अध्ययन: आनुवांशिक गड़बड़ी का जवाब स्वस्थ जीवनशैली
जींस में गड़बड़ी वाले लोगों में ज्यादा होता है हृदय रोगों और मधुमेह का खतरा, भारतीय और ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने अध्ययन के बाद सुझाए बचाव के उपाय
नई दिल्ली (आइएसडब्ल्यू)। जिन लोगों में जींस की गड़बड़ी होती है उनके हृदय रोगों और मधुमेह से ग्रसित होने का खतरा अधिक होता है। ऐसे में स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इन बीमारियों के जोखिम को कम किया जा सकता है। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है। भारतीय और ब्रिटिश शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन में शोधकर्ता देखना चाहते थे कि जीवनशैली से जुड़े स्वस्थ आहार जैसे कारक हृदय संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देने वाली आनुवांशिक गड़बड़ियों को दूर करने में कितने मददगार हो सकते हैं। अध्ययन में शामिल कम वसा युक्त आहार लेने वाले प्रतिभागियों में मधुमेह के लिए जिम्मेदार टीसीएफ7एल2 जीन में परिवर्तन होने के बावजूद उच्च घनत्व लिपोप्रोटीन (एचडीएल) का स्तर अधिक पाया गया है। एचडीएल को आम बोलचाल में अच्छे कोलेस्ट्रॉल के नाम से भी जाना जाता है, जो स्वस्थ हृदय का सूचक माना जाता है। अध्ययन के नतीजे हाल में पीएलओएस वन नामक जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं।
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग से जुड़े शोधकर्ता विमल करणी के मुताबिक, यह स्पष्ट हो गया है कि आबादी के किसी खास हिस्से में जीवनशैली से जुड़े घटक जींस एवं कार्डियो- मेटाबॉलिक गुणों के बीच के संबंध को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, इस अध्ययन के नतीजे भारतीय आबादी से ही जुड़े हैं।
अध्ययन के दौरान चेन्नई से मधुमेह से ग्रस्त 861 मरीजों और सामान्य ग्लूकोज सहिष्णुता (एनजीटी) के 821 नमूने एकत्रित किए गए थे। करणी के मुताबिक, कम वसा युक्त भोजन करने वाले लोगों में खतरनाक जीन की मौजूदगी के बावजूद एचडीएल का स्तर अधिक पाया गया है। इसी तरह टीसीएफ7एल2 जीन से प्रभावित कम प्यूफा (पॉलीअन्सेचुरेटिड फैटी एसिड) युक्त आहार लेने वाले लोगों में भी एचडीएल का स्तर अधिक पाया गया है। अध्ययन के नतीजों से स्पष्ट है कि स्वस्थ आहार लेने से हृदय संबंधी बीमारियों और मधुमेह को दावत देने वाली आनुवांशिक गड़बड़ियों से उबरने में मदद मिल सकती है।
अब इस पर किया जा रहा अध्ययन
डॉ. करणी के अनुसार, अब हमें देखने की जरूरत है कि अच्छे कोलेस्ट्रॉल पर विभिन्न फैटी एसिड के प्रभाव की पहचान करने के तरीके क्या हो सकते हैं और क्या उच्च वसा का सेवन अच्छे कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है। इन तथ्यों का पता चल जाने से सार्वजनिक स्वास्थ्य सिफारिशों और व्यक्तिगत पोषण सलाह को बढ़ावा मिल सकेगा, जिससे भारतीय आबादी में कार्डियो-मेटाबॉलिक बीमारियों के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।
यह भी पढ़ें: कैंसर को फैलने से रोकने वाली दवा का चला पता