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बांग्लादेश से घुसपैठ रोकने के लिए होगा हाइटेक तरीके का इस्तेमाल, लगेंगे ड्रोन, सेंसर और थर्मल इमेजर

असम में बांग्लादेश से घुसपैठ का मुद्दा नया नहीं है इस हिस्से से देश के विभाजन के बाद से ही सीमा पार से घुसपैठियों के आने का सिलसिला जारी है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 01 Dec 2019 02:35 PM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 12:06 AM (IST)
बांग्लादेश से घुसपैठ रोकने के लिए होगा हाइटेक तरीके का इस्तेमाल, लगेंगे ड्रोन, सेंसर और थर्मल इमेजर
बांग्लादेश से घुसपैठ रोकने के लिए होगा हाइटेक तरीके का इस्तेमाल, लगेंगे ड्रोन, सेंसर और थर्मल इमेजर

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत बांग्लादेश सीमा पर लगातार हो रही घुसपैठ और तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) अब हाइटेक तरीके का इस्तेमाल कर रही है। इस सीमा पर तस्करी और घुसपैठ की शिकायतें काफी बढ़ गई थी, इसको देखते हुए अब बीएसएफ की ओर से ये कदम उठाया गया है। सुरक्षा बल ने तस्करी और घुसपैठ रोकने के लिए यहां पर अत्याधुनिक ड्रोन के अलावा जमीन के नीचे और नदियों में सेंसर लगा दिए हैं।

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इसके अलावा इस्त्रायल से रिमोट से संचालित ड्रोन, सेंसर और थर्मल इमेजर भी खरीदे गए हैं। इससे पहले मार्च में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बांग्लादेश सीमा से लगे असम के धुबड़ी इलाके में एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली का उद्घाटन किया था, उसी के बाद से इस दिशा में ये कदम उठाया गया है।

विभाजन के बाद से ही घुसपैठियों के आने का सिलसिला जारी 

असम में बांग्लादेश से घुसपैठ का मुद्दा नया नहीं है, इस हिस्से से देश के विभाजन के बाद से ही सीमा पार से घुसपैठियों के आने का सिलसिला जारी है। घुसपैठ को लेकर ही 1980 के दशक में असम में 6 साल तक आंदोलन भी हो चुका है। इसके बाद भी सीमापार से तस्करी और घुसपैठ पर किसी तरह से रोक नहीं लग सकी। दरअसल असम की 263 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश से सटी है। इसमें से 119.1 किलोमीटर का इलाका नदियों से जुड़ा है।

नदियों से लगे इलाके से हो रही घुसपैठ 

सेना का कहना है कि तस्कर पशुओं की तस्करी और इंसानों की घुसपैठ के लिए नदियों से लगे इलाके का ही इस्तेमाल करते हैं। सेना के जवानों का कहना है कि एक समय आता है जब 24 घंटे निगाह रखना मुश्किल होता है। मानसून के दौरान नदियों के उफनने की वजह से उन इलाकों में हमेशा निगाह नहीं रखी जा सकती है। इसी वजह से अब सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की ओर से ऐसे इलाकों पर निगाह रखने के लिए ड्रोनों, थर्मल इमेजर व सेंसर के इस्तेमाल किया जा रहा है।

धुबड़ी जिले से होती है सबसे अधिक घुसपैठ 

सेना के अधिकारी बताते हैं कि असम के धुबड़ी जिले में 61 किलोमीटर लंबी बांग्लादेश सीमा पर तस्करों और सीमापार से होने वाली अवैध गतिविधियों पर निगाह रखना बहुत मुश्किल होता है। इसी इलाके से ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में घुसती है। वहां आस-पास कई छोटी नदियां हैं जो बरसात के सीजन में उफनने लगती हैं। तस्कर इसी का फायदा उठा कर अपनी हरकतें तेज कर देते हैं और घुसपैठ करते हैं। धुबड़ी सेक्टर में हर महीने औसतन तस्करी से बांग्लादेश भेजी जाने वाली एक दर्जन गायें जब्त की जाती हैं। इनको पुलिस को सौंप दिया जाता है। वहां कोई दावेदार नहीं मिलने पर कुछ दिनों बाद ऐसे पशुओं को नीलामी से बेच दिया जाता है।

