हिंदी को विश्व भाषा बनाने के लिए विज्ञान की भाषा बनाना जरूरी
10 वें विश्व हिंदी सम्मेलन के दूसरे दिन 12 अलग-अलग विषयों पर दो चरणों में 12 सत्र हुए। सभी सत्रों में हिंदी के विद्वानों, साहित्कारों और वरिष्ठ पत्रकारों ने वक्ताओं के रूप में अपनी बात रखते हुए हिंदी को मौजूदा जरूरतों को देखते हुए विज्ञान आधारित और हिंग्लिश से मुक्त
भोपाल । 10 वें विश्व हिंदी सम्मेलन के दूसरे दिन 12 अलग-अलग विषयों पर दो चरणों में 12 सत्र हुए। सभी सत्रों में हिंदी के विद्वानों, साहित्कारों और वरिष्ठ पत्रकारों ने वक्ताओं के रूप में अपनी बात रखते हुए हिंदी को मौजूदा जरूरतों को देखते हुए विज्ञान आधारित और हिंग्लिश से मुक्त करने पर जोर दिया। वक्ताओं का मानना था कि हिंदी में यह क्षमता है कि वह विश्व की भाषा बन सके लेकिन समृद्ध होने के बाद भी उसे वो दर्जा आज तक नहीं मिल सका है।
भारत में ही राजभाषा कानून बने 52 साल बीत चुके हैं लेकिन शासकीय, न्यायालीन कार्यो में तो अंग्रेजी का उपयोग बंद नहीं हो सका, बल्कि हिंदी समाचार पत्रों में भी अब देवनागरी में हिंदी शब्दों का उपयोग होने लगा है। वहीं गिरमिटिया देशों में हिंदी को ब़़ढावा देने के लिए इन देशों के प्रतिनिधियों ने भारत से आर्थिक व साहित्यिक मदद की जरूरत बताई।
सम्मेलन के तीसरे दिन कल शनिवार को सभी 12 विषयों पर अनुशंसाएं व रिपोर्ट रखी जाएगी। वैज्ञानिक सोच जरूरी विज्ञान में हिन्दी के उपयोग को अगर सार्थक बनाना है तो वैज्ञानिक सोच को आत्म-सात करना जरूरी है। 'विज्ञान क्षेत्र में हिन्दी' सत्र की अध्यक्षता करते हुए यह बात केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कही। उन्होंने कहा कि विज्ञान की जानकारी आम आदमी तक पहुंचे, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। विज्ञान की मदद से हम गरीबी से निजात पा सकते हैं और ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं, जिसकी सोच आधुनिक और प्रगतिशील हो। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बालकृष्ण सिन्हा ने कहा कि थिसॉरस की जिस पद्धति को अब पश्चिम में व्यापक स्वीकृति मिल रही है, वह भारत की हजारों वर्ष पुरानी निघण्टु पद्धति का ही रूपांतर है।
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सिन्हा ने कहा कि कालांतर में संस्कृत पारिभाषिक शब्दावली में पाली, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में शब्द जु़ड़ते गए। फिर अरबी, फारसी के शब्द जु़ड़े और अंग्रेजी शब्द भी जु़ड़ते गए। वैज्ञानिक अनुसंधान पर लेखन करने वाले डॉ. सुभाष चन्द्र लखेड़ा ने कहा कि राष्ट्र की प्रगति के लिये विज्ञान का सृजन और उसका संचार दोनों बेहद जरूरी हैं। इसके लिये ऐसे सभी सरकारी विभाग की ओर ध्यान देना होगा, जिनसे विज्ञान संचार की अपेक्षा की जाती है। साथ ही विज्ञान संचार के लिये मीडिया की भूमिका भी सकारात्मक होना चाहिए।
अमिताभ अभिताभ बच्चन आज आएंगे
विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करने के लिए महानायक अमिताभ बच्चन शनिवार को दोपहर भोपाल पहुंचेंगे। बताया जा रहा है कि वे चार्टड प्लेने से आएंगे।