हरिद्वार से ही गंगा हो गई मैली, सरकार व लोगों को करने होंगे प्रयास
यह चिन्ताजनक है कि गंगाजल न पीने के योग्य रहा, न स्नान के योग्य और न ही सिंचाई के योग्य रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। गंगा नदी भारतीय जन-मानस की आस्था का जीवन्त प्रतीक है। भारत में गंगा को मां की उपाधि से नवाजा गया है। धार्मिक महत्व के साथ गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है। यह नदी भारत के 11 राज्यों में भारत की आबादी के 40 प्रतिशत लोगों को पानी उपलब्ध कराती है। दूसरे शब्दों में गंगा भारत की जीवनरेखा है। गंगोत्री से अवतरित पावन गंगा आज दिन-प्रतिदिन मैली होती जा रही है। आज यह दुनिया की छठी सबसे प्रदूषित नदी मानी जाती है।
गंगा को लेकर एनजीटी की टिप्पणी ने चिंता बढ़ा दी है। एनजीटी ने कहा है कि अगर सिगरेट के पैकेट पर 'स्वास्थ्य के लिए हानिकारक' चेतावनी लिख सकते हैं तो प्रदूषित गंगा के पानी को लेकर ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता है। प्रदूषण को लेकर ट्रिब्यूनल ने नाराजगी जताते हुए यह भी कहा कि हरिद्वार और उन्नाव के बीच गंगा नदी का पानी पीने और स्नान करने के लिए उपयुक्त नहीं है। एनजीटी ने कहा कि लोग गंगा का पानी पीते और उसमें स्नान करते हैं, बिना यह जानते हुए कि यह उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
हरिद्वार में भी गंगा हुई मैली
चूंकि गंगा गंगोत्री से ही निकलती है इसलिए माना जाता है कि हरिद्वार में गंगा शुद्ध होंगी लेकिन अब ऐसा नहीं है। गंगा जल हरिद्वार में भी काफी दूषित हो चुका है। हरिद्वार में गंगा की हालत इतनी बुरी है कि तमाम नाले सीधे गंगा में जा रहे हैं। राज्य में त्रिवेंद्र सरकार आने के बाद गंगा को तवज्जो देते हुए कर्इ् प्रभावी कदम उठाए। इसके बावजूद हरिद्वार में अब भी शवों को गंगा के किनारे बहते देखा जा सकता है। हरिद्वार के चंडी घाट पर 10 नंबर ठोकर पर साधु संतों के शरीर को जल समाधि दिए जाने की लंबे समय से प्रथा रही है। ठोकर नंबर 10 पर अगर हरिद्वार में कोई भी संत मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसके शरीर को इसी जगह पर जल समाधि दी जाती है। यहां पर शवों को पड़े देखा जा सकता है। जिन हालात में शव पड़े होते हैं, उससे यह जाहिर होता है कि यह सब किसी साधु संत के नहीं बल्कि कोई यहां पर इन्हें फेंककर गया है। गंगा में कई बार पालतू और जंगली जानवरों के शवों को भी बहते देखा जा सकता है। इसके बाद तो गंगा की हालत और भी खराब होती जाती है।
प्रदूषण के प्रमुख कारण
गंगा में प्रदूषण का प्रमुख कारण इसके तट पर निवास करने वाले लोगों द्वारा नहाने, कपड़े धोने, सार्वजनिक शौच की तरह उपयोग करने की वजह है। अनगिनत टैनरीज, रसायन संयंत्र, कपड़ा मिलों, डिस्टिलरी, बूचड़खानों और अस्पतालों का अपशिष्ट गंगा के प्रदूषण के स्तर को और बढ़ा रहा है। औद्योगिक अपशिष्टों का गंगा में प्रवाहित होना बढ़ते प्रदूषण का कारण है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगाजल को प्रदूषित किया है। जांच में पाया गया कि गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है। यह चिन्ताजनक है कि गंगाजल न पीने के योग्य रहा, न स्नान के योग्य और न ही सिंचाई के योग्य रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं।
नदी में ऑक्सीजन की मात्रा में आर्इ् कमी
केन्द्रीय जल आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार गंगा का पानी तो प्रदूषित हो ही रहा है, साथ ही बहाव भी कम होता जा रहा है। यदि यही स्थिति रही तो गंगा में पानी की मात्रा बहुत कम व प्रदूषित हो जाएगी। गंगा के घटते जलस्तर से सभी परेशान हैं। गंगा नदी में ऑक्सीजन की मात्रा भी सामान्य से कम हो गई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि गंगा जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को समाप्त कर देते हैं किन्तु प्रदूषण के चलते इन लाभदायक विषाणुओं की संख्या में भी काफी कमी आई है। इसके अतिरिक्त गंगा को निर्मल व स्वच्छ बनाने में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे कछुए, मछलियाँ एवं अन्य जल-जीव समाप्ति की कगार पर हैं। गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं, जोकि चिंता का विषय है। पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार जब तक गन्दे नालों का पानी, औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक कचरा, सीवेज, घरेलू कूड़ा-करकट पदार्थ आदि गंगा में गिरते रहेंगे, तब तक गंगा का साफ रहना मुश्किल है।
गंगा के प्रदूषण के अन्य कारण
* गंगा अपनी धारा के साथ मिट्टी ढोने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। गंगा मिट्टी के साथ-साथ औद्योगिक कचरा और सीवेज भी अपनी धारा में समेटने को बाध्य है।
