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..और शर्मसार हुआ ऐतिहासिक गांव भरथुआ

मुजफ्फरपुर [जासं]। दिल्ली के गांधीनगर दुष्कर्म कांड के मुख्य आरोपी मनोज ने भरथुआ गांव का सिर शर्म से झुका दिया है। मुजफ्फरपुर जिले के औराई प्रखंड के इस गांव का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। यह बेनीपुर के बगल का गांव है। बागमती के नए तटबंधों के बीच फंसा हुआ है।

By Edited By: Published: Sat, 20 Apr 2013 03:39 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2013 04:19 PM (IST)
..और शर्मसार हुआ ऐतिहासिक गांव भरथुआ

मुजफ्फरपुर [जासं]। दिल्ली के गांधीनगर दुष्कर्म कांड के मुख्य आरोपी मनोज ने भरथुआ गांव का सिर शर्म से झुका दिया है। मुजफ्फरपुर जिले के औराई प्रखंड के इस गांव का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। यह बेनीपुर के बगल का गांव है। बागमती के नए तटबंधों के बीच फंसा हुआ है।

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यह बहुत ही प्राचीन गांव है। कहते हैं कि राजा भतृहरि को जब वैराग्य हो गया तब वह यहीं के जंगलों में आकर रहने लगे थे। वैराग्यशतकम् की रचना उन्होंने यहीं रहते हुए की थी। पास में पंचभिखा [पंचभिंडा] नाम का एक डीह [टीला] है। कहते हैं कि भतृहरि ने यहीं डेरा-डंडा डाला, तपस्या की और वैराग्यशतकम् लिखा। अगर यह सच है तो इस गांव का नाम पहले कभी भतृहरि आश्रम या भतृहरि ग्राम रहा होगा जो कि समय के साथ भरथुआ हो गया।

यहां के बाशिंदे बताते हैं कि यह इलाका पहले जंगल था और दरभंगा महाराजा की रियासत का हिस्सा था। सन 1672 में औरंगजेब के जमाने में जब चोटी [टिकी] पर कर लगा तो उनके पूर्वज बाबा शिवनाथ नगरकोट, कांगड़ा से यहां चले आए। सामने डीह पर एक बहुत बड़ा कुआं था। वहीं उन्होंने एक सियार को देखा एक कुत्ते को खदेड़ते हुए, तब उनको लगा कि यह जरूर कोई संस्कारी जगह है सो यहीं रह गए। यहीं कटौंझा के पास शंकरपुर का गढ़ है जहां भुअरबार नाम का एक डकैत रहता था, वह राजा को टैक्स नहीं देता था। बाबा शिवनाथ कुछ जमीन की आशा से राजा के पास गए तो राजा ने जो दान-पत्र लिखा उसमें कहा कि पहले भुअरबार से मिल लीजिए। राजा को शायद अनुमान था कि वह डाकू उन्हें यहां रहने नहीं देगा। मगर बाबा का शरीर भी पर्वताकार था। बाबा ने इस जगह पर कब्जा कर लिया। बाबा तो अकेले आए थे। यहां परसौनी राज में मीनापुर थाने में एक भटौलिया गांव है, जहां ब्रह्मभट्ट लोग रहते थे और परसौनी के राजा ने ही बाबा का विवाह उस गांव में करवाया। उनकेआठ लड़के हुए। उन्हीं आठों के वंशज अब यहां रहते हैं। बगल में एक नमोनारायण का मन्दिर है, जिसे गांव के एक मौनी बाबा ने बनवा दिया था।

भरथुआ की व्यथा सुन आए थे गांधी जी

मुजफ्फरपुर। भरथुआ में महात्मा गांधी के पांव भी पड़े थे। यह अलग बात है कि एक दरिंदे ने इस गांव को शर्मसार कर दिया है। बताते हैं कि 1934 के बिहार भूकंप के समय पूरे मुजफ्फरपुर जिले में जबर्दस्त तबाही हुई थी। भूकंप के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद पास के बेदौल गांव में कैंप कर रहे थे और राहत कार्यो की देख-रेख किया करते थे। उन दिनों भरथुआ में इसी नाम का एक चौर हुआ करता था। भूकंप के बाद चौर के पानी की निकासी में बड़ी बाधा पड़ी और वनस्पतियों के संपर्क से यह पानी सड़ने लगा और चारों ओर दुर्गन्ध व्याप्त होने लगी। रामवृक्ष बेनीपुरी के सौजन्य से विद्यालंकार जी ने राजेंद्र बाबू से गांधी जी के लिए एक चिट्ठी लिखवाई और उनसे संपर्क किया और उन्हें भरथुआ की व्यथा बताई। गांधी जी ने कहा कि यदि वहां की स्थिति इतज्ी ज्यादा खराब है तो वह इसे खुद देखना चाहेंगे और ब्रिटिश सरकार से पानी की निकासी की सिफारिश करेंगे। गांधी जी के इतने आश्वासन पर रामवृक्ष बेनीपुरी उन्हें भरथुआ लाने में सफल हुए और नाव पर पूरा इलाके का भ्रमण कराया। उन दिनों यहां मलेरिया फैला हुआ था और ज्यादातर लोग बीमार थे। यहां का पानी काला हो गया था और जलवायु स्वास्थ्य के लिए पूरी तरह से दूषित हो चुकी थी। इस तरह से भरथुआ की जलनिकासी की व्यवस्था हुई। आज ऐतिहासिक भरथुआ गांव इस घटना के बाद शर्मसार है।

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