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जीएसटी से एफसीआई को होगी पांच हजार करोड़ की सीधी बचत

जीएसटी काउंसिल की ओर से कर की दरों के ऐलान के बाद खाद्यान्न कारोबार को कर मुक्त कर दिया गया है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Mon, 22 May 2017 01:41 AM (IST)Updated: Mon, 22 May 2017 01:41 AM (IST)
जीएसटी से एफसीआई को होगी पांच हजार करोड़ की सीधी बचत
जीएसटी से एफसीआई को होगी पांच हजार करोड़ की सीधी बचत

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। अनाज को कर मुक्त करने के प्रावधान और एक जुलाई से जीएसटी लागू होने के बाद भारतीय खाद्य निगम को सालाना पांच हजार करोड़ रुपये की सीधी बचत होगी। लेकिन खाद्यान्न कारोबार में मंडी शुल्क, आढ़ती व एजेंट कमीशन के साथ अन्य उपकर वसूलने पर संदेह बरकरार है। इसे लेकर निगम ने वित्त मंत्रालय से स्पष्ट जानकारी मुहैया कराने का आग्रह किया है। अनाज कारोबार पर फिलहाल पांच फीसद का वैट लागू होता है।

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वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) काउंसिल की ओर से कर की दरों के ऐलान के बाद खाद्यान्न कारोबार को कर मुक्त कर दिया गया है। इससे एफसीआई को सीधी बचत का रास्ता तो खुल गया है, लेकिन निगम में वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर विस्तार से जानकारी मांगी है। दरअसल विभिन्न राज्यों में लगाने जाने वाले मंडी टैक्स, आढ़ती कमीशन, ग्रामीण विकास उपकर, बुनियादी ढांचा उपकर समेत कई अन्य तरह के कर वसूलने का प्रावधान है। इस तरह के करों के बारे में जीएसटी में फिलहाल कुछ नहीं गया है।

एफसीआई राज्यों के सहयोग से गेहूं व चावल की सरकारी खरीद करता है, जिसमें कमीशन के आधार पर आढ़तियों की मदद ली जाती है। राज्य सरकारें अनाज की खरीद और बिक्री दोनों पर अलग-अलग दरों के आधार पर कर वसूलती हैं। इसके लिए एफसीआई को इन करों के रूप में हजारों करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ता है। पिछले साल की गेहूं व चावल की खरीद पर एफसीआई ने राज्यों को 10 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक का भुगतान किया था, जिसमें अकेले वैट के रुप में लगभग पांच हजार करोड़ रुपये देने पड़े थे।

खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित्त मंत्रालय से इस बारे में स्पष्ट जानकारी मांगी गई है। वर्ष 2015-16 फसल वर्ष के दौरान अनाज पर लगे वैट व मंडी में लगाये गये अन्य करों के चलते एफसीआई को 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करना पड़ा था। इसमें पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उड़ीसा प्रमुख हैं। इसमें से अकेले वैट की हिस्सेदारी 3500 करोड़ रुपये थी, जबकि वर्ष 2014-15 में एफसीआई को किसानों से गेहूं व चावल की सीधी खरीद में कुल 4700 करोड़ रुपये के करों का भुगतान करना पड़ा था।

दरअसल, भारतीय खाद्य निगम की ओर से अनाज की होने वाली कुल खरीद में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर औसतन 13 फीसद के टैक्स का भुगतान करना पड़ता है। इनमें प्रमुख खाद्यान्न उत्पादक राज्य राजस्थान में 3.6 फीसद बिक्री व खरीद कर देना पड़ता है तो हरियाणा में 11.5 फीसद, पंजाब में 14.5 फीसद और आंध्र प्रदेश में 13.5 फीसद का भुगतान करना होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जीएसटी के लागू होने के बाद एफसीआई की सरकारी खरीद के खर्च में कमी आनी तय है, जिससे खाद्य सब्सिडी घटेगी। इसका असर गेहूं व चावल की कीमतों पर दिखेगा।

देश में बीस करोड़ टन के आसपास गेहूं व चावल की पैदावार होती है। इसका 60 से 65 फीसद अनाज बाजार में बिकने को आता है। पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश में पांच फीसद के वैट के साथ 14 फीसद की दर से कर की वसूली की जाती है।

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