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हरिवंश राय बच्चन जन्मदिन विशेष: 'पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका'

आज डॉ. हरिवंश राय बच्चन को उनकी जयंती पर याद करना एक ऐसे शख्स को याद करना है जो बहुआयामी है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Mon, 26 Nov 2018 08:48 PM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 09:19 AM (IST)
हरिवंश राय बच्चन जन्मदिन विशेष: 'पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका'

[नवनीत शर्मा]  क्या थे हरिवंश राय बच्चन?  इस सुखद सौभाग्य को पाने वाले कि स्वयं इतने बड़े कवि होकर भी जिन्हें इस पहचान का सुखद संयोग हासिल हुआ कि वह महानायक अमिताभ बच्चन के पिता है? या एक ऐसा सुशिक्षित व्यक्ति जिसका आजादी के बाद इस देश के लिए हिंदी को उसकी जगह दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा? या वह व्यक्ति जिसने दूसरी शादी एक पंजाबी मूल की महिला तेजी सूरी के साथ शादी की? जिसे ढेरों पुरस्कार मिले? और जिसने ढेरों किताबें लिखीं लेकिन मधुशाला बेस्ट सेलर बनी और उसकी ख्याति के पहाड़ के पीछे बाकी सारी कृतियां अच्छी होते हुए भी गौण हो गईं?

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आज डॉ. हरिवंश राय बच्चन को उनकी जयंती पर याद करना एक ऐसे शख्स को याद करना है जो बहुआयामी है। आलोचकों और समालोचकों के प्रयासों के बावजूद जो दब नहीं पाया और आज भी अपने समूचे साहित्य, खास तौर पर मधुशाला को साथ लेकर खड़ा है।

मधुशाला ऐसा आइना है जिसमें हर व्यक्ति को अपना चेहरा दिखता है। यह मधुशाला उन लोगों के लिए है जो कबीर की तरह मुराड़ा हाथ में लेकर चलें। यह मधुशाला उनके लिए जो दीवारों में नहीं बंधे हैं, जिन्हें देश से मोहब्बत है, जिन्हें अपने साथ इश्क है। जिन्हें यह क्षमता हासिल है कि वह इस मधुशाला से अपने हिस्से की प्रसन्नता ले सकें।

कैंब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षाप्राप्त डॉ. बच्चन की मधुशाला में जाने के लिए बहुत कुछ छोडऩा पड़ता है। क्योंकि उनकी पीएचडी आयरलैंड के रहने वाले सुप्रसिद्ध अंग्रेजी कवि विलियम बटलर यीट्स की कविताओं पर थी, इसलिए उनके आकल्टिज्म का प्रभाव मधुशाला पर भी है। हम जिससे प्रभावित होते हैं, वह हममें या हमारे किसी भी काम में झलकता ही है। इस दृष्टि से ऑकल्ट या गुह्यता या रहस्यवाद या फिर छायावाद अवश्य दिखता है। यह त्रासदी रही कि डॉ. बच्चन को केवल मधुशाला का ही कवि माना गया। जीवन को आमंत्रित करती उनकी कई कविताएं हैं जो हर व्यक्ति के लिए हैं लेकिन उन्हें जो लोग उन्हें केवल हालावाद का ही कवि मानते हैं, वे उनके साथ न्याय नहीं करते।

एक किस्सा याद आया। गजल में रदीफ का अपना अर्थ है। रदीफ यानी ऐसा शब्द या शब्दों का समूह जो बार बार पंक्ति के अंत में आए...। एक बार एक व्यक्ति के मन में आया कि उसका जन्मदिन मुशायरे के रूप में मनाया जाए और करीब 40 लोग गजलें पढ़ें लेकिन शर्त रख दी कि गजलों की रदीफ उनके नाम पर होगी। नाम था सिब्ते रसूल कारी। यानी हर गजल के हर शेर की दूसरी पंक्ति में सिब्ते रसूल कारी अवश्य आएगा। अब 39 लोगों ने गजलें पढ़ीं। बाकी शायर तो दूर स्वयं सिबते रसूल कारी भी बार बार अपना नाम सुन कर बेहोश होने लगे। अंत में मुशायरे की अध्यक्षता करने वाले ने एक ही शेर पढ़ा :

दीवार-दर से उसके वहशत बरस रही है

दालान में पड़ा है सिब्ते रसूल कारी

...मधुशाला के 150 बंदों को पढ़ते हुए बार-बार 'मधुशाला' आती है लेकिन पाठक नित नए कोण से परिचित होता जाता है, बहता जाता है। स्वयं शराब न पीने वाले डॉ. बच्चन की मधुशाला आत्मसाक्षात्कार की मधुशाला है।

दरअसल संवेदना, भावुकता, मानवता, देश, देश पर प्राणों का उत्सर्ग करते वीर, चित्रकार, परमसत्ता की ओर किसी भी मार्ग से बढ़ते लोगों के लिए हैं मधुशाला। पाठकगण पीने वाले हों तो मधुशाला कैसे तस्लीम होती होती है, यह देखना आवश्यक है :

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,

कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,

कभी न कण-भर ख़ाली होगा लाख पिएं, दो लाख पिएं!

पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

कितने रास्तों में बंटा हुआ, चौराहे पर खड़ा हुआ व्यक्ति असमंजस में न हो तो क्या करे। यह कैसी ताकत है डॉ. बच्चन की मधुशाला.... कि एक संदेश मिल जाता है :

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,

किस पथ से जाऊं? असमंजस में है वह भोलाभाला,

अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -

राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।

और बांटने बंटने की दिशा देने वाली सोच को बाहर रख कर ही जो व्यक्ति जाएगा, उसे इस मधुशाला में प्रवेश मिलेगा :

धर्मग्रंथ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,

मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,

पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका,

कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला

हार्दिक प्रसन्नता महज शब्द प्रयोग नहीं है, यह एक अवस्था है :

बजी न मंदिर में घडिय़ाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,

बैठा अपने भवन मुअज्जिऩ देकर मस्जिद में ताला,

लुटे खज़ाने नरपतियों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,

रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला

इस मधुशाला के कारिंदे हो सकते हैं सूर्य, बादल और सिंधु। सबको काम पर लगा रखा है :

सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,

बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,

झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,

बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला

यह मधुशाला केवल चार दीवारों तक सीमित नहीं है। यहां मिलने वाली वस्तु का पान बाहर भी किया जाता है और देखिए कि कौन कौन पान कर सकता है :

साकी बन आती है प्रात: जब अरुणा ऊषा बाला,

तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,

अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,

प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखरित होती मधुशाला

भारत भी मधुशाला यहीं हो सकता था, इसी रूप में हो सकता था :

हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,

चंचल नदियां साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,

कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,

पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला

और यही मधुशाला वीरों की बलिवेदी बन जाती है जब भारतमाता अति उदार साकी बन जाए :

धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,

वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,

अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,

स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला

और इसी मधुशाला का यह रूप भी देखने लायक है कि मेल कैसे होगा :

मुसलमान औ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,

एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,

दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,

बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!

और अपने खूंटे से बंधे लोगों के लिए यह आमंत्रण कौन दे सकता है सिवाय इस मधुशाला के :

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,

बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,

एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,

देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!

मधुशाला के विवाद के बाद जब महात्मा गांधी के सामने डॉ. बच्चन की पेशी हुई। राहत है कि उन्होंने इसे पढ़ कर कहा कि इसका विरोध व्यर्थ है।

27 नवम्बर 1907 को प्रतापगढ़ के बाबू पट्टी गांव में जन्मे डा. बच्चन ने अंतिम सांस 18 जनवरी 2003 को 95 वर्ष की आयु में मुंबई में ली थी। करीब साठ किताबें लिखने वाले डॉ. हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख कृतियां मधुबाला, मधुकलश, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, निशा निमन्त्रण, दो चट्टानें आदि रहीं। क्या भूलूं क्या याद करूं, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक बच्चन रचनावली के नौ खण्ड आदि उनके आत्मकथात्मक कृतियों से समृद्ध हैं। यह और बात है कि मधुशाला इन सबमें सबसे ऊपर चमकती है। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और सरस्वती सम्मान भी मिला। 1971 में पद्म भूषण से भी अलंकृत हुए।


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