जानिए- बिंदेश्वर पाठक के 'शौचालय प्रेम' के पीछे की रोचक कहानी
संसार में हर आदमी अपने लिए जीता है, लेकिन असल जीवन वो है, जो दूसरों के कल्याण में, उनकी भलाई में लग जाता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। महात्मा गांधी ने ज्ञान से अधिक कर्म को महत्व दिया था। उनका कहना था कि बड़े से बड़ा ज्ञान हासिल करने की बजाय समाज की एक छोटी-सी समस्या का निदान निकालना महत्वपूर्ण होता है। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी कहा करते थे कि यह मत पूछो कि देश ने तुम्हारे लिए क्या काम किया है, बल्कि अपने से यह पूछो कि तुमने देश के लिए क्या किया है। मैं पटना विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र में प्राध्यापक बनना चाहता था, लेकिन संयोग से मैं बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने लगा। वह वर्ष 1968 था।
एक साल के बाद 1969 में महात्मा गांधी का जन्म शताब्दी-समारोह होना था। उस समय अमानवीय एवं घृणित मैला ढोने की प्रथा प्रचलन में थी। साथ ही लोग शौच के लिए खुले रूप में खेतों में जाया करते थे। सार्वजनिक जगहों पर शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं थी। खुले में शौच के तमाम नकारात्मक असर से हम वाकिफ हैं।
लिहाजा 1968 में मैंने दो गड्ढे वाले सुलभ शौचालय का आविष्कार किया और घर-घर जाकर लोगों को अपने घरों में शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित करना प्रारंभ किया। आज सुलभ द्वारा गांवों और शहरों में 15 लाख सुलभ शौचालय बनवाए गए हैं और सार्वजनिक स्थलों पर 8,500 सुलभ शौचालयों की व्यवस्था करवाई गई है। यदि ये शौचालय नहीं बने होते तो ये लोग शौच के लिए कहां जाते! आज महिलाएं सुरक्षा एवं प्रतिष्ठा के साथ शौचालय का उपयोग कर रही हैं। अब लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं।
मेरा मानना है कि यदि आपने किसी पीड़ित व्यक्ति की मदद नहीं की है तो आपने कभी ईश्वर की पूजा नहीं की है। गांधी जी भी कहा करते थे,‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीर पराई जाणे रे’।
संसार में हर आदमी अपने लिए जीता है, लेकिन असल जीवन वो है, जो दूसरों के कल्याण में, उनकी भलाई में लग जाता है। ईश्वर ने अगर आपको इस लायक बनाया है कि आप किसी की मदद कर सकते हैं तो हमें इसके लिए तत्पर रहना चाहिए।
डॉ विंदेश्वर पाठक
संस्थापक, सुलभ इंटरनेशनल
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