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Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas: हिंदुओं की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए थे सिखों के 9वें गुरु, कटा लिया था सिर

आज जहां धर्म के नाम पर कट्टरता देखने को मिलती है वहीं 16वीं सदी में गुरु तेग बहादुर ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। कश्मीरी पंडितों ने जब गुरु तेग बहादुर मदद मांगी तो वह हिचकिचाए नहीं।

By TilakrajEdited By: Published: Mon, 28 Nov 2022 09:27 AM (IST)Updated: Mon, 28 Nov 2022 09:27 AM (IST)
Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas: हिंदुओं की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए थे सिखों के 9वें गुरु, कटा लिया था सिर
गुरु तेग बहादुर का बचपन का नाम त्यागमल था

नई दिल्‍ली, ऑनलाइन डेस्‍क। गुरु तेग बहादुर (Guru Teg Bahadur) का आज शहीदी दिवस (पुण्‍यतिथि) है। वह सिखों के नौवें गुरु थे, जिन्‍हें 400 सालों के बाद भी 'हिंद की चादर' के नाम से जाना जाता है। गुरु तेग बहादुर ने हिंदू धर्म और कश्‍मीरी पंडितों की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। गुरु तेग बहादुर ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने सबके सामने उनका सिर कटवा दिया, लेकिन औरंगजेब उनका सिर झुका नहीं पाए।

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हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए थे सिखों के नौवें गुरु

आज जहां धर्म के नाम पर कट्टरता देखने को मिलती है, वहीं 16वीं सदी में गुरु तेग बहादुर ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। कश्मीरी पंडितों ने जब गुरु तेग बहादुर मदद मांगी, तो वह हिचकिचाए नहीं। हिदुओं ने बताया कि उन पर मुगल बेहद अत्याचार कर रहे हैं, उन पर धर्म परिवर्तन करने का दबाव बना रहे हैं। तब गुरु तेग बहादुर ने कहा जाओ औरंगजेब को बता दो कि पहले वह मेरा धर्म परिवर्तन कराए इसके बाद ही वह किसी अन्य का धर्म परिवर्तन करा सकता है। इसके बाद गुरु तेग बहादुर दिल्ली आए और यहीं चांदनी चौक पर उन्होंने खुद को कुर्बान कर दिया।

गुरु तेग बहादुर ने किया लोगों को जागरूक...

धर्म हमें शांति और अंहिसा का मार्ग दिखाता है। गुरु नानक देव की के नक्‍शे-कदम पर चलते हुए गुरु तेग बहादुर भी अपने काल में शांति का पैगाम फैला रहे थे। उधर, औरंगजेब किसी भी धर्म को अपने से ऊपर नहीं देखना चाहता था। वह अत्‍याचार कर हिंदुओं और सिखों का जबरन धर्मांतरण करा रहा था। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिंदू और सिख महिलाओं के साथ दुष्‍कर्म और अत्याचार हो रहे थे। ऐसे में गुरु तेग बहादुर ने गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया और उन्हें मुगलों के खिलाफ लड़ने को तैयार किया। जब कुर्बानी देने की बारी आई, तो सबसे आगे खड़े हो गए।

कश्मीरी पंडितों ने लगाई थी गुरु तेग बहादुर से मदद की गुहार

कश्मीर को पंडितों का गढ़ माना जाता था, इसकी वजह ये थी कि वहां बेहद विद्वान पंडित रहते थे। तब औरंगजेब की तरफ से शेर अफगान खां कश्मीर का सूबेदार हुआ करता था। औरंगजेब ने कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार करना शुरू किया और उन्हें जबरन इस्‍लाम कबूल करने का दबाव बनाया। कश्मीरी पंडितों ने तेग बहादुर के बारे में सुन रखा था, उन लोगों ने फैसला लिया कि मुगलों के खिलाफ अत्याचार का मुकाबला करने के लिए गुरु तेग बहादुर की मदद ली जाए।

कश्‍मीरी पंडित जब गुरु तेग बहादुर के पास मदद मांगने पहुंचे, तो उन्‍होंने कहा कि औरंगजेब से जाकर कहो कि अगर तुमने हमारे गुरु का धर्म बदल दिया, और अगर उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिए, तो हम भी कर लेंगे। यह बात औरंगजेब तक पहुंचा दी गई। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर और उनके साथियों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। औरंगजेब के आदेश पर पांचों सिखों सहित गुरु जी को गिरफ्त में लेकर दिल्ली लाया गया।

गुरु तेग बहादुर के भाइयों को उनकी आंखों के सामने मारा, लेकिन...

गुरु तेग बहादुर जी को डराने के लिए उनके सामने भाई मतिदास जी को आरे से चीरा गया। मतिदास के बाद भाई दयाला को उबलते तेल में फेंक दिया गया। फिर भाई सती दास को जिंदा जला दिया गया। गुगुरु तेग बहादुर को मुसलमान बनाने के लिए लालच से लेकर मौत का डर दिखाया गया, लेकिन उन्होंने औरंगजेब की बात स्वीकार नहीं की। हार कर औरंगजेब उन्हें चांदनी चौक लाया और तलवार से उनकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया गया। औरंगजेब ने फरमान दिया कि गुरु तेग बहादुर का कोई भी अंतिम संस्कार नहीं करेगा।

ऐसे पड़ा गुरु तेग बहादुर नाम...

गुरु तेग बहादुर का बचपन का नाम त्यागमल था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों से युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया। इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग़ बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया। युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग़ बहादुर जी के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका का मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ।

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