Hindi Diwas 2022: वैश्विक भाषा बनने की राह पर निरंतर अग्रसर हिंदी
विगत आठ वर्षों के दौरान सशक्त होता भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए मजबूत दावे कर रहा है तो ऐसे में विश्व हिंदी सम्मेलनों की यह मांग बहुत ही उचित लगती है कि संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में हिंदी को भी स्थान मिलना चाहिए।
डा. धर्मेंद्र प्रताप सिंह। हिंदी की यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता रही है कि उसने अपना विकास स्वयं अपने आधार पर किया है। तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप ढलने और समकालीन चुनौतियों से पार पाते हुए उसने एक पूर्ण भाषा के रूप में अपनी पहचान बनाई है। विभिन्न जनभाषाओं के संगम उसके विकास में सहयोगी बने तो वह देश-विदेश के बड़े भू-भाग पर समझी-बोली जाने लगी। यह व्यापकता हिंदी की जीवंतता का राज है। भूमंडलीकरण के युग में हिंदी अनिवार्य भाषा के रूप में विकसित हुई है।
भारत के अथाह संभावनाओं वाले बाजार पर छा जाने के उद्देश्य से बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हिंदी को अपनाया। उत्पादों को बाजार से उपभोक्ताओं के हाथों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने हिंदी को चुना। ऐसा करते हुए इन कंपनियों ने विदेशी उत्पादों के भी विज्ञापन ठेठ देसी हिंदी में बनाए, क्योंकि अंग्रेजी आज भी तथाकथित अभिजात्यों की भाषा है और सामान्य भारतीय तो देसी हिंदी भाषा में ही सोचता, समझता और बोलता है। इस नई भूमिका में आने से हिंदी का क्षितिज-विस्तार हुआ। संपर्क भाषा के रूप में उसकी भूमिका आज पहले से बढ़ी है। परंतु यह विडंबना ही है कि संविधान द्वारा राजभाषा के रूप में स्वीकार किए जाने के बावजूद हिंदी को सही अर्थों में फारसी या अंग्रेजी की तरह राज्याश्रय कभी प्राप्त नहीं हो सका।
हिंदी विश्व की एक प्रधान भाषा के रूप में आज अपना स्थान बना चुकी है। उसके अखिल भारतीय एवं विश्वव्यापी स्वरूप के अनेक संदर्भ आज सहज दिखाई पड़ते हैं। इंटरनेट हो या हिंदी फिल्में, कलात्मक सिनेमा हो या मीडिया के विभिन्न माध्यम, सभी जगहों पर आज हिंदी को विकसित अवस्था में देखना-सुनना सुखद अनुभूति है। टीवी और रेडियो के कार्यक्रमों एवं विज्ञापनों में अंग्रेजी का प्रतिशत कम हुआ है। प्रादेशिक और अखिल भारतीय प्रसारणों में हिंदी के कार्यक्रमों और विज्ञापनों का प्रतिशत आज पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है।
विश्व मंच पर हिंदी की सार्थक भूमिका का एक पक्ष हिंदी फिल्मों और संगीत का पहले से ही गुंजायमान है। हिंदी फिल्म और उनके गीत सात समंदर पार दुनिया के कोने-कोने में सुने-देखे और पसंद किए जाते हैं। फिल्मी गीतों की लोकप्रियता ने हिंदी को व्यापक पहचान दिलाई है। हिंदी के विज्ञापन अधिक व्यंजक, कलात्मक एवं रोचक बनते हैं। व्यापक बाजार तंत्र ने हिंदी की ताकत पहचानी और बढ़ाई है।
हिंदी के समाचार पत्रों की प्रसार संख्या बीते दशक में तेजी से बढ़ी है। इनका प्रसार दूरदराज के गांवों तक हो चुका है। स्मार्टफोन और इंटरनेट ने हिंदी में उपलब्ध व्यापक सामग्री को जनसामान्य तक सुगमता से पहुंचाने में प्रभावी भूमिका निभाई है।