* गंगा के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण कल-कारखानों के जहरीले रसायनों को नदी में बिना रोक-टोक के गिराया जाना है। कानून बनने के बाद भी हजारों प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों का गंदगी और जहरीला रसायन भी आज भी गंगा में मिल रहा है।
* जब कारखानों या थर्मल पावर स्टेशनों का गर्म पानी तथा रसायन या काला या रंगीन नदी में मिल जाता है तो नदी के पानी को जहरीला बनाने के साथ नदी के खुद के शुद्धिकरण की क्षमता को नष्ट कर देता है। नदी में मौजूद बहुत से सूक्ष्म वनस्पतियां और जीव जंतु भी सफाई में मदद करते हैं, उद्योगों के प्रदूषण के कारण गंगा में जगह-जगह डेड जोन बन गए हैं। कहीं आधा, कहीं एक तो कहीं दो किलोमीटर के डेडजोन मिलते हैं। यहां से गुजरने वाला कोई भी जीव जंतु या वनस्पति जीवित नहीं बचता।
* खेती में प्रयोग होने वाले रासायनिेक खादों और जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग भी खतरनाक है। ये रसायन बरसात के समय बहकर नदी में पहुंच जाते हैं और नदी की पारिस्थितिकी को बिगाड़ देते हैं।
* गंगा में प्रदूषण का एक बड़ा कारण भारतीयों की जीवनशैली की धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है। गंगा में केवल वाराणसी में 33 हजार से अधिक शवों के दाह के बाद 700 टन से अधिक राख और अधजले शव या कंकाल बहा दिये जाते हैं। गंगा में बड़ी संख्या में शव बिना जलाए प्रवाहित किए जाते हैं। कुछ समय पहले काफी संख्या में गंगा में प्रवाहित शव ऊपर आ गए थे। इस कारण भी गंगा जल प्रदूषित होता है।
* गंगा प्रदूषण का एक प्रमुख कारण रेत खनन भी है।
* गंगा पर शुरू में ही टिहरी तथा अन्य स्थानों पर बांध और बैराज बना दिए गए। इससे गंगा के जलप्रवाह में भारी कमी आई है। गंगा के प्रदूषण का यह भी एक कारण है। बांधों और बैराजों के कारण नदी की स्वाभाविक प्रक्रिया भी रुकती है। यही कारण है कि गंगा शुरूआत से प्रदूषित हो रही है।
* गंगा में कई स्थानों पर राफ्टिंग और अन्य व्यवसायिक कार्य हो रहे हैं। इस कारण भी गंगा प्रदूषित हो रही है।
सरकार द्वारा किए गए प्रयास
* गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया।
* डाल्फिन को जलीय राष्ट्रीय जीव घोषित किया गया।
* बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिये विशेष प्रकार के कछुओं व घड़ियालों की मदद ली जा रही है।
* सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तथा औद्योगिक अपशिष्टों को साफ करने के लिये संयंत्रों को लगाया जा रहा है।
* उद्योगों के कचरों को इसमें गिरने से रोकने के लिये कानून बने हैं। इनके गंगा में बहने पर रोक लगाई गई है।
* ‘गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना’ लागू की गई है।
* केन्द्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण’ (एनआरजीबीए) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के अन्तर्गत 20 फरवरी, 2009 को स्थापित किया गया।
20 हजार करोड़ खर्च करने के बाद भी स्थिति चिंताजनक
‘सेन्ट्रल पॉल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड’ की वर्ष 2012 की रिपोर्ट के अनुसार सरकार अभी तक गंगा की सफाई हेतु विभिन्न परियोजनाओं के लिए लगभग 20,000 करोड़ रुपया खर्च कर चुकी है, लेकिन गंगा नदी के जल की स्थिति सोचनीय है। साबरमती परियोजना, गुजरात की तर्ज पर गंगा की सफाई अभियान को चलाने की जो पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की जा रही है, उससे एक आशा की किरण जगी है। इसे लेकर केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास मंत्री नीतिन गडकरी द्वारा समय-समय पर कदम उठाए गए हैं।
प्रदूषण कम करने के लिए अन्य प्रयास
* शवों को जलाने या गंगा में प्रवाहित करने से रोकने के लिए काफी संख्या में विद्युत शवदाह गृह बनाए जा रहे हैं ।
* गंगा को निर्मल और शुद्ध बनाए रखने के लिए देश की कृषि, उद्योग, शहरी विकास तथा पर्यावरण संबंधी नीतियों में मूलभूत परिवर्तन लाने की जरूरत पड़ेगी।
* नदियों को प्रदूषणमुक्त रखने के लिए इन रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों पर दी जाने वाली भारी सब्सिडी में कमी या बंद करके पूरी राशि जैविक खाद तथा कीटनाशकों का प्रयोग करने वाले किसानों को देनी पड़ेगी। अंतत: रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों पर पूर्ण रोक लगानी पड़ेगी।
गंगा के जल ग्रहण क्षेत्र को संवेदनशील घोषित करें सरकार : राजेंद्र सिंह
गंगा के प्रदूषण को दूर करने के लिए वाटर मैन राजेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने पत्र में कहा है कि नए प्रस्तावित बांधों को बनने से रोक दें। गंगा के जल ग्रहण क्षेत्र को पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र घोषित करें। गंगा भक्त परिषद का गठन करें जो गंगा जी और केवल गंगा जी के हित में काम करने की शपथ लें। प्रस्तावित अधिनियम ड्रॉफ्ट 2012 पर तुरंत संसद द्वारा चर्चा कराकर पास कराएं।