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अंग्रेजों ने भारत में कैसे की 'सबसे बड़ी लूट', जानें तीन हजार लाख करोड़ के लूट की कहानी

कोलंबिया विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक 1765 से 1938 के बीच अंग्रेज भारत से तीन हजार लाख करोड़ रुपये लूटकर ले गए। आइये जानते हैं उन्‍होंने इस लूट को कैसे अंजाम दिया था।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 06 Oct 2019 07:52 AM (IST)Updated: Sun, 06 Oct 2019 12:40 PM (IST)
अंग्रेजों ने भारत में कैसे की 'सबसे बड़ी लूट', जानें तीन हजार लाख करोड़ के लूट की कहानी

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। हाल ही में अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में अटलांटिक काउंसिल की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत में 200 साल तक शासन किया और वे यहां से 45 टिलियन डॉलर (करीब तीन हजार लाख करोड़ रुपये) लूटकर ले गए। उन्होंने ये आंकड़े जानी-मानी अर्थशास्त्री उत्सव पटनायक की इकोनॉमी स्टडी रिसर्च रिपोर्ट के आधार पर बताए हैं। पिछले साल कोलंबिया विश्वविद्यालय की ओर से जारी की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, 1765 से 1938 के बीच अंग्रेज भारत से 45 टिलियन डॉलर की संपत्ति लूटकर ले गए। आइये जानते हैं अंग्रेजों ने इस लूट को कैसे अंजाम दिया था।

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हिंसा के लिए किया इस्तेमाल

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में एक्सचेंज रेट 4.8 अमेरिकी डॉलर प्रति पाउंड था। भारत जो पैसा ब्रिटेन ने भारत से चुराया उसे हिंसा के लिए इस्तेमाल किया। साल 1840 में चीनी घुसपैठ और 1857 में विद्रोह आंदोलन को दबाने का तरीका निकाला गया और उसका पैसा भी भारतीयों के द्वारा दिए गए कर से ही लिया गया। भारतीय राजस्व से ही ब्रिटेन अन्य देशों से जंग का खर्च निकालता था और कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का विकास करता था।

कंगाल करके छोड़ा

इस पूरी भ्रष्ट व्यवस्था का असर ये हुआ कि भले ही पूरी दुनिया के सामने भारत बेहद अच्छा बिजनेस कर रहा था और बेहद अच्छा मुनाफा कमा रहा था, जो अगले तीन दशकों तक देश को चला सकता था पर भारत के राजसी खजाने और वित्तीय कागजों में देश कंगाल हो रहा था। भारत की असली कमाई ब्रिटेन लूटकर ले जा रहा था।

टैक्स एंड बाय सिस्टम किया लागू

जब ब्रिटिश राज भारत में 1847 तक पूरी तरह से लागू हो गया उस समय नया टैक्स एंड बाय सिस्टम लागू किया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी का काम कम हो गया और भारतीय व्यापारी खुद निर्यात करने के लिए तैयार हो गए। भारत से जो कोई भी विदेशी व्यापार करना चाहता था उसे खास काउंसिल बिल का इस्तेमाल करना होता था। ये एक अलग पेपर करंसी होती थी, जो सिर्फ ब्रिटिश क्राउन द्वारा ही ली जा सकती थी और उन्हें लेने का एक मात्र तरीका था लंदन में सोने या चांदी द्वारा बिल लिए जाएं।

ऐसे पहुंचा ब्रिटेन में मुनाफा

जब भारतीय व्यापारियों के पास ये बिल जाते थे तो उन्हें इसे अंग्रेज सरकार से कैश करवाना होता था। इन बिल्स को कैश करवाने पर उन्हें रुपयों में पेमेंट मिलती थी। ये वो पेमेंट होती थी जो उन्हीं के द्वारा दिए गए टैक्स द्वारा इकट्ठा की गई होती थी यानी व्यापारियों का पैसा ही उन्हें वापस दिया जाता था। इसका मतलब बिना खर्च अंग्रेजी सरकार के पास सोना-चांदी भी आ जाता था और व्यापारियों को लगता था कि ये पैसा उनका कमाया हुआ है। ऐसे में लंदन में वो सारा सोना-चांदी इकट्ठा हो गया जो सीधे भारतीय व्यापारियों के पास आना चाहिए था।

सेंध लगाने की शुरुआत

ये सब कुछ ट्रेड सिस्टम के आधार पर हुआ। औपनिवेशिक काल के पहले ब्रिटेन भारत से कई तरह का सामान खरीदा करता था। इसमें कपड़े और चावल प्रमुख थे। भारतीय विक्रेताओं को अंग्रेजों की तरफ से कीमत भी उसी तरह से मिलती थी, जिस तरह से अंग्रेज अन्य देशों में व्यापार करते थे। यानी चांदी के रूप में, लेकिन 1765 के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के विकास के साथ ही उसका भारतीय व्यापार पर एकछत्र राज हो गया।

निर्यात से हुआ मुनाफा

निर्यात के कारण यूरोप के अन्य हिस्सों से ब्रिटेन में बहुत ज्यादा आय आने लगी। सस्ते दाम पर खरीदे गए सामान को ज्यादा दामों में बेचकर ब्रिटेन ने न सिर्फ 100 फीसद मुनाफा कमाया, बल्कि उसपर और भी ज्यादा राजस्व प्राप्त किया।

लूट के इन तरीकों से हुए मालामाल 

ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई तरह के कर लगाए। ये कर व्यापारियों पर लगाए गए और साथ ही साथ आम नागरिकों पर भी। इन करों का असर ये निकला कि कंपनी की आमदनी बढ़ गई। इसी आमदनी का एक तिहाई हिस्सा भारतीयों से सामान खरीदने पर खर्च कर दिया जाता था। यानी जो कर व्यापारी देते थे उसका एक हिस्सा उनसे सामान खरीदने के लिए ही खर्च कर दिया जाता था। इस तरह भारतीय सामान को अंग्रेज मुफ्त में इस्तेमाल करते थे। उसके लिए अपनी जेब से पैसा नहीं देते थे। जो भी सामान भारत से लिया जाता था उसे सस्ते दामों पर व्यापारियों के टैक्स से पैसे से ही खरीदा जाता था। फिर उसे ब्रिटेन में इस्तेमाल किया जाता था और वहीं से बचा हुआ सामान बाकी देशों में निर्यात कर दिया जाता था। यानी मुफ्त का सामान इस्तेमाल भी किया जाता था और बेचा भी जाता था। 


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