महामारी की तरह अपनी चपेट में ले रही है। भारत युवाओं के बलबूते ही दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देखता है, पर देश के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा अब नशे की गिरफ्त में है। यह बात समझ से परे है कि भारत जैसे आध्यात्मिक देश के नौजवान जिंदगी बिताने के लिए नशे के बिना क्यों नहीं तैयार हैं। अफीम, गांजा, चरस, स्मैक, हेरोइन, कोकीन और एलएसडी जैसी खतरनाक ड्रग्स युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर रही हैं।

सड़कों के किनारे नशाखोर
आप दिन में किसी भी समय देश की राजधानी के दिल कनाट प्लेस तक में नशाखोरों को सड़कों के किनारे या अंडरपासों में समूहों में नशा करते हुए देख सकते हैं। इन्हें पुलिस भी कुछ नहीं कहती तक नहीं। भारत में नशे का सामान बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार और नेपाल से पहुंचता है। आपको हर हफ्ते नाइजीरियाई नागरिकों के पुलिस के चंगुल में फंसने की खबरें भी पढ़ने को मिलती हैं। समझ नहीं आता कि ये किस तरह से भारत में आकर यह सब करने लगते हैं और हमारी सुरक्षा एजेंसियां कुछ नहीं कर पातीं। क्या हमारा कानून इतना लचर है कि हम इनके विरुद्ध कुछ नहीं कर पाते? जहां तक देश के पूवरेत्तर भाग की बात है तो नारकोटिक्स विभाग का कहना है कि पूवरेत्तर में नशीले पदार्थो की सबसे बड़ी खेप म्यांमार से ही आती है।

म्यांमार के तामु से चलती है नशीले पदार्थो की खेप
नशीले पदार्थो की खेप म्यांमार के तामु से चलती है जो मणिपुर के छोटे शहर मोरे पहुंचती है, वहां से इंफाल और कोहिमा होते हुए यह ड्रग्स दीमापुर पहुंचती है। पूवरेत्तर में सबसे ज्यादा ड्रग्स की तस्करी दीमापुर, मणिपुर और नगालैंड के रास्ते से ही होती है। भारत दुनिया का शायद एकमात्र देश है, जहां कानूनन अफीम का उत्पादन होता है। मालदा का हमने ऊपर जिक्र किया है। कानूनी तौर पर वहां अफीम का इस्तेमाल दवाइयां बनाने में होता है, लेकिन सच्चाई यह है कि इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा या ज्यादा हिस्सा गैरकानूनी तरीके से नशे का धंधा करने वालों के हाथों में पहुंच जाता है।

अफीम की कानूनन खेती
राजस्थान में चितौड़गढ़, मध्य प्रदेश में मंदसौर, रतलाम, नीमच, और उत्तर प्रदेश में गाजीपुर में भी अफीम की कानूनन खेती होती है। दरअसल नशे के धंधे से लड़ने के लिए समाज और सरकार को मिलकर युद्ध स्तर पर पहल करनी होगी। सख्त कानून बनाने होंगे। अभी केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो नशे के खिलाफ चलने वाली तमाम नीतियों को बनाता है। बेशक सीबीएन को अपनी लड़ाई को और व्यापक बनाने की जरूरत है। जाहिर है अगर इच्छाशक्ति हो तो नशे के खिलाफ जंग जीती जा सकती है।
(लेखक राज्यसभा के सदस्य हैं)

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