मध्य प्रदेश का एक खास मंदिर जहां प्रसाद में चढ़ता है गांजा, फिर भक्तों में किया जाता है वितरण
भगवान शंकर के मंदिर और संत दादा श्यामलाल मौनी बाबा की समाधि पर गांजे का प्रसाद चढ़ाया जाता है और फिर इसे श्रद्धालुओं को बांटा जाता है।
छिंदवाड़ा, राजेश दीक्षित। विविधता से भरे भारत में देवी-देवताओं के मंदिरों में अलग-अलग ढंग से पूजा-अर्चना के उदाहरण मिलते हैं। छिंदवाड़ा का शंकर मंदिर और संत दादा श्यामलाल मौनी बाबा की समाधि इसका जीता-जगता उदाहरण है।
जिस तरह उज्जैन में भैरव बाबा को शराब चढ़ाने की प्राचीन काल से परंपरा चली आ रही है। ठीक इसी तरह छिंदवाड़ा जिले के मोहखेड़ विकास खंड के देवगढ़ गांव से सात किमी दूर ग्राम लिलाही में भगवान शंकर के मंदिर और संत दादा श्यामलाल मौनी बाबा की समाधि पर गांजे का प्रसाद चढ़ाया जाता है और फिर इसे श्रद्धालुओं को बांटा जाता है। गांजे की खेती करना कानूनी तौर पर अपराध है, लेकिन यहां प्रसाद के लिए मंदिर परिसर में गांजा लगाया जाता है।
समाधि और मंदिर में पूजा-पाठ का कार्य संभाल रहे किशन मादरेकर ने बताया कि करीब 20 साल पहले भांग ठेकेदार ने पुलिस से शिकायत की थी। इसके बाद यहां कलेक्टर, एसपी और अन्य अधिकारी आए थे। मौके से मंदिर के आसपास लगे गांजे के पौधे उखाड़कर ले गए थे। इसका लोगों ने विरोध किया। मामला न्यायालय तक पहुंचा। न्यायालय ने परंपरा के कारण 40 डिसमिल जमीन में गांजा लगाने की अनुमति दे दी। यहां साल भर पूजा-पाठ और महाआरती के बाद गांजे का प्रसाद वितरित किया जाता है।
जानिए क्या है मान्यता
मंदिर के सामने 90 साल से अखंड जोत जल रही है। मादरेकर ने बताया कि समाधि में लीन संत श्यामलाल मौनी बाबा मोहखेड़ के पास सतनूर गांव के रहने वाले थे और यहां आकर बस गए थे। वह भोलेनाथ का मंदिर बनवाकर यहां रहने लगे। मंदिर के सामने उन्होंने अखंड धूनी जलाई। भोलेनाथ की काफी तपस्या की। चालीस साल तक वह मौन रहे। बाबा हमेशा गांजा पीते थे। भगवान को भी वही चढ़ाते और भक्तों को प्रसाद के रूप में देते थे। 60 के दशक के पूर्व मौनीबाबा ने समाधि ले ली। तब से गांजा चढ़ाने परपंरा चली आ रही है।
मंदिर परिसर में लगता है मेला
मंदिर परिसर में मकर संक्रांति, शरद पूर्णिमा, गुरपूर्णिमा, महाशिवरात्रि, रामनवमीं मेला लगता है। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।