सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू तालिबान शब्द को लेकर हुआ हंगामा
हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के वकीलों में तीखी झड़पें हुईं। यहां तक कि कोर्ट को कहना पड़ा कि ये शब्द अवांछित और संदर्भ से अलग था।
नई दिल्ली [माला दीक्षित]। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुनवाई के दौरान शुक्रवार को हिन्दू तालिबान शब्द पर जमकर हंगामा हुआ। हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के वकीलों में तीखी झड़पें हुईं। यहां तक कि कोर्ट को कहना पड़ा कि ये शब्द अवांछित और संदर्भ से अलग था। मुख्य न्यायाधीश ने वकीलों को अदालत की गरिमा और भाषा का संयम बनाए रखने की नसीहत भी दी। लेकिन हिन्दू तालिबान शब्द पर अड़े मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश की नसीहत दरकिनार करते हुए दो टूक कहा कि वे गलत भाषा के इस्तेमाल की उनकी बात से सहमत नहीं है वे अपनी बात पर कायम हैं।
जब मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ मामले पर सुनवाई के लिए बैठी तभी हिन्दू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने पिछली सुनवाई में राजीव धवन के हिन्दू तालिबान शब्द का इस्तेमाल करने पर कड़ी आपत्ति जताई। जैन ने कहा कि इस शब्द से उन्हें गहरी पीड़ा हुई है और इससे हिन्दुओं की छवि खराब हुई है। उन्होंने कोर्ट से ऐसे शब्दों पर रोक लगाने और दिशानिर्देश देने की मांग की। लेकिन तभी धवन खड़े हो गए और उन्होंने कहा कि वे अपनी बात पर कायम हैं। उनकी बात का संदर्भ देखा जाए। उन्होंने कहा कि जैसे बामियान में मुस्लिम तालिबानियों ने बुद्ध की मूर्ति तोड़ी थी वैसे ही 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद तोड़ने वाले हिन्दू तालिबानी थे। तभी वकील कौशल किशोर चौधरी धवन की बात पर जोर जोर से चिल्लाने लगा।
चौधरी ने कहा कि आप पूरे हिन्दू समुदाय को हिन्दू तालिबान कैसे कह सकते हैं। लेकिन धवन शब्द दोहराते हुए अपनी बात पर कायम रहे। जिस पर भगवान रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कोर्ट से धवन के रवैये पर अंकुश लगाने की मांग की और कहा कि ये रवैया ठीक नहीं है। कोर्ट मे चारो ओर से शोर बढ़ने लगा। तभी मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वकीलों को कोर्ट की मर्यादा और भाषा के संयम का ध्यान रखना चाहिए। प्रयोग किया गया शब्द अवांछित और संदर्भ से अलग था। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। लेकिन धवन ने कहा कि वे उनसे सहमत नहीं हैं और उन्हें असहमत होने का हक है। जब धवन अपनी बात पर अंत तक अड़े रहे तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोई अड़ा रहे तो क्या किया जा सकता है। बाद में जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से बात खत्म करने और मुख्य मामले में बहस शुरू करने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित
मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नही मानने वाले 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले के अंश को पुनर्विचार के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजे जाने की मुस्लिम पक्ष की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
राजीव धवन ने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए क्योंकि फैसले में दी गई व्यवस्था गलत है और ये अयोध्या जन्मभूमि मामले के मालिकाना हक मुकदमें पर असर डालता है। हालांकि हिन्दू पक्ष ने मांग का विरोध किया है और कहा है कि फैसले के इतने वर्षो बाद इस पर पुनर्विचार की मांग करके मुस्लिम पक्ष अयोध्या विवाद के मुख्य मामले की सुनवाई में देरी करना चाहता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मांग का विरोध करते हुए इसे देरी की रणनीति कहा था।