यूरोपीय जर्नल ने माना आयुर्वेद का लोहा, बीजीआर-34 पर प्रकाशित की शोध रिपोर्ट
एल्जेवियर के जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल एंड कंप्लीमेंट्री मेडिसिन में प्रकाशित शोध के अनुसार बीजीआर-34 मधुमेह रोगियों में हार्टअटैक के खतरे को 50 फीसदी तक कम कर देती है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। एलोपैथिक दवाओं और उसके दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) पर शोध करने वाले पश्चिमी देश अब आयुर्वेदिक दवाओं के शरीर पर सकारात्मक प्रभावों को लेकर हैरान हैं। नीदरलैंड के एम्सटर्डम स्थित एलजेवियर ने अपने जर्नल ने अपने ताजा अंक में मधुमेह के इलाज के लिए विकसित आयुर्वेदिक दवा बीजीआर-34 पर शोध पत्र प्रकाशित किया है। इसके अनुसार यह दवा मधुमेह को कम करने के साथ-साथ हृदयघात (हार्टअटैक) को रोकने में मददगार है। लखनऊ स्थित सीएसआइआर की प्रयोगशाला नेशनल बॉटनीकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआइ) ने इसे विकसित किया है।
एल्जेवियर के जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल एंड कंप्लीमेंट्री मेडिसिन में प्रकाशित शोध के अनुसार बीजीआर-34 मधुमेह रोगियों में हार्टअटैक के खतरे को 50 फीसदी तक कम कर देती है। जर्नल के अनुसार भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की देखरेख में एक अस्पताल में 64 मरीजों पर चार महीने तक इस दवा का परीक्षण किया गया है। इस दौरान दो किस्म के नतीजे सामने आए। यह दवा 80 फीसदी तक मरीजों का शुगर लेवल कम करने में सफल रही और शुगर औसत स्तर 196 (खाली पेट) से घटकर 129 एमजीडीएल रह गया। जबकि भोजन के बाद यह स्तर 276 से घटकर 191 एमजीडीएल रह गया। इसमें हैरानी की बात नहीं है। मधुमेह की दूसरी दवाएं भी इसी तरह शुगर को नियंत्रित करती है।
चौंकाने वाली बात दूसरे नतीजे में है। रिपोर्ट के अनुसार इस दवा के उपयोग से 30-50 फीसदी मरीजों में ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन पूरी तरह नियंत्रित हो गया। जबकि बाकी मरीजों में भी इसके स्तर में दस फीसदी तक की कमी आई थी। ध्यान देने की बात है कि ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन की खून में अधिक मात्रा हार्टअटैक और दौरा पड़ने की प्रमुख वजह है। सामान्य तौर पर मधुमेह रोगियों में ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ जाती है। जर्नल के अनुसार बीजीआर-34 न सिर्फ शुगर के स्तर को नियंत्रित करता है, बल्कि मधुमेह की बीमारी से जुड़े दूसरे रोगों को ठीक करता है।