सबूतों की राह पर ज्ञानवापी मस्जिद केस, वीडियोग्राफी रिपोर्ट अदालत में पेश करने के निर्देश के क्या हैं मायने, जानें विशेषज्ञों की राय
जिस तरह से वाराणसी की एक अदालत ने हिन्दू पक्ष की मांग पर अधिवक्ता आयुक्त को ज्ञानवापी मस्जिद का मुआयना करके रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है वह बेहद दिलचस्प है। इस मामले में अदालत के निर्देश आने वाले दिनों में बेहद महत्वपूर्ण होंगे...
माला दीक्षित, नई दिल्ली। वैसे तो संसद से ही तय कर दिया गया है कि किसी धार्मिक स्थल की स्थिति वैसी ही रहेगी, जैसी 15 अगस्त, 1947 को थी। केवल अयोध्या रामजन्मभूमि मामले को इससे छूट दी गई थी और कोर्ट के आदेश पर ही वहां मंदिर का निर्माण चल रहा है। लेकिन वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद केस में जिस तरह अदालत के निर्देश आ रहे हैं वह रोचक हो सकता है। वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने हिंदू पक्ष की मांग पर अधिवक्ता आयुक्त (एडवोकेट कमिश्नर) को ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर जाकर मुआयना करने और वीडियोग्राफी के साथ अदालत में रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।
मील का पत्थर साबित हो सकता है यह आदेश
यह पहला मौका है, जब ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदू पक्ष के दावे को साबित करने के लिए साक्ष्य जुटाने का काम शुरू हुआ है। कानून में किसी केस को साबित करने के लिए साक्ष्यों की निगाह से यह आदेश मील का पत्थर साबित हो सकता है। एडवोकेट कमिश्ननर की रिपोर्ट 10 मई को दाखिल होनी है। एडवोकेट कमिश्नर ने पक्षकारों को छह मई को मौके का मुआयना और वीडियोग्राफी शुरू करने की सूचना दे दी है और उस दिन वहां उपस्थित रहने को कहा है।
अयोध्या राम जन्मभूमि केस में ऐसे ही हुई थी शुरुआत
ऐसी ही शुरुआत अयोध्या राम जन्मभूमि केस में हुई थी, जब फैजाबाद के सिविल जज ने एक अप्रैल, 1950 को विवादित स्थल का नक्शा तैयार करने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था। कोर्ट कमिश्नर ने उसी साल अपनी रिपोर्ट अदालत में दाखिल की थी। पूरे मुकदमे के दौरान हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उस रिपोर्ट पर चर्चा हुई। वह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हिस्सा है।
निर्णायक साबित होते हैं ऐसे साक्ष्य
राम जन्मभूमि केस में हाई कोर्ट के आदेश से वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी हुई थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने विवादित स्थल की खोदाई करके भी रिपोर्ट दी थी। कोर्ट के आदेश पर एकत्रित किए गए ये साक्ष्य मुकदमे में अहम साबित हुए थे। कानून के जानकार मानते हैं कि किसी स्थान पर दावे के संबंध में इस तरह के साक्ष्य मुकदमे के लिए बहुत अहम और कई बार निर्णायक साबित होते हैं।
केस की दिशा तय करने के लिए साक्ष्य बेहद महत्वपूर्ण
हरियाणा के पूर्व सिविल जज (सीनियर डिवीजन) डीके शर्मा कहते हैं कि लोकल कमिश्नर की रिपोर्ट का किसी भी केस को तय करने में बहुत महत्व होता है। यह रिपोर्ट साक्ष्य अधिनियम और सिविल प्रक्रिया संहिता में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। जब तक इस पर किसी पक्ष की कोई ऐसी आपत्ति न हो जो रिपोर्ट को पहली नजर में पूरी तरह गलत साबित करती हो, तब तक यह रिपोर्ट प्राथमिक साक्ष्य की भांति पढ़ी जाती है। कई बार यह केस तय करने का आधार बनती है।
कब नियुक्त किया जाता है लोकल कमिश्नर
ऐसे में देखा जाए तो वाराणसी की अदालत द्वारा दिया गया आदेश केस में मील का पत्थर साबित हो सकता है।शर्मा कहते हैं कि जब किसी जमीन के मालिकाना हक, कब्जा या उपयोग के बारे में कोई दीवानी वाद अदालत आता है और कोर्ट को लगता है कि यथास्थिति जानने के लिए लोकल कमिश्नर नियुक्त करना जरूरी है, तो वह नियुक्त करता है। किसी पक्षकार की ऐसी मांग होने पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद मौके का मुआयना कर रिपोर्ट देने के लिए लोकल कमिश्नर नियुक्त किया जाता है।
हिन्दू पक्ष की राह इतनी आसान नहीं
हालांकि मौजूदा पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) कानून 1991 को देखते हुए हिंदू पक्ष के दावे की राह इतनी आसान नहीं है। लेकिन हिंदू पक्ष के वकील हरि शंकर जैन कहते हैं कि इस मामले में कानून आड़े नहीं आएगा, क्योंकि अगर इमारत की प्रकृति मंदिर की साबित होती है, तो वह मंदिर मानी जाएगी।
मुस्लिम पक्ष की दलील
यह साबित किए बगैर कि यह संपत्ति वक्फ की थी, यह मस्जिद नहीं हो सकती और मंदिर की संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती है। लेकिन मुस्लिम पक्ष का मानना है कि यह मुकदमा सुना ही नहीं जा सकता, क्योंकि पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) कानून 1991 में यह बाधित है।
अदालत करेगी विचार
ज्ञानवापी मस्जिद के अंजुमन इंतजामिया मसाजिद रईस अहमद अंसारी कहते हैं कि हमने अदालत में अर्जी दी है, जिसमें पूजा स्थल विशेष प्रविधान कानून का मुद्दा उठाया है। अदालत उस पर विचार करेगी। यह अर्जी सीपीसी के आदेश सात नियम-11 के तहत दाखिल की गई है। यह नियम कहता है कि कोई कार्रवाई करने से पहले कोर्ट को देखना होगा कि यह मुकदमा किसी कानून से बाधित तो नहीं है।