इस्राएल से खरीदे गए ड्रोन और थर्मल इमेजर 

बीएसएफ की ओर से अब सीमा पर होने वाली इस घुसपैठ और पशुओं की तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए धुबड़ी सेक्टर में इस्राएल से खरीदे गए ड्रोन और थर्मल इमेजर का इस्तेमाल किया जाएगा। बांग्लादेश के साथ असम सीमा का बड़ा हिस्सा नदियों से जुड़ा है, इस वजह से वहां बाड़ लगाना संभव नहीं है। यहां जो ड्रोन इस्तेमाल किए जाएंगे वो हाइ रिजोल्यूशन तकनीकी से लैस है और डेढ़ सौ मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भर सकते हैं। वह बताते हैं कि पशुओं व नशीले पदार्थों की तस्करी अमूमन रात में की जाती है। 

भौगोलिक स्थिति भी जिम्मेदार 

धुबड़ी जिले की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि आपराधिक तत्व अक्सर नदी के पानी में छिपकर सीमा पार कर लेते हैं। ऐसे घुसपैठियों को रोकने के लिए बीएसएफ ने अंडरवाटर थर्मल इमेजर लगाए हैं, धुबड़ी इलाके में सीमा पर जमीन के नीचे भी सेंसर लगाए गए हैं। इससे इंसान या पशुओं की आवाजाही का पता चल जाएगा। बीएसएफ जो ड्रोन इस्तेमाल कर रही है वो पतंग की तरह उड़कर ऊंचाई से तस्वीरें ले सकता है। ऊंचाई और दिशा तय करने के लिए ड्रोन से जुड़े केबल को जमीन से रिमोट से नियंत्रित किया जा सकता है।

37 लाख रुपये है ड्रोन की कीमत 

बीएसएफ ने जो ड्रोन खरीदें उनमें एक ड्रोन की कीमत 37 लाख रुपए है। इनमें दिन-रात के समय देख सकने वाले कैमरे लगे हैं, यह दो किमी तक की तस्वीरें ले सकते हैं। इन पर तेज हवाओं या प्रतिकूल मौसम का खास असर नहीं होता। इस्राएल से खरीदे गए ड्रोन टेथर ड्रोन हैं। सामान्य और टेथर ड्रोन में अंतर यह है कि सामान्य ड्रोन को बैटरी बदलने के लिए हर आधे घंटे बाद नीचे उतारना पड़ता है और तेज हवा से यह दूर जाकर गिर सकते हैं लेकिन टेथर ड्रोनों पर तेज हवाओं का असर नहीं होता।

सीमा के दोनों ओर अल्पसंख्यक आबादी 

बीएसएफ अधिकारी बताते हैं कि तस्कर इन ड्रोनों को आसानी से देख सकते हैं। बावजूद इससे उनके मन में देखे जाने का अंदेशा तो बना ही रहेगा। ड्रोनों की तैनाती का मकसद ऐसे तस्करों को यह संदेश देना है कि हम चौबीसों घंटे उनकी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं। बीएसएफ की निगाहों से बचने के लिए तस्कर अक्सर नए-नए तरीके ईजाद करते रहते हैं। सीमा के दोनों ओर अल्पसंख्यक आबादी होने की वजह से उस पार से आने वाले लोग स्थानीय आबादी में आसानी से घुल-मिल जाते हैं।

सीमा पर 900 चौकियों पर 81 बटालियन तैनात 

बीएसएफ के अधिकारी बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बनी 900 से ज्यादा सीमा चौकियों पर बीएसएफ की 81 बटालियनें तैनात हैं। उनकी तादाद बढ़ाने की भी पहल की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि कुछ इलाकों में जीरो लाइन तक घनी आबादी की वजह से भी दिक्कतें आती हैं। अवैध रूप से सीमापार करने वाले लोग स्थानीय आबादी के साथ घुल-मिल जाते हैं, उनकी पहचान करना मुश्किल है।  


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