अमेरिका में पढ़े जा रहे हिंदी उपन्यास, हमारा अनुकूल समय
अमेरिका जैसे देश में हिंदी के उपन्यास पढ़े जा रहे हैं। हिंदी के लिए यह सबसे अनुकूल समय है। हिंदी की स्थिति पहले से काफी बेहतर है। हिंदी बोलने और पढऩे वालों की संख्या बढ़ी है। हिंदी के बढऩे की कई संभावनाएं मौजूद हैं। बाजार में हिंदी की आवश्यकता बढ़ी
अमेरिका जैसे देश में हिंदी के उपन्यास पढ़े जा रहे हैं। हिंदी के लिए यह सबसे अनुकूल समय है। हिंदी की स्थिति पहले से काफी बेहतर है। हिंदी बोलने और पढऩे वालों की संख्या बढ़ी है। हिंदी के बढऩे की कई संभावनाएं मौजूद हैं। बाजार में हिंदी की आवश्यकता बढ़ी है। आप देख लीजिए कि अंग्रेजी अखबार सीमित हैं, जबकि हिंदी के नए अखबार प्रकाशित हो रहे हैं। ये बातें इशारा करती हैं कि हिंदी पाठकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। बड़े प्रकाशक अब हिंदी भाषा में साहित्य, पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित कर रहे हैं। मौजूदा दौर पहले से काफी बेहतर है। हिंदी के पाठक बढ़ेंगे तो जाहिर है हिंदी का विकास भी होगा। पहले की तुलना में साहित्यकारों को ज्यादा पढ़ा जाने लगा है। लोग इंटरनेट के माध्यम से हिंदी पुस्तकों को प्राप्त कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर युवा हिंदी भाषा में संवाद कर रहे हैं। निर्माण कंपनियों को भी यह समझ आ गया है कि बिना हिंदी से जुड़े वे अपना विकास नहीं कर सकती हैं। हिंदी को प्रसारित और प्रचारित करना जरूरी है। यही बातें सकारात्मक वातावरण बनाती हैं। हिंदी के बुरे दिन अब बीत चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदी के लिए सकारात्मक वातावरण बनाया है। हर भाषा अलग होती है। उसके सौंदर्य पर कार्य करने की जिम्मेदारी साहित्य की होती है। साहित्यकारों को जोड़े बिना हिंदी का विकास नहीं हो सकता है। 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन से मेरी यह अपेक्षाएं हैं कि पिछले सम्मेलनों में घोषित किए गए प्रस्तावों को क्रियान्वित कराने की पहल सरकार करे।
[डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, व्यंग्यकार]
उधार की भाषा से काम चलाना बंद करें
जब हमारा राष्ट्रीय ध्वज एक है, राष्ट्र एक है तो भाषा एक क्यों नहीं हो सकती। हम अनेकता में एकता को जीने वाले लोग हैं। हम उधार की भाषा पर जी रहे हैं, जैसे 'अंग्रेजों भारत छोड़ो...' नारा बुलंद हुआ था- वैसे ही अंग्रेजी के प्रति भी अपना पक्ष मजबूत करना है। अंग्रेजों ने हमसे ही अंग्रेजी भाषा को पल्लवित कराया। अब हमें उन्हें यह समझाना है, हमारे देश में बाजार बढ़ाने के लिए हमारी भाषा सीखनी होगी। अपने माता-पिता होने के बावजूद हम महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानते हैं। जबकि यह सुविचार संविधान में कहीं भी दर्ज नहीं है। इसलिए राजकीय लोगों से लेकर आम जनता तक सभी को 'हिंदी' को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकारना चाहिए। 6-7 साल पहले हिंदी दुनिया में दूसरे नंबर पर थी, जो आज तीसरे नंबर पर चली गई है। मैं चाहती हूं कि हिंदी को उसका स्थान वापस दिलाया जाए। 'हिंदी' के प्रति राजनैतिक मनमुटाव भुलाकर इसे अपनाएं।
[चित्रा मुद्गल, कथाकार]