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जानिए- आखिर क्‍या बला है फानी, जो 10 लाख से अधिक लोगों की जिंदगी में लाया तूफान

कम वायुमंडलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज आंधी को चक्रवात कहते हैं। दक्षिणी गोलाद्र्ध में इन गर्म हवाओं को चक्रवात के नाम से जानते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 04 May 2019 10:46 AM (IST)Updated: Sun, 05 May 2019 07:40 AM (IST)
जानिए- आखिर क्‍या बला है फानी, जो 10 लाख से अधिक लोगों की जिंदगी में लाया तूफान
जानिए- आखिर क्‍या बला है फानी, जो 10 लाख से अधिक लोगों की जिंदगी में लाया तूफान

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। बंगाल की खाड़ी में उठे चक्रवात फानी ने ओडिशा के पुरी में 245 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तांडव मचाया। इसके कारण कई इलाकों में पेड़ और बिजली के खंभे गिर गए। ओडिशा के बाद फणि अब बंगाल की ओर बढ़ रहा है। हालांकि पहले ही तटीय क्षेत्रों से लोगों को हटा कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचा दिया गया।

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नाम को लेकर भ्रम
इस चक्रवात के नाम को लेकर भ्रम की स्थिति रही। कोई इसे फोनी कह रहा है तो कोई फानी तो कोई फेनी। हालांकि इस चक्रवात का नाम बांग्लादेश के सुझाव पर फणि रखा गया था और इसे वहां फोनि उच्चारित किया जाता है। वहां इसका स्थानीय मायने सांप होता है। अंग्रेजी में इसे फानी लिखा जा रहा है, जिसकी वजह से हिंदी में इसका उच्चारण फनी या फणि प्रचलित हो गया।

दसवां चक्रवात
फानी पिछले 52 वर्षों में मई में भारत से टकराने वाला दसवां चक्रवात है। इससे पहले 1968, 1976, 1979, 1982, 1997, 1999 और 2001 की मई में इस तरह के चक्रवात देखे गए थे। आमतौर पर खतरनाक चक्रवात भारत के पूर्वी तट पर मानसून के मौसम (अक्टूबर-दिसंबर) में आते हैं। 1965 और 2017 के बीच के 52 वर्षों में देश में 39 अत्यंत खतरनाक चक्रवात आए।

क्या है चक्रवात?
कम वायुमंडलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज आंधी को चक्रवात कहते हैं। दक्षिणी गोलाद्र्ध में इन गर्म हवाओं को चक्रवात के नाम से जानते हैं और ये घड़ी की सुई के चलने की दिशा में चलते हैं। जबकि उत्तरी गोलाद्र्ध में इन गर्म हवाओं को हरीकेन या टाइफून कहा जाता है। ये घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में घूमते है।

क्यों आता है चक्रवात?
गर्म क्षेत्रों के समुद्र में सूर्य की भयंकर गर्मी से हवा गर्म होकर अत्यंत कम वायुदाब का क्षेत्र बना देती है। हवा गर्म होकर तेजी से ऊपर आती है और ऊपर की नमी से संतृप्त होकर संघनन से बादलों का निर्माण करती हैं। रिक्त स्थान को भरने के लिए नम हवाएं तेजी के साथ नीचे जाकर ऊपर आती हैं। फलस्वरूप ये हवाएं बहुत ही तेजी के साथ उस क्षेत्र के चारों तरफ घूमकर घने बादलों और बिजली कड़कने के साथ-साथ मूसलधार बारिश करती हैं। कभी-कभी तो तेज घूमती इन हवाओं के क्षेत्र का व्यास हजारों किमी में होता हैं।

ऐसे पड़ता है नाम
विश्व मौसम संगठन और युनाइटेड नेशंस इकोनामिक एंड सोशल कमीशन फार एशिया एंड पैसिफिक द्वारा जारी चरणबद्ध प्रक्रियाओं के तहत किसी चक्रवात का नामकरण किया जाता है। आठ उत्तरी भारतीय समुद्री देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका, और थाईलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के 64 (हर देश आठ नाम) नाम तय करते हैं। जैसे ही चक्रवात इन आठों देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची से अगला दूसरा सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है। इन आठ देशों की ओर से सुझाए गए नामों के पहले अक्षर के अनुसार उनका क्रम तय किया जाता है और उसी क्रम के अनुसार इन चक्रवाती तूफानों के नाम रखे जाते हैं। 2004 में नामकरण की यह प्रकिया शुरू की गई।

कौन से इलाके होते हैं प्रभावित?
भारत के तटवर्ती इलाके विशेषकर ओडिशा, गुजरात, आंध्र प्रदेश ,पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक महाराष्ट्र और गोवा चक्रवती तुफान से ज्यादा प्रभावित होते है।

विनाश लीला

  • अक्टूबर 1737 सबसे पुराना और भयानक चक्रवात जिसमें कोलकाता और इसके डेल्टा क्षेत्र के 3 लाख लोग मारे गए।
  • 17 और 24 दिसंबर 1964 रामेश्वरम में आए इस चक्रवात ने धनुषकोडी को नक्शे से मिटा दिया। रामेश्वरमसे चलने वाली पूरी यात्री ट्रेन बह गई। मंदापाम और
  • रामेश्वरम को जोड़ने वाला पुल भी बहा।
  • 8-13 नवंबर 1970 बांग्लादेश में 3 लाख लोग मारे गए।
  • 14-20 नवंबर 1977 आंध्र प्रदेश के निजामापटनम में आए चक्रवात ने दस हजार लोगों की जान ली।
  • अक्टूबर 1942 मिदनापुर में आए इस चक्रवात में हवाओं की रफ्तार 225 किमी प्रति घंटा थी।
  • अक्टूबर 1999 ओडिशा में आए बड़े चक्रवात से 1.3 करोड़ लोग प्रभावित हुए। 7 मीटर ऊंची लहरों से दस हजार लोग मारे गए।
  • परंपरा की शुरूआत चक्रवातों के नाम रखने की प्रवृत्ति ऑस्ट्रेलिया से शुरू हुई। 19वीं सदी में यहां चक्रवातों का नाम भ्रष्ट राजनेताओं के नाम पर रखा जाने लगा।

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