भारत को जानने के प्रति बढ़ी रुचि : एक समय था जब विश्व के अन्य देशों में भारत के संदर्भ में शोध और अध्ययन केवल भारतीय विद्वान ही करते थे। परंतु आज उभरती हुई विश्व शक्ति के नाते अधिकांश देशों के सामान्य नागरिकों में भी भारत और भारतीयता को जानने-समझने में अभिरुचि बढ़ी है। लोग भारतीय समाज, सभ्यता और संस्कृति के साथ तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और उसकी भाषा के बारे में जानने को जिज्ञासु हैं।
भारत से बाहर विश्व के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में हिंदी की विधिवत शिक्षा दिया जाना इसका एक प्रमाण है। भारत के बाहर हिंदी जानने वाले अब केवल उन्हीं देशों में नहीं हैं जहां बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय रहते हैं, बल्कि दक्षिण-पूर्वी एशिया के सभी देशों के साथ अमेरिका, इजराइल, फ्रांस, जर्मनी, सऊदी अरब, रूस आदि देशों में भी हिंदी की स्थिति में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। वैश्वीकरण की गति में शामिल होते हुए वह वैश्विक अभिव्यक्ति की भाषा बनी है। आज विश्व हिंदी सम्मेलन भारत के बाहर फिजी, मारीशस और त्रिनिदाद में ही नहीं होते, बल्कि लंदन, न्यूयार्क और दक्षिण अफ्रिका में भी आयोजित हो रहे हैं। विश्वभर में आयोजित होने वाले इन सम्मेलनों ने बदलते युग में हिंदी के विस्तार और विश्वव्यापी प्रगति के लिए अनेक सार्थक उपाय सुझाए हैं। हिंदी भाषी क्षेत्रों के बाहर कलकतिया हिंदी, हैदराबादी हिंदी और बंबईया हिंदी से भी हिंदी समृद्ध हुई है।
हिंदी आज अनिवासी भारतीयों की मदद से पंख फैलाकर उड़ रही है। संचार माध्यमों में जो हिंदी प्रयोग में लाई जा रही है, उसका स्वरूप अब वह नहीं है जो हम अरसे से सुनते-पढ़ते आए थे। आज की हिंदी वस्तुतः दूसरी परंपरा की हिंदी है, जो साहित्यकारों द्वारा प्रयोग होने वाली साहित्यिक-परिनिष्ठित हिंदी से बहुत आगे निकल चुकी है। वह वैश्विक भाषा बनने की ओर अग्रसर है, जिसमें उसका सरोकार बाजार और तकनीक से जुड़ता है। बाजार और तकनीक से जुड़कर आज वह रोजगार की भाषा बन चुकी है। अपनी समस्याओं को अपने ढंग से सुलझाने के लिए सक्षम बनने में उसे किसी भाषाई पंडित की आवश्यकता भी नहीं हुई। दैनिक बतकही में शामिल होने से उसमें अंग्रेजी समेत अनेक भारतीय भाषाओं के शब्दों की आवाजाही बढ़ी है। उसके वाक्य-विन्यास और शब्द-प्रयोग में भी परिवर्तन हुए हैं। तभी वह अरबों रुपये के मनोरंजन उद्योग की सबसे बड़ी माध्यम-भाषा के रूप में भी विकसित हो सकी।
यदि साहित्य, पत्रकारिता, बाजार और प्रशासन की अलग-अलग रंगत वाली हिंदी के रूपों को मिला लिया जाए तभी हम समग्र रूप में हिंदी की बात कर सकेंगे। वैश्विक स्तर पर हिंदी प्रयोग की बेहतर स्थिति का एक प्रमुख कारण हिंदी भाषियों में अपनी भाषा के प्रति स्वाभिमान का जगना है। यह जागरण ही व्यापक जनसमुदाय को हिंदी प्रयोग हेतु प्रेरित करते हुए हिंदी को भारतीयता से वैश्विकता की प्रखर वैचारिक संपदा की अभिव्यक्ति की भाषा बनाता है।
[सहायक आचार्य, हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय]