दक्षिण कश्मीर में झुंड के साथ दिखा हांगुल, वन्य जीव विभाग उत्साहित
हांगुल हिरण की तरह दिखता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑन नेचर (आइयूसीएन) ने हांगुल को लुप्त हो रही प्रजातियों में शामिल कर रखा है।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। जम्मू कश्मीर के राजकीय पशु हांगुल को लेकर दिल को सुकून देने वाली खबर आई है। धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हांगुल को दाचीगाम नेशनल पार्क के बाहर पहली बार दक्षिण कश्मीर के शिकारगाह क्षेत्र में कैमरे पर कैद किया है जो इसकी संख्या में वृद्धि का संकेत और अन्य इलाकों में इसकी मौजूदगी की पुष्टि करता है। इससे वन्य जीव विभाग उत्साहित है।
हांगुल हिरण की तरह दिखता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑन नेचर (आइयूसीएन) ने हांगुल को लुप्त हो रही प्रजातियों में शामिल कर रखा है। कभी यह जानवर जम्मू संभाग के किश्तवाड़ और कश्मीर में अनंतनाग ( दक्षिण कश्मीर) -कुपवाड़ा ( उत्तरी कश्मीर) और हिमाचल तक दिखता था। अब यह दाचीगाम व साथ सटे क्षेत्रों में सिमट गया। कभी इसकी संख्या हजारों में थी।
वन्य जीव विभाग शोपियां रेंज के वार्डन इंतसार सुहेल ने शिकारगाह में हांगुल की तस्वीरें लिए जाने की पुष्टि करते हुए कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है। इस इलाके में हांगुल की आवाजाही रहती है। कई बार विभाग के कर्मियों ने हांगुल देखने का दावा किया है। कश्मीर में जब भी हांगुल की गणना की तो शिकारगाह में हांगुल के निशान मिले। शिकारगाह वन सेंचुरी त्राल के ऊपरी हिस्से में है। शिकारगाह में हांगुल के लिए कैपटिव ब्रीडिंग सेंटर तैयार किया था। इसमें एक हांगुल रखा था, लेकिन यह योजना अधूरी रह गई थी। शिकारगाह में हांगुल है, इसका अब हमारे पास सुबूत है।
हमने शिकारगाह के ऊपरी हिस्से में जहां एक जलस्रोत पर अक्सर जानवर पानी पीने आते हैं, वहां दो कैमरे स्थापित किए हैं। इन कैमरों में सेंसर लगे हैं जो किसी भी हरकत पर कैमरे को क्रियाशील बनाते हैं। हमने दो तस्वीरें जुटाई हैं। पहली तस्वीर में हमें नौ मादा एक ही फ्रेम में नजर आती हैं जबकि दूसरी तस्वीर में एक नर हांगुल है। दोनों तस्वीरें एक ही कैमरे में कैद हुई है। कुछ हांगुल अव्यस्क हैं जो अच्छी बात है।
झुंड में चलता है
यह जानवर हमेशा दो से 18 के झुंड में चलता है। नर हांगुल के सींग होते हैं, मादा के सींग नहीं। हांगुल के शरीर का पिछला हिस्सा हल्के भूरे रंग का है। पिछली टांगों का ऊपरी भाग भीतर की तरफ सफेद रंग का होता है। इसकी पूंछ का आखिरी हिस्सा काला होता है। दोनों सींगों में पांच बड़े सींग होते हैं। इसके सींग पहले बाहर की तरफ और अंदर की तरफ गोलाकार लिए होते हैं। इसके सींग बेशकीमती माने जाते हैं। सींगों के लिए भी हांगुल का शिकार होता है। हांगुल दो जानवरों से डरता है। तेंदुए और भालू से। अधिकांश हांगुल जंगलों में इन दोनों जानवरों के शिकार बनते हैं। हांगुल का घर कहे जाने वाले दाचीगाम में भेड़ फार्म और ऊपरी हिस्सों में खानाबदोश गुज्जर समुदाय और चरवाहां की आवाजाही से हांगुल की आबादी प्रभावित हुई है।
आबादी बढ़ाने के लिए प्रयास
वन्य जीव विभाग जम्मू कश्मीर, शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कश्मीर और देहरादून वाइल्ड लाइफ इंस्ट्ीट्यूट ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ समय समय पर इसकी आबादी बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
योजनाएं सिरे नहीं चढ़ीं
करीब 25 साल तक जम्मू कश्मीर में वन विभाग में अपनी सेवाएं प्रदान कर चुके भारतीय वन सेवाधिकारी आरएल भारती के मुताबिक, हांगुल जम्मू कश्मीर की शान है। यह खूबसूरत प्राणी है। यह अपने सींग गिराता है। इसके संरक्षण के लिए कई योजनाएं शुरूकी गई जो आधे रास्ते में दम तोड़ गई। हांगुल जिन इलाकों मं आता जाता था, उन रास्तों में बनी सड़कों और बस्तियों के बीच कुछ कारीडोर तैयार किए ताकि अगर यह दाचीगाम से कहीं बाहर है तो इसका पता चले, इसका संरक्षण हो।
दाचीगाम में यह कई बार नजर नहीं आता था। हांगुल कहां आता जाता है, इसका प्रजनन कब हो रहा है इसकी गतिविधियां का पता लगाने के लिए दो हांगुल को सेटलाइट कॉलर भी लगाए गए थे। वर्ष 2008 क दौरान स्पीशिस रिकवरी प्रोग्राम के तहत शिकारगाह त्राल और कंगन में हांगुल के संरक्षित प्रजनन केंद्र स्थापित करने की योजना बनी। भारतीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण न 22 करोड़ की मदद भी दी। शिकारगाह में केंद्र भी तैयार हो गया, लेकिन पांच साल तक यह योजना सिरे नहीं चढ़ी। वर्ष 2013 के दौरान एक अव्यस्क हांगुल पकड़कर शिकारगाह लाया गया जिसे वहां तेंदुए ने शिकार बना लिया।